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देश में पहली बार रुड़की से कलियर के बीच चली थी ट्रेन, जानिए इतिहास

भारत में रेल का इतिहास सवा सौ साल पहले 22 दिसंबर 1851 को ही लिखा जा चुका है। पहली रेल ने रुड़की से पिरान कलियर तक करीब पांच किलोमीटर की दूरी तय की थी।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sat, 22 Dec 2018 08:33 PM (IST)
देश में पहली बार रुड़की से कलियर के बीच चली थी ट्रेन, जानिए इतिहास
रुड़की, जेएनएन। भले ही इतिहास में इस बात का उल्लेख है कि रेल के सफर की शुरुआत देश में 16 अप्रैल 1853 में हुई थी। यह ट्रेन मुबई से थाणे के बीच चली थी। इस ट्रेन ने एक घंटे में लगभग 32 किमी का सफर तय किया, लेकिन हकीकत इससे अलग है। भारत में रेल का इतिहास सवा सौ साल पहले 22 दिसंबर 1851 को ही लिखा जा चुका है। पहली रेल ने रुड़की से पिरान कलियर तक करीब पांच किलोमीटर की दूरी तय की थी।

इतिहास के पन्नों पर नजर डाले तो हरिद्वार से कानपुर के बीच पांच सौ किलोमीटर लंबी गंग नहर बनाने वाले तत्कालीन इंजीनियर कर्नल प्रो बीटी कॉटले ने गंगनहर पर लिखी अपनी रिपोर्ट 'रिपोर्ट ऑन द गंगनहर कैनाल वर्क्स' में इसके बारे में बताया है। यह रिपोर्ट आज भी रुड़की स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) की सेंट्रल लाइब्रेरी में मौजूद है। 

सोलानी नदी बनी थी चुनौती 

साल 1837-38 में उत्तर पश्चिमी प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) में जबरदस्त सूखा पड़ा था। तब ईस्ट इंडिया कंपनी को राहत कार्यों पर करीब एक करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। ऐसे में तत्कालीन सरकार ने गंगा से नहर निकालने का फैसला लिया और इसकी जिम्मेदारी कर्नल कॉटले को सौंपी गर्इ। रिपोर्ट के अनुसार कॉटले के सामने रुड़की के पास बहने वाली सोलानी नदी चुनौती बन गई। समस्या यह थी कि नहर को नदी के बीच से कैसे लाया जाए। इसका उन्होंने नायाब हल तलासा। 

कॉटले ने लिया रेल ट्रैक बनवाने का फैसला

तय किया गया कि नदी के ऊपर पुल (एक्वाडक्ट यानी जलसेतु) बना नहर को गुजारा जाए। पुल निर्माण के लिए नदी में खंभे बनाए जाने थे और इसके लिए खुदाई करनी थी। इस दौरान ये तय किया गया कि भारी मात्रा में निकलने वाले मलबे को कलियर के पास डाला जाए। समस्या यह थी कि घोड़े और खच्चरों से इस पर भारी लागत आने के साथ ही समय भी ज्यादा लगना था। कॉटले ने इसके लिए रेल ट्रैक बनवाने का फैसला लिया। इसके लिए उन्होंने लंदन से उपकरण मंगवाए और वहीं के विशेषज्ञों से रुड़की में ही इंजन और चार वैगन तैयार कराईं। इंजन का नामकरण उत्तर पश्चिमी प्रांत के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गर्वनर सर जेम्स थॉमसन के नाम पर किया गया।

हालांकि बाद में इसको बदल स्वीडन की प्रसिद्ध गायिका जेनी लिंड के नाम पर रखा गया। भाप से चलने वाले इस इंजन की सहायता से दो वैगनों में एक बार में 180 से 200 टन मिट्टी ढोई गई। 

इंजन की रफ्तार थी 6.4 किलोमीटर प्रति घंटा

इंजन की रफ्तार 6.4 किलोमीटर प्रति घंटा थी और पूरे एक साल यानी दिसंबर 1852 तक यह पटरियों पर दौड़ता रहा। दो साल बाद 1854 में गंगनहर का निर्माण पूरा हो गया। नहर को बनने में 12 साल लगे।

स्टेशन में है जेनी लिड इंजन का मॉडल

भारतीय रेल के 150 वर्ष पूरे होने पर वर्ष 2003 में जेनी लिंड इंजन का मॉडल रुड़की रेलवे स्टेशन पर स्थापित किया गया। अमृतसर स्थित रेल कारखाने में तैयार इस मॉडल से कुछ वर्ष पहले तक प्रत्येक शनिवार और रविवार शाम चार से छह बजे तक छुक-छुक आवाज भी सुनी जा सकती थी। लेकिन रखरखाव के अभाव में अब यह शांत खड़ा रहता है।

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