World Breastfeeding Week 2020: स्तनपान में 25वें नंबर पर उत्तराखंड, रैंकिंग सुधारना जरूरी; जानें- इसके फायदे भी
World Breastfeeding Week 2020 स्तनपान की दर बढ़ाने और जच्चा-बच्चा की सुरक्षा को उत्तराखंड अब भी देश के 36 राज्यों में 25वें स्थान पर सिमटा है।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sat, 01 Aug 2020 09:25 PM (IST)
देहरादून, सुमन सेमवाल। World Breastfeeding Week 2020 किसी भी शिशु के लिए स्तनपान से बड़ा वरदान कुछ भी नहीं। जन्म के एक घंटे के भीतर से लेकर अगले छह माह तक बच्चे के पोषण की सभी जरूरतें स्तनपान से ही पूरी होती हैं। अगले नौ माह तक भी इसे जारी रखा जाए तो इसे आदर्श स्थिति कहा जाएगा। स्तनपान की दर बढ़ाने और जच्चा-बच्चा की सुरक्षा के लिए केंद्र व राज्य सरकार अथक प्रयास कर रही हैं, मगर उत्तराखंड अभी भी देश के 36 राज्यों में 25वें स्थान पर सिमटा है। उत्तराखंड में ही स्तनपान की दर की तुलना की जाए तो हरिद्वार का प्रदर्शन सबसे खराब दिख रहा है।
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की पिछले साल की रिपोर्ट पर गौर करें तो स्तनपान की दर को तीन भागों में बांटा गया है। इसमें स्तनपान को जन्म के एक घंटे के भीतर, छह माह तक व नौ माह तक की अवधि में बांटा गया है। पहली रैंकिंग पर आए मणिपुर को 72.7 अंक मिले हैं। इस आधार पर उत्तराखंड के 42.1 अंक को देखें तो बड़े अंतर को साफ समझा जा सकता है। हालांकि, जन्म के एक घंटे के भीतर शिशुओं के स्तनपान में गोवा 75.4 फीसद के साथ सबसे ऊपर है। इस स्थिति में भी उत्तराखंड का आंकड़ा 28.8 फीसद पर सिमटा है।
स्तनपान में उत्तराखंड के जिलों का प्रदर्शन
जिला, फीसद मेंरुद्रप्रयाग, 51.6
चमोली, 45.3टिहरी, 36.1बागेश्वर, 34नैनीताल, 33.5चंपावत, 31.9अल्मोड़ा, 31.7देहरादून, 30.5उत्तरकाशी, 28.2पिथौरागढ़, 27.8पौड़ी, 26.ऊधमसिंहनगर, 24.7हरिद्वार, 22.1यह भी पढ़ें: World Hepatitis Day 2020: उत्तराखंड में हेपेटाइटिस-सी पर अब होगा चौतरफा वार
शिशु के साथ मां के लिए जरूरी है स्तनपानस्तनपान से शिशुओं का विकास तेजी से होता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। सांस संबंधी समस्या, कान के संक्रमण, मधुमेह, श्वेत रक्तता और अन्य एलर्जी से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही वजन बढ़ाने, अनावश्यक वसा को जमा न होने देने, दिमाग के उचित विकास, शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में भी नियमित स्तनपान सहायक है। दूसरी तरफ स्तनपान कराते रहने से महिलाओं का वजन भी नियंत्रित रहता है। साथ ही स्तन या गर्भाशय कैंसर होने का खतरा भी कम हो जाता है।
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