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EXCLUSIVE: 'जब तक सूर्य रहेगा, तब तक सनातन रहेगा'; रविंद्र पुरी बोले- शुरू से शांत प्रकृति के रहे हैं सनातनी

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (महानिर्वाणी) के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने कहा कि सनातन धर्मावलंबी शुरू से ही शांत प्रकृति के रहे हैं। हूण शक पुर्तगाली व मुस्लिम आक्रांता भारत आए और अपनी-अपनी तरह से सनातन पर हमले किए लेकिन वह उसे नष्ट नहीं कर पाए। उन्होंने कहा कि सनातन सूर्य से पैदा हुआ है इसलिए जब तक सूर्य रहेगा तब तक सनातन रहेगा।

By Jagran NewsEdited By: Sonu GuptaUpdated: Sat, 30 Sep 2023 08:52 PM (IST)
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सनातन सूर्य से पैदा हुआ हैः रविंद्र पुरी।

अनूप कुमार सिंह, हरिद्धार। सनातन एक वैदिक पद्धति होने के साथ जीवन जीने की कला भी है। इसमें गर्भ से लेकर परलोक गमन तक के सभी सोलह संस्कार समाहित हैं। हाल ही में सनातन पर की गई अशोभनीय और अमर्यादित टिप्पणियों के बीच यह जानना-समझना अपरिहार्य है कि सनातन ऐसी जीवन पद्धति है, जो पृथ्वी लोक में आने के बाद मनुष्य को जीवन जीने के तरीके सिखाती है।

सनातन पर हुए अनगिनत आक्रमणः रविंद्र पुरी

इतिहास खंगाला जाए तो स्पष्ट होता है कि सनातन पर अनगिनत आक्रमण हुए हैं, किंतु वे इसके अति समृद्ध और सशक्त आधार को हिला तक नहीं सके। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि हालिया समय में राजनीति में सनातन पर शब्दबाण चलाने की प्रवृत्ति बढ़ी है। इस संदर्भ में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (महानिर्वाणी) के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी का स्पष्ट कहना है कि सनातन का संबंध सूर्य से है और जब तक सूर्य का प्रकाश रहेगा, तब तक सनातन अक्षुण्ण रहेगा।

दैनिक जागरण के हरिद्धार के संवाददाता अनूप कुमार सिंह ने सनातन धर्म के इतिहास, वर्तमान और भविष्य तथा इसको राजनीति में निशाना बनाए जाने जैसे महत्वपूर्ण और प्रासंगिक विषयों पर श्रीमहंत से विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश:-

सवाल- सनातन धर्म पर पहले भी आक्रमण हुए हैं। ताजा हमला किन अर्थों में पहले से अलग है?

जवाब- सनातन धर्मावलंबी शुरू से ही शांत प्रकृति के रहे हैं। हूण, शक, पुर्तगाली व मुस्लिम आक्रांता भारत आए और अपनी-अपनी तरह से सनातन पर हमले किए, लेकिन वह उसे नष्ट नहीं कर पाए। शिवाजी महाराज ने कहा था कि तुलजा भवानी का मंदिर तोड़ने से तुलजा भवानी नहीं टूट सकतीं, ठीक उसी प्रकार वाणी से आक्षेप लगाकर कोई सनातन को नुकसान नहीं पहुंचा सकता, सिवाय विश्व के समक्ष अपनी मूर्खता प्रमाणित करने के। सनातन के विरोध में बयान देने वालों ने उसका कोई नुकसान नहीं किया है। मेरी दृष्टि में जो सनातन धर्मावलंबी निद्रा में थे, उन्होंने उसे जगाने का ही काम किया।

सवाल- इस आक्रमण का प्रतिकार कैसे करना चाहिए? क्या यह लड़ाई राजनीति के अखाड़े में लड़ी जाएगी?

जवाब- जब सृष्टि की रचना हुई, तभी से सनातन धर्म की परंपराएं चली आ रही हैं। सनातन सूर्य से पैदा हुआ है, इसलिए जब तक सूर्य रहेगा, तब तक सनातन रहेगा। इसे न कोई ताकत नष्ट कर पाई है और न ही कर पाएगी। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पुत्र और राज्य सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन को लेकर जो बयान दिया है, उसकी निंदा संतों और धार्मिक संगठनों ने की है। सरकार से उन पर संविधान के तहत कार्रवाई की मांग की गई है। संविधान के अनुसार, पुलिस से भी शिकायत की गई है, लेकिन उन्हें अपनी राजनीतिक लड़ाई में धर्म को बीच में नहीं लाना चाहिए था। तमिलनाडु ऐसा राज्य है, जहां भगवान श्रीराम ने रामेश्वर धाम की स्थापना की। वहां हजारों मंदिर हैं और लाखों लोगों की आजीविका सनातन धर्म को मानने वालों व धार्मिक पर्यटन से चलती है। ऐसे राज्य की सरकार के मंत्री का सनातन धर्म की निंदा करना उनकी नासमझी है। सनातन धर्म की निंदा करने वालों को भगवान सद्बुद्धि दें, मैं ऐसी कामना करता हूं।

सवाल- इस लड़ाई में संत-महात्माओं की क्या भूमिका है?

जवाब- संतों का मूल दायित्व ही सनातन धर्म की रक्षा करना है। हम लोग वेद और शास्त्रों का अध्ययन करते हैं, लेकिन इसके साथ हमें शस्त्र की भी शिक्षा दी जाती है। अखाड़ों की यह परंपरा रही है कि जब-जब विदेशी आक्रांताओं ने सनातन धर्म, उसके धर्मस्थल और धार्मिक परंपराओं को आघात पहुंचाने की चेष्टा की, तब-तब संन्यासियों ने उसका पुरजोर प्रतिकार किया। इसके लिए शस्त्र और बल का भी प्रयोग किया गया। ऐसी परिस्थिति अगर फिर सामने आएगी तो संन्यासी शस्त्र उठाने से पीछे नहीं हटेंगे।

सवाल- सनातनधर्मी और उनके विरोधियों के बीच इस संघर्ष का क्या परिणाम निकलेगा?

जवाब- असल में यह एक राजनीतिक संकट है। लोकसभा का चुनाव करीब आ रहा है तो कुछ राजनीतिक दल अपने राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए जान-बूझकर सनातन पर आक्रमण कर रहे हैं। उदयनिधि स्टालिन के अलावा उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मंत्री भी समय-समय पर इस तरह के बयान देते हैं। उनके दल के मुखियाओं को इस बारे में सोचना चाहिए कि सनातन धर्म को मानने वाले केवल भारत में नहीं, अपितु 180 राष्ट्रों में रहते हैं। सनातन धर्म की स्थापना के लिए आदि शंकराचार्य ने दिग्विजय अभियान चलाया था। वर्तमान में भी भारत के विभिन्न राज्यों में हजारों की संख्या में संन्यासी रहते हैं। अगर सनातन धर्म पर किसी प्रकार का संकट आता है तो हम सर्वप्रथम भारतीय संविधान के अनुसार न्याय और दंड की जो व्यवस्था है, उसके माध्यम से प्रतिकार का प्रयास करेंगे। फिर भी नहीं माने तो प्रतिकार की जिस विधि को वह स्वीकार करेंगे, उसी के अनुसार उनका प्रतिकार किया जाएगा। वैसे, मुझे उम्मीद है कि इसका परिणाम सुखद निकलेगा। भगवान शिव ऐसे व्यक्तियों को सद्बुद्धि देंगे।

सवाल- सनातन धर्म उन अर्थों में धर्म नहीं है, जिन अर्थों में इस्लाम या ईसाई। सनातन तो एक जीवन पद्धति है। ऐसे में क्या इसके विरोधी इसे धर्म के नजरिये से देखने की गलती कर रहे हैं?

जवाब- सच्चे अर्थों में तो विश्व में धर्म केवल एक ही है, सनातन। बाकी उसके अंश हैं। धर्म शब्द का निर्माण 'धृ' धातु से हुआ है, जिसका आशय है धारण करना। ईसाई और इस्लाम पंथ हैं। सनातन कभी नष्ट नहीं होता। सनातन सर्वव्यापक सिद्धांत को मानता है, ईष्ट देवता के आधार पर चलता है, व्यक्तिवाद पर नहीं चलता। इसकी निंदा करने वाले बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। उन्हें अपनी इस भूल के लिए प्रायश्चित करना चााहिए। मैं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन से आग्रह करूंगा कि वह अपने पुत्र को किसी योग्य मानसिक रोग विशेषज्ञ को दिखाएं। वह कहीं न कहीं भ्रांति के वशीभूत होकर यह काम कर रहे हैं।

सवाल- क्या कारण है कि सनातन धर्म ही आक्रमण के केंद्र में रहता है? अन्य धर्मों के साथ इस प्रकार का व्यवहार नहीं दिखता, राजनीतिक स्तर पर तो कतई नहीं?

जवाब- सनातन धर्म पृथ्वी की तरह सहनशील है और सहनशीलता ही मनुष्य का सबसे बड़ा हथियार होता है। जो लोग धूर्त होते हैं, वह कई बार सहनशील लोगों को कमजोर समझ लेते हैं। यह उनकी मूर्खता है। कोई भी सनातन को कमजोर समझने की चेष्टा न करे। आज सनातन के करोड़ों सैनिक हैं, जो इसकी रक्षा के लिए प्राण न्योछावर करने से भी पीछे नहीं हटेंगे। इतिहास साक्षी है, सनातन सैनिकों ने पूर्व में विदेशी आक्रांताओं के हमले के दौरान यह करके दिखाया भी। भगवान न करे कि ऐसी परिस्थिति आए, लेकिन याद रखिये जब परिस्थिति बिगड़ी तो भागवन राम ने भी मर्यादा को स्थापित करने के लिए सीमा पार की थी। अखाड़ा परिषद के लाखों संन्यासी और उनके अनुयायी हैं, जो हमेशा हर परिस्थिति से निपटने को तैयार हैं।

सवाल- सनातन में संतों की सबसे बड़ी धार्मिक संस्था होने के नाते क्या अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद भी अपने स्तर पर कोई ऐसी व्यवस्था करेगी, जिससे इस तरह की प्रवृत्ति पर रोक लगाई जा सके?

जवाब- मैं सनातन धर्मावलंबियों और जन साधारण से अपील करूंगा कि इस प्रकार की गतिविधियों का गांव, ब्लाक, तहसील, जिला और राज्य स्तर पर विरोध करें। धर्माचार्य भी अपने स्तर पर इसके लिए प्रयास करते रहें। जब भी सामूहिक स्तर पर कोई बड़ा कार्यक्रम होता है, उसमें इन बातों को चर्चा में लाया जाता है। नवंबर में काशी में संपूर्ण भारत के सभी वर्ग, समुदाय और अखाड़ा परिषद के संत-महात्माओं की बैठक होने जा रही है। उसमें इस विषय पर मंथन के साथ समाधान की नीति तैयार करने पर चर्चा होगी। सबको चेतन किया जाएगा कि इसका प्रतिकार करना आवश्यक है, क्योंकि आज सनातन धर्म पर जिस प्रकार कुठाराघात किया अथवा कराया जा रहा है, आतंकी और अलगाववादी तत्वों को बढ़ावा दिया जा रहा है, उस पर शासन से प्रभावी अंकुश नहीं लग पा रहा। इसके लिए धर्माचार्यों को सामूहिक तौर पर जनता का सहयोग लेकर प्रयास करना पड़ेगा। बैठक में पारित प्रस्ताव राज्य व केंद्र सरकार को अमल में लाने के लिए दिया जाएगा।

सनातन मान्यताओं व देवी-देवताओं के उपहास की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने योजना बनाई है। इस संबंध में केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर से मांग की गई थी। उन्होंने आश्वासन दिया है कि फिल्म सेंसर बोर्ड में आगे से इस तरह की कोई कृति आती है तो दिल्ली में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के जो प्रतिनिधि हैं, उन्हें दिखाने के बाद उनकी सहमति से ही उस कृति को अनुमति दी जाएगी। संसार में विश्वास और आश्वासन पर ही समाज चलता है। देखते हैं कि आगे क्या होता है।

सवाल- फिल्मों से लेकर इंटरनेट मीडिया तक सनातन मान्यताओं व देवी-देवताओं का उपहास करने की प्रवृत्ति बीते कुछ वर्षों में बढ़ी है। क्या इसके पीछे यह कारण है कि पहले-पहल ऐसा होने पर हिंदू समाज की ओर से इसका कठोर प्रतिकार नहीं किया गया? हिंदू समाज का वर्गों में बंटा होना भी क्या इसका एक कारण है?

जवाब- कहीं न कहीं हिंदू समाज के धर्माचार्य, ब्राह्मण और आचार्यों में नैतिक व धार्मिक पतन हुआ है। मैं इसे स्वीकार करता हूं, इसमें मुझे कोई संकोच नहीं। समय-समय पर ऐसी परिस्थितियां पैदा की जाती हैं कि हिंदू समाज निद्रा में रहे, लेकिन अब जागृति आई है। पिछले 50-60 वर्ष का फिल्मों का इतिहास देखें तो उनमें भी सनातन पर कुठाराघात की चेष्टा की गई है। कुछ लोगों ने उसका विरोध भी किया था, पर अब सनातन धर्मावलंबी जाग गए हैं। यह फिल्म निर्माण करने वाली कंपनियां, उसके निर्देशक और अभिनेता भी देख रहे हैं। रही बात अन्य धर्मों के साथ इस प्रकार का व्यवहार नहीं दिखने की तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आशय यह नहीं है कि हम किसी की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन करें। इंटरनेट मीडिया के माध्यम से जो किया अथवा कराया जा रहा है, उसके लिए भारत सरकार का कानून है। सरकार ऐसे फर्जी चैनल इत्यादि के विरुद्ध समय-समय पर कार्रवाई करती है।

सनातन अपने आप में इतना पुराना और सहनशील है कि हम कभी भी किसी मत, पंथ या धर्म के धर्माचार्य अथवा उनके ईष्ट देवता की न कभी निंदा करते हैं, न ही प्रतिकार करते हैं। यहां जो भी लोग आए, हमने सभी को आश्रय दिया है। वह पारसी हो, यहूदी हो, मुस्लिम हो, ईसाई हो, इसलिए हम लोग भारतीय संविधान और कानून के अनुसार इसका प्रतिकार करने की चेष्टा करेंगे। महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण कहे हैं कि कर्म के आधार पर ही व्यवस्था चलती है। इसमें कहीं न कहीं कमजोरी आई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने धर्मस्थलों के पुनरुद्धार की जो योजना चलाई है, बड़े-बड़े धर्मस्थान और सनातन धर्मावलंबियों को जोड़ने का जो अभियान चलाया है, वह जातिवाद, वर्ण और समाज के भेद को समाप्त करेगा, हमें ऐसी आशा है।

सवाल- मान लीजिए कि ऐसा नहीं होता तो क्या?

जवाब- सभी धर्मों को संविधान में समान अधिकार दिया गया है, लेकिन कई बार किसी धर्म विशेष के प्रति कार्य होते हैं। ऐसे कई काम हुए, जैसे केरल में वहां की सरकार द्वारा पद्मनाभ मंदिर का अधिग्रहण हुआ, हम लोगों ने उच्चतम न्यायालय में इसके विरोध में वाद दाखिल किया और उसे वापस कराया। इसी प्रकार तिरुपति बालाजी मंदिर ट्रस्ट का पैसा ईसाई मिशनरियों को सहायता करने के लिए वहां के मुख्यमंत्री ने दिया। उसका विरोध हमने उच्च न्यायालय से उच्चतम न्यायालय तक किया और 186 करोड़ रुपये वापस प्राप्त किए। जब-जब ऐसी परिस्थिति आती है, हम संविधान के अनुसार ही काम करते हैं। प्रयास यही रहता है कि पहले वार्तालाप से मामला हल हो, बाद में कोई अन्य निर्णय लिया जाए।

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