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Haridwar Lok Sabha Seat: हरिद्वार लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास, 1977 के बाद से बदलती रही राजनीति

Haridwar Lok Sabha Seat हरिद्वार सीट 1977 में अस्तित्व में आई थी। शुरू में इस सीट पर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का प्रभाव होने के कारण लोकदल का ही दबदबा रहा। अब तक इस सीट पर 13 आम चुनाव और एक उपचुनाव हुआ है। इसमें सबसे अधिक छह बार भाजपा पांच बार कांग्रेस दो बार लोकदल और एक बार समाजवादी पार्टी की जीत हुई।

By Jagran News Edited By: Swati Singh Updated: Thu, 14 Mar 2024 04:01 PM (IST)
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हरिद्वार लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास, 1977 के बाद बदलती रही राजनीति

अनूप कुमार सिंह, हरिद्वार। हरिद्वार लोकसभा सीट का अपना ही मिजाज रहा है। हरिद्वार में राजनीति के दिग्गजों के लिए वह सब कुछ है, जो उनको अनुकूल लगता है। मौसम के साथ इस सीट पर राजनीति भी करवट बदलती रही है। हरिद्वार संसदीय सीट में आश्रम, मठ, गंगा तीर्थ हरकी पैड़ी, त्रिवेणी घाट, शक्तिपीठ मनसा देवी, चंडी देवी, गायत्री तीर्थ शांतिकुंज, कलियर शरीफ समेत अनेक धार्मिक स्थल हैं।

राजाजी नेशनल पार्क पर्यटकों को आकर्षिक करता है तो महारत्न कंपनी बीएचईएल समेत औद्योगिक क्षेत्र विकास की कहानी बयां करता है। रुड़की आइआइटी, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, पतंजलि विवि, देव संस्कृति विवि आदि विख्यात संस्थान हैं। हर जाति, धर्म, वर्ग, समुदाय के लोगों का यहां गुलदस्ता है। शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक आबादी निवास करती हैं। किसान राजनीति का गढ़ है तो देश-दुनिया में संत-महंतों की आवाज भी यहीं से बुलंद होती रही है। हरिद्वार को उत्तराखंड का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है।

तथ्यों पर एक नजर

  • 20, 08,062-क्षेत्र में कुल मतदाता
  • 10,57, 295 पुरुष मतदाता
  • 9,50,612 महिला मतदाता
  • 13 आम चुनाव और एक उपचुनाव हो चुका इस सीट पर
  • 6 बार भाजपा, पांच बार कांग्रेस, दो बार लोकदल और एक बार सपा जीती

1977 में अस्तित्व में आई सीट

हरिद्वार सीट 1977 में अस्तित्व में आई थी। शुरू में इस सीट पर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का प्रभाव होने के कारण लोकदल का ही दबदबा रहा। अब तक इस सीट पर 13 आम चुनाव और एक उपचुनाव हुआ है। इसमें सबसे अधिक छह बार भाजपा, पांच बार कांग्रेस, दो बार लोकदल और एक बार समाजवादी पार्टी की जीत हुई। कांग्रेस का गढ़ रही इस सीट पर 1991 के बाद भाजपा ने दबदबा बनाया। राज्य गठन के बाद 2004 में सपा और 2009 में कांग्रेस के पास हरिद्वार सीट रही। पिछले दो चुनाव से भाजपा का परचम है।

दो जिलों के 14 विधानसभा क्षेत्र

हरिद्वार संसदीय सीट में दो जिलों के 14 विधासनभा क्षेत्र शामिल हैं। हरिद्वार जिले की हरिद्वार, भेल रानीपुर, ज्वालापुर, भगवानपुर, झबरेड़ा, पिरान कलियर, रुड़की, खानपुर, मंगलौर, लक्सर, हरिद्वार ग्रामीण और देहरादून जिले की ऋषिकेश, डोईवाला व धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र इस लोकसभा में शामिल हैं। लोकसभा क्षेत्र में छह तहसील, एक उप तहसील व सात विकासखंड हैं। हरिद्वार संसदीय क्षेत्र में साधु समाज के साथ ही ब्राह्मण-पुरोहित, अनुसूचित जाति, पहाड़ी समाज, पाल, तेली, झोझा, बंजारा, पंजाबी-सिख, सिंधी, वैश्य, सैनी, जाट, गुर्जर, कुम्हार, त्यागी, आदि प्रेशर ग्रुप के रूप में हैं। मुस्लिम भी यहां समीकरण प्रभावित करने की स्थिति में रहते हैं।

परिसीमन से बने नए समीकरण

2011 में परिसीमन के बाद हरिद्वार लोस सीट के राजनीतिक समीकरण भी प्रभावित हुए। देहरादून जिले के तीन विधानसभा क्षेत्रों को हरिद्वार लोकसभा में शामिल किया गया तो मुद्दों का रंग बदला। क्षेत्र विशेष की राजनीति तक सीमित रहने वाले नेताओं को नए सिरे से मंथन के लिए मजबूर होना पड़ा। जातीय व क्षेत्रीय समीकरण भी नया संदेश देने की ताकत दिखाने लगे।

भौगोलिक परिदृश्य

हरिद्वार संसदीय क्षेत्र उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, बिजनौर, सहारनपुर से लगा है, जबकि उत्तराखंड में पौड़ी और टिहरी गढ़वाल से लगा है। यही कारण है कि हरिद्वार की राजनीति में कई मुद्दे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तर्ज पर उठते रहे हैं।

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