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Haridwar Kumbh Mela 2021: ग्रह चाल के कारण 11 वर्ष में हो रहा हरिद्वार कुंभ, एक सदी के अंतराल में पहली बार बना ऐसा संयोग

Haridwar Kumbh Mela 2021 कुंभ को सनातनी परंपरा का सबसे बड़ा अनुष्ठान कहा गया है। मान्यता है कि यह परंपरा समुद्र मंथन के बाद शुरू हुई जब अमृत कलश के लिए देव-दानवों के बीच संघर्ष के दौरान मृत्युलोक समेत अन्य लोकों में 12 स्थानों पर अमृत की बूंदें छलक गईं।

By Sumit KumarEdited By: Updated: Sat, 26 Dec 2020 11:05 PM (IST)
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कुंभ को सनातनी परंपरा का सबसे बड़ा अनुष्ठान कहा गया है।
दिनेश कुकरेती, देहरादून: Haridwar Kumbh Mela 2021 कुंभ को सनातनी परंपरा का सबसे बड़ा अनुष्ठान कहा गया है। मान्यता है कि कुंभ की यह परंपरा समुद्र मंथन के बाद तब शुरू हुई, जब अमृत कलश के लिए देव-दानवों के बीच हुए संघर्ष के दौरान मृत्युलोक समेत अन्य लोकों में 12 स्थानों पर अमृत की बूंदें छलक गईं। शास्त्रों के अनुसार इनमें से चार स्थान (हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक व उज्जैन) ही धरती पर हैं। शेष आठ स्थान अन्य लोकों में मौजूद हैं। धरती पर हर तीन वर्ष के अंतराल में हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक व उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है। यानी हर स्थान पर 12 साल के अंतराल में कुंभ आयोजित होता है। 2021 में यह योग हरिद्वार में बन रहा है, लेकिन 12 नहीं, बल्कि 11 साल बाद।

वैसे तो इस कुंभ को 2022 में होना था, लेकिन ग्रह चाल के कारण यह संयोग एक वर्ष पूर्व ही बन गया। खास बात यह कि ऐसा संयोग एक सदी के अंतराल में पहली बार बना है। सामान्यत: कुंभ 12 वर्ष के अंतराल में होता है। लेकिन, काल गणना के अनुसार गुरु का कुंभ और सूर्य का मेष राशि में संक्रमण होने पर ही कुंभ का संयोग (अमृत योग) बनता है। बीते एक हजार वर्षों में हरिद्वार कुंभ की परंपरा को देखें तो 1760, 1885 व 1938 के कुंभ 11 वर्ष में हुए थे। इसके 83 वर्ष बाद 2021 में यह मौका आ रहा है।    

ज्योतिषाचार्य स्वामी दिव्येश्वरानंद बताते हैं कि गुरु 11 वर्ष, 11 माह और 27 दिनों में बारह राशियों की परिक्रमा पूरी करता है। इस हिसाब से बारह वर्ष पूरे होने में 50.5 दिन कम रह जाते हैं। धीरे-धीरे सातवें और आठवें कुंभ के बीच यह अंतर बढ़ते-बढ़ते लगभग एक वर्ष का हो जाता है। ऐसे में हर आठवां कुंभ 11 वर्ष बाद होता है। 20वीं सदी में हरिद्वार मे तीसरा कुंभ 1927 में हुआ था और अगला कुंभ 1939 में होना था। लेकिन, गुरु की चाल के कारण यह 11वें वर्ष (1938) में ही आ गया। इसी तरह 21वीं सदी में आठवां कुंभ 2022 के स्थान पर 2021 में पड़ रहा है। हर सदी में कम से कम एक बार ऐसा संयोग अवश्य बनता है। 

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 ऐसे होती है कुंभ की गणना

ज्योतिषाचार्य स्वामी दिव्येश्वरानंद के अनुसार कुंभ की गणना एक विशेष विधि से होती है। इसमें गुरु का खास महत्व है। खगोलीय गणना के अनुसार गुरु एक राशि में लगभग एक वर्ष रहता है। बारह राशियों के भ्रमण में उसे 12 वर्ष समय लगता है। इस तरह प्रत्येक बारह साल बाद कुंभ उसी स्थान पर वापस आ जाता है। इसी प्रकार कुंभ के लिए निर्धारित चार स्थानों में हर तीसरे वर्ष क्रमवार कुंभ होता है। इन चारों स्थानों में प्रयागराज कुंभ का विशेष महत्व माना गया है। यहां 144 वर्ष के अंतराल में महाकुंभ का आयोजन होता है, क्योंकि देवताओं का 12वां वर्ष मृत्युलोक के 144 वर्ष बाद आता है।

हरिद्वार कुंभ-2021 में शाही स्नान

  • 11 मार्च, महाशिवरात्रि पर्व पर पहला शाही स्नान
  • 12 अप्रैल, सोमवती अमावस्या पर दूसरा शाही स्नान
  • 14 अप्रैल, बैशाखी पर्व पर तीसरा शाही स्नान
  • 27 अप्रैल, चैत्र पूर्णिमा पर चौथा शाही स्नान
 

कुंभ में अन्य महत्वपूर्ण स्नान

  • 14 जनवरी, मकर संक्रांति
  • 11 फरवरी, मौनी अमावस्या
  • 16 फरवरी, वसंत पंचमी
  • 27 फरवरी, माघ पूर्णिमा
  • 13 अप्रैल, नव संवत्सर
  • 21 अप्रैल, रामनवमी
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