संत की कलम से: देव संस्कृति की अनमोल धरोहर है कुंभ महापर्व- डॉ. प्रणव पण्ड्या
Haridwar Kumbh 2021 कुंभ भारतीय संस्कृति का महापर्व है। इस पर्व पर स्नान दान ज्ञान मंथन के साथ ही अमृत प्राप्ति की बात कही जाती है। हरिद्वार प्रयागराज उज्जैन और नासिक में प्रत्येक छः वर्ष में अर्धकुंभ और 12 वर्ष में पूर्णकुंभ का आयोजन होता है।
By Raksha PanthriEdited By: Updated: Sun, 31 Jan 2021 12:28 PM (IST)
Haridwar Kumbh 2021 कुंभ भारतीय संस्कृति का महापर्व है। इस पर्व पर स्नान, दान, ज्ञान मंथन के साथ ही अमृत प्राप्ति की बात कही जाती है। पुराणों में कथा है कि कश्यप ऋषि का विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्रियों दिति और अदिति के साथ हुआ था। अदिति से देवों की उत्पत्ति हुई और दिति से दैत्य। एक बार देवताओं और दैत्यों ने समुद्र में छिपी विभूतियों को प्राप्त करने के लिए समुद्र-मंथन किया। इससे 14 रत्न प्राप्त हुए, जिनमें से एक अमृत कलश भी था। देवता और दैत्य दोनों चाहते थे कि अमृत उन्हें मिले, वे उसे पीकर अमर हो जायें।
अमृत पाने के लिए दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया। स्थिति को बिगड़ता देख देवराज इंद्र ने अपने पुत्र जयंत को संकेत किया। जयंत अमृत कलश लेकर भाग गया और दैत्य उसका पीछा करते रहे। अमृत कलश को सुरक्षित रखने में बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा ने बचाया। फिर भी कलश से चार बूंदें छलक गयीं। ये हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिरीं। इन्हीं चार नगरों में प्रत्येक छः वर्ष में अर्धकुंभ और 12 वर्ष में पूर्णकुंभ का आयोजन होता है। इन आयोजनों में बड़ी संख्या में लोग अमृत प्राप्ति की कामना से भाग लेते हैं। अग्नि पुराण में लिखा गया है कि कुंभ स्नान करना करोड़ों गायें दान करने के बराबर होता है। इनमें स्नान, दान, ज्ञान मंथन, मुण्डन आदि का विशेष महत्त्व बताया गया है। आज यह एक विचारणीय प्रश्न है कि वह अमृत कौन सा है, जो कुंभ में प्राप्त होता है या हो सकता है?
ज्योतिषिय गणना
ज्योतिषियों के अनुसार बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है। कुंभ के दौरान ग्रहों की स्थिति हरिद्वार से बहती गंगा के किनारे पर स्थित हर की पौड़ी पर गंगाजल को औषधिकृत करती है। उन दिनों यह अमृतमय हो जाती है। यही कारण है कि अपनी अंतरात्मा की शुद्धि के लिए पवित्र स्नान करने लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से अर्ध कुंभ के काल में ग्रहों की स्थिति एकाग्रता तथा ध्यान साधना के लिए उत्कृष्ट होती है।
पुण्य और पाप
वस्तुतः जिन्हें हम धर्म-कर्म मानते हैं, वे संस्कार, सद्विचार एवं सद्भावों को जीवन में आत्मसात करने का अभ्यास है। हमारे ऋषियों-मनीषियों ने इनके माध्यम से जो विचार और व्यवहार व्यक्ति की प्रगति और समाज की उन्नति के लिए आवश्यक है, उसे जीवन के अभ्यास में लाने की मनोवैज्ञानिक ढंग से व्यवस्था बनाई। नर-नारी, बच्चे से लेकर बूढ़े और समाज के हर शिक्षित-अशिक्षित व्यक्ति की इन कार्यों के प्रति आस्था बनी रहे, इसके लिए इन्हें 'पुण्य कर्म' कहा गया। जो कर्म मानवीय प्रगति और सामाजिक उन्नति में बाधक हैं उन्हें 'पाप कर्म' मानकर उनसे दूर रहने की प्रेरणा दी गई।
हिन्दु धर्म में पुण्यदायी परम्पराओं में से एक है 'कुंभ में स्नान'। हमारे पुराण आदि आर्ष ग्रंथों में अनेक तथ्यों को अलंकारिक ढंग से भी प्रस्तुत किया गया है, ताकि जनमानस की उन पर आस्था प्रगाढ़ हो, उन्हें सहजता से समझा और याद रखा जा सके। ईश्वर ने मनुष्यमात्र को एक समान बनाया है, लेकिन उनमें स्वार्थी और परोपकारी लोगों का अस्तित्व सदा से रहा है। जो परोपकारी हैं और समाज का भला चाहते हैं वे देवता और जो दूसरों के लिए पीड़ादायक होते हैं, मानवीय गरिमा को छोड़कर दूसरों के हिस्से का धन-साधन बटोरते रहते हैं, वे दैत्य प्रकृति के होते हैं।
कुंभ का अमृत है सद्ज्ञान जिस अमृत को पीकर अमर हो जाने की कल्पना आम जनमानस में है, वैसा अमृत आज तक तो किसी को मिला नहीं है। वस्तुतः ज्ञान ही वह अमृत है, जिसे पाकर और जीवन में अपनाकर बुद्ध, महावीर, नानक, गोविंद, ईसा, मुहम्मद, पैगंबर से लेकर गांधी-विनोबा जैसे महापुरुष इतिहास में अजर-अमर हो गये। सद्ज्ञान ही वह अमृत है जिसके पयपान से मनुष्यता का मोल समझ में आता है। ज्ञान से ही अंतर्निहित अकूत शक्तियों को जगाने और संभावनाओं को साकार करने का अवसर मिलता है। ज्ञान से व्यक्ति सादगीपूर्ण जीवन में भी स्वर्ग जैसे सुख और शांति की अनुभूति कर सकता है। सद्ज्ञान का अभाव है तो कुबेर का धन और स्वर्ग जैसे साधन पाकर भी वह सदा हताश, निराश, बेचैन और चिंताग्रस्त ही रहेगा।
आपके द्वार पहुंचा हरिद्वार कुंभ मेलों में ज्ञानदान की जो प्राचीन पुण्य परंपरा थी, उसे पुष्ट करने के लिए एक सशक्त विचार क्रांति अभियान चलाने की आवश्यकता है। हरिद्वार के इस महाकुंभ में कोरोना के कारण अनेकानेक श्रद्धालु कुंभ स्नान के लिए पहुंच नहीं पायेंगे। श्रद्धालुओं की इन्हीं भावनाओं को पोषित करने के लिए गायत्री परिवार ने घर घर गंगाजल, वेदमाता गायत्री और सद्ज्ञान की प्रतीक युग साहित्य को जन जन तक पहुंचाने के लिए एक वृहत योजना पर काम कर रहा है। इसके लिए शांतिकुंज की टोलियां और क्षेत्रीय परिजनों की हजार से अधिक टोलियां घर-घर गंगाजल पहुंचाने में जुटीं हैं।
[डॉ. प्रणव पण्ड्या, अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख और देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति]यह भी पढ़ें- संत की कलम से : सनातन संस्कृति-लोक आस्था का विश्व पर्व, महाकुंभ - बाबा हठयोगी
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