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Haridwar News: स्वामी स्वरूपानंद के उत्तराधिकारियों की घोषणा का संत समाज का विरोध, इसे परंपरा के विरुद्ध बताया

Haridwar News संत समाज ने स्वामी स्वरूपानंद के उत्तराधिकारियों की घोषणा का विरोध किया। अखाड़ा परिषद और अखिल भारतीय संत समिति ने इसे संत परंपरा के विरुद्ध बताया। बता दें कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और स्वामी सदानंद सरस्वती को उत्तराधिकारी बनाया गया है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Tue, 13 Sep 2022 10:33 PM (IST)
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Haridwar News: स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और स्वामी सदानंद सरस्वती।

जागरण संवाददाता, हरिद्वार : Haridwar News ज्योतिर्मठ और द्वारका-शारदा पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारियों के तौर पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और स्वामी सदानंद सरस्वती की घोषणा का संत समाज ने विरोध किया है।

मान्यता देने से किया इन्कार

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और अखिल भारतीय संत समिति ने घोषणा के तौर-तरीकों को संत परंपरा के विरुद्ध और सुप्रीम कोर्ट की अवमानना बताया। समिति ने इसे अवैध करार देते हुए मान्यता देने से इन्कार कर दिया है।

श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर और जीवनदीप आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी यतींद्रानंद गिरि महाराज ने कहा कि उत्तराधिकारी की घोषणा (रस्म पगड़ी) कार्यक्रम, गृहस्थ में तेरहवीं के दिन और संत समाज में षोडषी यानी सोलहवें दिन होने वाले समारोह में की जाती है।

संत परंपरा के विरुद्ध बताया

ब्रह्मलीन गुरु को समाधि देने के समय इस तरह आनन-फानन में ऐसा करना किसी षडयंत्र का हिस्सा जान पड़ता है। उन्होंने दावा किया कि उन्हें निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि का भी समर्थन प्राप्त है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (निरंजनी) के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी महाराज ने इसे संत परंपरा के विरुद्ध बताया।

नई नियुक्ति की घोषणा न्यायालय की अवमानना

अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि ज्योतिर्मठ और द्वारका-शारदा पीठ पर एकाधिकार को लेकर स्वामी स्वरूपानंद का कुछ संतों के साथ विरोध-विवाद था। ज्योतिर्मठ का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, ऐसे में न्यायालय के अंतिम निर्णय से पहले नई नियुक्ति की घोषणा न्यायालय की अवमानना है।

श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरि महाराज ने कहा कि स्वरूपानंद सरस्वती ने न तो अपनी वसीयत लिखी थी और न ही किसी उत्तराधिकारी के नाम की घोषणा ही की थी। ऐसे में आनन-फानन में इच्छापत्र का हवाला देते हुए इस तरह की घोषणा गले नहीं उतरती है।

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