तीन हजार करोड़ रुपये की परियोजना, 31 शहरों का चयन; पांच में काम और वह भी आधा-अधूरा
तीन हजार करोड़ रुपये की परियोजना 31 शहरों का चयन। नौ साल में सिर्फ पांच शहरों में एक हजार करोड़ की लागत से कार्य हुए लेकिन वह भी आधे-अधूरे। यह है उत्तराखंड में पेयजल से जुड़ी एडीबी से वित्त पोषित योजनाओं का सच जो समीक्षा बैठक में सामने आया।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Thu, 29 Jul 2021 07:05 AM (IST)
राज्य ब्यूरो, देहरादून। तीन हजार करोड़ रुपये की परियोजना, 31 शहरों का चयन। नौ साल में सिर्फ पांच शहरों में एक हजार करोड़ की लागत से कार्य हुए, लेकिन वह भी आधे-अधूरे। यह है उत्तराखंड में पेयजल से जुड़ी एडीबी (एशियन डेवलपमेंट बैंक) से वित्त पोषित योजनाओं का सच, जो बुधवार को पेयजल मंत्री बिशन सिंह चुफाल की अध्यक्षता में विधानसभा में हुई समीक्षा बैठक में सामने आया। मंत्री चुफाल ने इस पर सख्त नाराजगी जताई।
पेयजल मंत्री चुफाल ने बैठक के बाद बताया कि वर्ष 2008 में एडीबी वित्त पोषित पेयजल से जुड़ी परियोजना के निर्माण का जिम्मा एक कंपनी को सौंपा गया था। चयनित 31 शहरों में से केवल देहरादून, रुड़की, नैनीताल, रामनगर व हल्द्वानी में करीब एक हजार करोड़ रुपये की लागत के कार्य कराने के बाद वर्ष 2017 में कंपनी कार्य छोड़कर चली गई। जिन शहरों में कंपनी ने कार्य किया, उसकी प्रगति भी असंतोषजनक रही।
नैनीताल व रामनगर में पाइपलाइन का करीब 90 फीसद काम जरूर हुआ, जबकि हल्द्वानी में केवल ओवरहेड टैंक ही बनाए गए। शेष दो शहरों में भी कार्य आधे-अधूरे हैं। कंपनी के कार्य छोड़ने के बाद से ये कार्य अटके हुए हैं। साथ ही दो हजार करोड़ की राशि भी केंद्र को वापस चली गई थी। मंत्री ने बताया कि अब इन कार्यों को जल्द पूर्ण करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके लिए एडीबी विंग को बजट उपलब्ध होने जा रहा है।
दून में 47 किमी पाइपलाइन को सरकार देगी 15 करोड़पेयजल मंत्री चुफाल के मुताबिक एडीबी वित्त पोषित योजना के तहत देहरादून में 217 किमी लंबी पाइपलाइन बिछनी थी। इसमें से 47 किमी पाइपलाइन का कार्य अपूर्ण है। अब इसके लिए 15 करोड़ की राशि प्रदेश सरकार मुहैया कराएगी। माहभर के भीतर टेंडर प्रक्रिया पूरी कर अगले वर्ष ये कार्य पूर्ण करा लिए जाएंगे। इसमें अधिकांश कार्य देहरादून कैंट विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत होने हैं।
पेयजल को बने एक कार्यदायी एजेंसीमंत्री चुफाल के अनुसार बैठक में यह बात भी आई कि पेयजल निगम, एडीबी विंग, अमृत योजना की एजेंसी समेत अन्य विभाग भी शहरों में पेयजल से जुड़े कार्य करा रहे हैं। अलग-अलग कार्यदायी एजेंसी होने से योजनाओं के क्रियान्वयन में दिक्कतें आ रही हैं। यह तक पता नहीं चल पाता कि कौन सा काम कौन सी एजेंसी करा रही है। कई बार एजेंसियों की ओर से एक-दूसरे पर दोषारोपण भी होता है। इसे देखते हुए पेयजल के लिए एक ही कार्यदायी एजेंसी होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि इसके लिए प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश अधिकारियों को दिए गए हैं। यह भी निर्देशित किया गया है कि पेयजल व्यवस्था को दुरुस्त रखा जाए। बैठक में सचिव पेयजल नितेश झा समेत अन्य अधिकारी मौजूद थे।
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