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भावी डॉक्टरों को नहीं रास आ रहा पहाड़, जानिए वजह

ऑल इंडिया लेवल पर प्रदेश के मेडिक कॉलेज युवाओं को ज्यादा रास नहीं आ रहे हैं। यही वजह है कि मेडिकल संस्थानों की एमबीबीएस की सीटों पर एक चौथाई एडमिशन भी नहीं हो पाए हैं।

By Edited By: Updated: Wed, 04 Jul 2018 09:15 PM (IST)
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भावी डॉक्टरों को नहीं रास आ रहा पहाड़, जानिए वजह
देहरादून, [जेएनएन]: प्रदेश के मेडिकल कॉलेज ऑल इंडिया स्तर पर छात्रों के पसंदीदा कॉलेजों में शुमार नहीं हैं। यह हम नहीं, पहले चरण के बाद होने वाले दाखिलों के आकड़े बता रहे हैं। नीट ऑल इंडिया काउंसिलिंग में राज्य के मेडिकल संस्थानों की एमबीबीएस की सीटों पर एक चौथाई एडमिशन भी नहीं हो पाए हैं। युवाओं में डॉक्टर बनने का क्रेज भले ही बढ़ा हो, लेकिन राज्य के मेडिकल कॉलेजों से डॉक्टर बनने की चाहत युवाओं में कम ही दिख रही है।

नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट) की ऑल इंडिया काउंसिलिंग के तहत राज्य के तीन मेडिकल कॉलेजों में प्रथम चरण में हुए दाखिले तो इसी ओर इशारा कर रहे हैं। श्रीनगर व हल्द्वानी की बात छोड़िए, राजधानी स्थित दून मेडिकल कॉलेज भी देश के युवाओं की पसंद नहीं है। यहां ऑल इंडिया कोटे से अभी मात्र दो ऐडमीशन ही हुए हैं। वहीं, श्रीनगर मेडिकल कॉलेज में ऑल इंडिया कोटे में महज एक सीट भरी है। जबकि हल्द्वानी में सात दाखिले हुए हैं। 

पहले चरण में राज्य के तीन मेडिकल कॉलेजों में कुल मिलाकर दस ही सीट भर पाई हैं। बॉन्ड बन रहा अड़चन राज्य के मेडिकल कॉलेजों में ऐडमीशन कम होने की बड़ी वजह है सरकार के साथ पहाड़ पर पांच साल सेवाओं का बॉन्ड। सरकारी कोटे की सीटों पर दाखिला लेने वाले अभ्यर्थियों के लिए यहां पहाड़ी इलाके में सेवाएं देना अनिवार्य है। अगर बॉन्ड साइन नहीं किया गया तो चार लाख रुपये सालाना फीस चुकानी पड़ती है। जबकि बाहरी राज्यों में यह फीस काफी कम है। 

यही कारण है कि युवाओं के बीच कम रुझान दिख रहा है। द्वितीय राउंड में सीट भरने की उम्मीद निदेशक चिकित्सा शिक्षा डॉ. आशुतोष सयाना के मुताबिक, प्रथम चरण की काउंसिलिंग में अभ्यर्थी अच्छा कॉलेज मिलने की आस में कई बार एडमिशन नहीं लेते। दून मेडिकल कॉलेज अभी नया भी है। श्रीनगर में पहाड़ी क्षेत्र व फैकल्टी एक फैक्टर है। दूसरे चरण में सीटें भरने की उम्मीद है। 

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