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पीएमजीएसवाई में बाहरी ठेकेदार अंदर, स्थानीय ठेकेदार ठन-ठन गोपाल

इन दिनों प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) में 300 करोड़ रुपये के काम कराए जा रहे हैं। काम पर हाथ तो बाहर के ठेकेदार साफ कर दे रहे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Sun, 19 Jan 2020 05:12 PM (IST)
पीएमजीएसवाई में बाहरी ठेकेदार अंदर, स्थानीय ठेकेदार ठन-ठन गोपाल
देहरादून, सुमन सेमवाल। इन दिनों प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) में 300 करोड़ रुपये के काम कराए जा रहे हैं। ऐसे में तो उत्तराखंड के ठेकेदारों के चेहरे खिले होने चाहिए, जबकि वह मुरझा रखे हैं। क्योंकि काम पर हाथ तो बाहर के ठेकेदार साफ कर दे रहे हैं। स्थानीय व छोटे ठेकेदार ठन-ठन गोपाल की हालत में हैं। उनके हाथ में सिर्फ सरकार का वह झुनझुना है, जिसमें कहा गया है कि पांच करोड़ रुपये तक के काम उत्तराखंड के ठेकेदारों को मिलेंगे। पांच करोड़ तो क्या, स्थानीय ठेकेदार 50 लाख रुपये के काम तक को एड़ि‍यां रगड़ रहे हैं। टेंडर में ऐसी-ऐसी शर्ते जोड़ी जा रही हैं, जिनके आगे कम संसाधनों वाले अपने ठेकेदार पानी भी नहीं मांग पा रहे। कभी वह अपनी प्रदेशहित में काम करने की नीयत तो कभी अपनी नियति को कोस रहे हैं। कुछ ठेकेदारों ने तो सरेंडर भी कर दिया है। 

चार फीसद दो, पैसा लो

वैसे तो लोक निर्माण विभाग (लोनिवि) में कमीशन खोरी का किस्सा कोई नया नहीं है, मगर इन दिनों देहरादून के निर्माण खंड की चर्चा जोरों पर है। चर्चा काम की नहीं, बल्कि कमीशन को लेकर है। खंड के अधिकारी खुलेआम ठेकेदारों से चार फीसद की रकम मांग रहे हैं। यह रकम काम का भुगतान कराने के एवज में मांगी जा रही है। जिन ठेकेदारों ने कमीशन देकर अपना पिंड छुड़ाया, वही अब चुगली भी कर रहे हैं। बता रहे हैं कि किस तरह पहले उन्होंने अपने भुगतान का इंतजार किया और जब उन्हें तारीख पर तारीख दी गई तो अधिकारियों को कमीशन देने में भलाई समझी। जो ठेकेदार अभी कमीशन नहीं दे पाए हैं, उन्हें दो टूक कहा जा रहा है कि बजट कम है। बेचारे ठेकेदार मुखर होकर आवाज भी नहीं उठा सकते। क्योंकि यहां आवाज उठाई और वहां उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।

टेंडर कहां छपे, ढूंढते रह गए

बात सिंचाई विभाग के दून कैनाल खंड की है और घटना को एक साल बीत गए। घपला अब बाहर आया है। इस खंड ने भोगपुर क्षेत्र में 50 लाख रुपये तक के काम भी ई-टेंडरिंग के नियमों को धता बताकर बांट दिए। टेंडर ऐसे समाचार पत्रों में दिए गए, जो खोजने से भी नहीं मिले। जबकि नियम है कि 25 लाख रुपये से ऊपर के काम ई-टेंडरिंग के माध्यम से कराए जाएंगे। ऐसे टेंडर तीन राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों में भी छपवाने का नियम है। पर नियम मानते तो चहेते ठेकेदार बाहर हो सकते थे, लिहाजा सब कुछ सोची-समझी रणनीति के तहत गुपचुप कर दिया गया। मजाल है जो कोई ठेकेदार आवाज उठाने की हिमाकत कर पाता। हुआ भी ऐसा ही। देर-सबेर बचे-खुचे काम मिलने की आस में किसी ने हल्ला नहीं मचाया। चुप्पी के बाद भी काम नहीं मिला तो यह बात बाहर निकल आई।

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छुट्टी की आस में 15 की तारीख

राजस्व न्यायालयों में मिलने वाली तारीख पर तारीख के पीछे प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता का भी बड़ा हाथ है। ताजा प्रसंग उपजिलाधिकारी सदर गोपाल राम बिनवाल की कोर्ट का है। साहब ने जनवरी प्रथम सप्ताह के सभी मामलों में एक साथ 15 जनवरी की तारीख लगवा दी। वादी-प्रतिवादी इस तारीख का इंतजार करने लगे और उन्हें इसके पीछे की मंशा तब पता चली, जब अधिवक्ताओं ने मकर संक्रांति का पर्व मनाने के लिए कार्य से विरत रहने का आवेदन कर दिया। खुलकर यह मंशा भले ही पुष्ट न हो, मगर इसी तरह कोर्ट से संभावित 'मुक्ति' के लिए ऐसी तारीखें पहले भी लगाई जाती रही हैं। इसका सीधा दोष किसी अफसर पर लगा देना भी ठीक नहीं, मगर प्रशासनिक काम के बोझ के बीच कोर्ट से ऐसी छुट्टी का इंतजार सभी अधिकारियों को रहता है। आखिर वो करें भी तो क्या?

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