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संत की कलम से: विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है कुंभ- श्रीमहंत रविंद्रपुरी

Haridwar Kumbh 2021 लोक आस्था और सनातन संस्कृति का पर्व कुंभ विविधताओं से भरा हुआ है। यह एक ऐसा धार्मिक आयोजन है जोकि देवी-देवताओं की आज्ञा और विशेष नक्षत्रीय संयोग नें आयोजित होता है। जोकि देवी-देवताओं की आज्ञा और विशेष नक्षत्रीय संयोग में होता है

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sat, 02 Jan 2021 11:37 AM (IST)
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श्रीमहंत रविंद्रपुरी, सचिव, श्रीपंचदशनाम् निरंजनी आखाड़ा, अध्यक्ष, मां मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट। जागरण
Haridwar Kumbh 2021 कुंभ विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। लोक आस्था और सनातन संस्कृति का ये पर्व विविधताओं से भरा हुआ है। यह एक ऐसा धार्मिक आयोजन है, जोकि देवी-देवताओं की आज्ञा और विशेष नक्षत्रीय संयोग में होता है। सूर्य, चंद्र और बृहस्पति देवासुर संग्राम के समय अमृत कुंभ की रक्षा करते रहे। इन तीनों का संयोग जब विशिष्ट राशि पर होता है, तब कुंभ योग आता है।

समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत की बूंदे धरती लोग की दिन चार जगहों प्रयागराज, धर्मनगरी हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में जिन विशेष नक्षत्रीय योग में गिरी थी, उन्हीं के संयोग से इन स्थानों पर 12 वर्ष के कालखंड में कुंभ का आयोजन होता है। नक्षत्रों के इस विशेष संयोग के दौरान कल-कल बहती मोक्षदायिनी पतित पावनी श्री मां गंगा का पावन जल अमृतमयी हो जाता है। विशेष नक्षत्र विशेष स्थितियों में पावन गंगा के पवित्र जल के पूजन और स्नान मात्र से ही समस्त पापों और कष्टों का निवारण हो जाता है। आत्मा शुद्ध हो जाती है और परमात्मा का अंतः करण में वास हो जाता है। 

धरती लोक में चार जगह पर कुंभ होते हैं, लेकिन इसमें सबसे अधिक मान्यता प्रयागराज और हरिद्वार कुंभ की है। हरिद्वार कुंभ में गंगा घाटों की सुंदरता और अलौकिक छटा देखते ही बनती है। धर्म और अध्यात्म की गंगा यहां दिन-रात बहती है और कुंभ में आने वाले श्रद्धालु उसमें हर वक्त गोते लगाते रहते हैं। चारों ओर गंगा और कुंभ का महामात्य बिखरा रहता है। 

संत महात्मा ऋषि मुनि गंगा तट पर धर्म आध्यात्मिक की कथा करते हैं और विश्व शांति, विश्व बंधुत्व की कामना करते है।  कुंभ का आयोजन न सिर्फ धर्म अध्यात्म को बढ़ावा देता है, बल्कि आयोजन स्थल और उसके आसपास के क्षेत्रों में विकास की गंगा बहाता है। इसके साथ ही आर्थिकी को भी मजबूत करता है। कुंभ एक अलौकिक आयोजन है, जिसकी महत्ता शब्दों में बयां नहीं की जा सकती। 

'वसंते विषुवे चैव घटे देवपुरोहिते।

गंगाद्वारे च कुन्ताख्‍य: सुधामिति नरो यत:।।' 

[श्रीमहंत रविंद्रपुरी, सचिव, श्रीपंचदशनाम् निरंजनी आखाड़ा, अध्यक्ष, मां मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट]

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