20 दिन की पैरोल के दौरान फरार कैदी 17 साल बाद गिरफ्तार
बीस दिन की पैरोल पर रिहा होने के बाद से फरार चल रहे एक सजायाफ्ता कैदी को पुलिस ने 17 साल बाद गिरफ्तार किया है।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Mon, 29 Apr 2019 10:25 AM (IST)
हरिद्वार, जेएनएन। महाराष्ट्र से 20 दिन की पैरोल पर रिहा होने के बाद से फरार चल रहे एक सजायाफ्ता कैदी को पुलिस ने 17 साल बाद गिरफ्तार किया है। दुष्कर्म के मामले में उसे दस साल की सजा हुई थी। वर्ष 2002 में भाई की मौत के चलते अदालत ने उसका पैरोल मंजूर दिया था। महाराष्ट्र पुलिस की सूचना पर पुलिस चार महीने से उसकी तलाश कर रही थी। महाराष्ट्र पुलिस को इस संबंध में सूचना दे दी गई है।
पुलिस के मुताबिक हरिद्वार के पास बहादराबाद के ग्राम भौरी निवासी फुरकान पुत्र वसीम 90 के दशक में मुंबई रहा करता था। उससे पहले वह यहां अपने गांव में झाड़ फूंक करता था। वर्ष 1993 में उसके खिलाफ पूणे थाने में दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज हुआ था। दोष साबित होने पर कोर्ट ने उसे 10 साल कैद की सजा सुनाई थी। इसी बीच वर्ष 2002 में उसके भाई इरफान की मौत हो गई। तब उसने कोर्ट में पैरोल की अर्जी दाखिल की। इस पर कोर्ट ने उसका एक मार्च 2002 से 21 मार्च 2002 तक का पैरोल मंजूर दिया था। इस आधार पर फुरकान घर आया, लेकिन वापस महाराष्ट्र लौटने की बजाय भूमिगत हो गया।
इसके बाद महाराष्ट्र पुलिस कई बार उसकी खोजबीन के लिए हरिद्वार पहुंची। परिजनों और आस पास के लोगों से पूछताछ हुई, पर फुरकान हाथ नहीं आया। कुछ साल बाद महाराष्ट्र पुलिस ने उसकी तलाश में आना ही बंद कर दिया। इधर, पांच दिसंबर 2018 को पूणे जोन के पुलिस कमिश्नर की तरफ से फुरकान की गिरफ्तारी के लिए एसएसपी हरिद्वार को एक पत्र भेजा गया। इसके मद्देनजर एसएसपी जन्मेजय प्रभाकर खंडूरी ने बहादराबाद थाने की पुलिस सक्रिय किया। रविवार को पुलिस ने सजायाफ्ता फुरकान को उसके आवास से गिरफ्तार कर लिया। सीओ कनखल विज्येंद्र दत्त डोभाल ने बताया कि फुरकान के खिलाफ बहादराबाद थाने में धोखाधड़ी और पैरोल का उल्लंघन करने का मुकदमा दर्ज कर लिया गया है।
आम ग्रामीण की तरह रह रहा था
17 साल कानून की नजरों से छिपा रहा फुरकान अपने गांव में आराम से रह रहा था। पूर्व में महाराष्ट्र पुलिस कई मर्तबा उसके गांव पहुंची, मगर हर बार चतुराई से वह बच निकलता रहा। बहादराबाद थानाध्यक्ष राजीव उनियाल के अनुसार यहां उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं मिला। इसलिए कभी पुलिस को शक भी नहीं हुआ कि वह सजायाफ्ता कैदी है।
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