संत की कलम से: कुंभ है सनातन संस्कृति का शिखर पर्व- स्वामी कैलाशानंद ब्रह्मचारी
Haridwar Kumbh 2021 सनातन धर्म और कुंभ का आपसी संयोग धार्मिक आस्था और विश्वास की पराकाष्ठा है। कुंभ सनातन धर्म-संस्कृति का शिखर पर्व है। यह एक ऐसा दैवीय आयोजन है जिसमें समस्त देवी-देवताओं का वास होता है और जिसे कभी टाला नहीं जा सकता है।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Wed, 30 Dec 2020 10:11 AM (IST)
संत की कलम से, हरिद्वार। Haridwar Kumbh 2021 सनातन धर्म और कुंभ का आपसी संयोग धार्मिक आस्था और विश्वास की पराकाष्ठा है। कुंभ सनातन धर्म-संस्कृति का शिखर पर्व है। यह एक ऐसा दैवीय आयोजन है, जिसमें समस्त देवी-देवताओं का वास होता है और जिसे कभी टाला नहीं जा सकता।
समुद्र मंथन से निकले अमृत को लेकर देवताओं और असुरों में हुए संग्राम से इस का उदय हुआ। यही वजह है कि कुंभ जितना प्रिय धरती के निवासियों को है इसमें उतनी ही आस्था देवी और देवताओं की भी है। विशेष ज्योतिष गणना और नक्षत्रीय संयोग में स्थापित होने वाले कुंभ के विशेष पर्व पर सभी देवी-देवताओं की उपस्थिति रहती है और गंगाजल अमृत स्वरूप में प्रवाहित होता है। दैवीय आयोजन होने के कारण इसके लिए विशेष नक्षत्र और ज्योतिषी गणना का महत्व है। गुरु बृहस्पति के कुंभ राशि और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने से बने विशेष योग पर आयोजित होने वाले हरिद्वार कुंभ का अपना अलग स्थान और महत्व है। इसका पता इस बात से भी चलता है कि इस बार यह विशेष योग 12 वर्षों की बजाय 11 वर्ष में पड़ रहा है। इसीलिए इस बार कुंभ 11 वर्ष में ही आयोजित हो रहा है। यह विशेष योग कई साल में एक या दो बार ही बनती है।
नक्षत्रों का यह विशेष संयोग मोक्षदायिनी पतित पावनी गंगा के पावन और औषधिय गुण युक्त जल को अमृतमयी बना देता है। अलौकिक पावन परिस्थिति में गंगा के पवित्र जल के पूजन और स्नान मात्र से ही व्यक्ति मृत्यु लोक की तरह ही स्वर्ग लोक की प्राप्ति का भी हकदार बन जाता है। सभी पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं। आत्मा का परमात्मा से साक्षात्कार हो जाता है। कुंभ के 12 वर्ष के एक कालखंड में 12 कुंभ का आयोजन होता है। आठ देवलोक में और चार धरती लोक में। समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत की बूंदे धरती लोक की जिन चार जगहों प्रयागराज, धर्मनगरी हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में विशेष नक्षत्रीय योग में गिरी थी, वहीं कुंभ का आयोजिन होता है।
[तपोनिष्ट महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद ब्रह्मचारी, पीठाधीश्वर सिद्ध पीठ श्री दक्षिण काली मंदिर]यह भी पढ़ें- संत की कलम से: देवलोक से धरती लोक तक होता है कुंभ- स्वामी अवधेशानंद गिरि
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