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World Water Day 2021: बारिश की बूंदें हैं थाती, आओ इनसे सींचें धरा की छाती

World Water Day 2021 हर किसी को मालूम है कि जल ही जीवन है लेकिन इसके संचय और संरक्षण के प्रति गंभीर नहीं होने के कारण जल के जीवन पर संकट बढ़ता जा रहा है। जल स्रोत लगातार सूख रहे हैं और भूजल का स्तर गिरता जा रहा है।

By Raksha PanthriEdited By: Updated: Mon, 22 Mar 2021 04:58 PM (IST)
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बारिश की बूंदें हैं थाती, आओ इनसे सींचें धरा की छाती।
विजय जोशी, देहरादून। World Water Day 2021 हर किसी को मालूम है कि जल ही जीवन है, लेकिन इसके संचय और संरक्षण के प्रति गंभीर नहीं होने के कारण जल के 'जीवन' पर संकट बढ़ता जा रहा है। जल स्रोत लगातार सूख रहे हैं और भूजल का स्तर गिरता जा रहा है। हर साल विश्व जल दिवस पर तमाम संस्थाएं और सरकारी महकमे गहराती जा रही इस समस्या पर चिंतन-मनन तो करते हैं, योजनाओं का खाका भी खींचा जाता है। बस, धरातल पर जरूरी प्रयास नजर नहीं आते। नतीजा यह कि जल संरक्षण की मुहिम कहीं सिर्फ कागजों में तो कहीं सीमित क्षेत्र तक सिमट जाती है। अब समय आ गया है कि सिर्फ प्राकृतिक स्रोतों और भूजल के भरोसे न रहकर रेन वाटर हार्वेस्टिंग (बारिश के पानी का संचय) को व्यवहार में लाया जाए। बारिश के पानी का संचय कर हम प्राकृतिक जल स्रोतों पर पड़ रहे भार को काफी हद तक कम कर सकते हैं। 

वैसे तो उत्तराखंड में करीब 2.6 लाख प्राकृतिक जल स्रोत हैं। प्रदेश में तकरीबन 90 फीसद पेयजल आपूर्ति इन्हीं जल स्रोतों से होती है। मगर, पर्याप्त रीचार्ज नहीं मिल पाने के कारण इन जल स्रोतों में साल दर साल पानी की उपलब्धता घटती जा रही है। इसके अलावा भूजल (भूमिगत जल) का उपयोग और अनियोजित दोहन भी लगातार बढ़ रहा है। इन वजहों से प्रदेश में जल संकट की स्थिति उत्पन्न होने लगी है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि वर्तमान में 30 फीसद ग्रामीण और 50 फीसद शहरी इलाके जल संकट से जूझ रहे हैं। सबसे ज्यादा किल्लत पर्वतीय क्षेत्रों में है। 

नीति आयोग की वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स-2018 में भी जल प्रबंधन के मामले में उत्तराखंड का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। नीति आयोग के मुताबिक हिमालय क्षेत्र के प्राकृतिक जल स्रोत जिनमें मुख्यत: जलधाराएं और झरने हैं सूख रहे हैं। 150 वर्ष में 60 फीसद प्राकृतिक जल स्रोत सूखने का दावा किया गया है। हालांकि, वर्ष 2019 में जल नीति बनने के बाद अब राज्य में इस दिशा में सुधार की उम्मीद की जा रही है। 

बारिश भी बढ़ा रही चिंता

उत्तराखंड में पूरे देश में होने वाली औसत वर्षा से ज्यादा बारिश होती रही है। देश में जहां औसतन 1100 मिमी बारिश होती है, वहीं उत्तराखंड में यह आंकड़ा 1400 मिमी के आसपास रहता है। हालांकि, अब इस दिशा में भी उत्तराखंड की चिंताएं बढ़ रही हैं। साल दर साल यहां बारिश में कमी आ रही है। पिछले तीन साल में बारिश में प्रदेश में 10 से 20 फीसद की कमी आई है। 

रेन वाटर हार्वेस्टिंग बेहतर विकल्प

भूजल के गिरते स्तर और पानी के संकट से निपटने के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सबसे बेहतर विकल्प है। सरकार भी अब इस ओर गंभीर नजर आ रही है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग को सरकारी और निजी भवनों में प्रभावी ढंग से लागू करने की योजना है। इसके लिए उत्तराखंड जल संस्थान ने कसरत भी शुरू कर दी है। पहले फेज में दून के 150 सरकारी भवनों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया जा रहा है। इसमें करीब 10 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग 250 से 400 वर्ग मीटर तक के क्षेत्र में की जा सकती है। 

जल संस्थान के प्रबंध निदेशक नीलिमा गर्ग का कहना है कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर सरकार से मिले निर्देशों के अनुसार कार्य किया जा रहा है। फिलहाल शासन की मंजूरी के बाद 32 भवनों में इसे स्थापित किया जा रहा है। जैसे-जैसे शासन से बजट स्वीकृत होता रहेगा, योजना पर कार्य किया जाएगा।

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