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20 हजार करोड़ की महत्वाकांक्षी नमामि गंगे परियोजना हुई थी लॉन्‍च, लेकिन आठ साल बाद भी 'राम तेरी गंगा मैली'

Pollution in Ganga नमामि गंगे परियोजना पर हजारों करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद हरिद्वार में गंगा नदी अभी भी प्रदूषित है। परियोजना की शुरुआत 2016 में हुई थी लेकिन आठ साल बाद भी गंगा साफ नहीं हो पाई है। उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार गंगा का पानी बिना ट्रीटमेंट के पीने योग्य नहीं है। परियोजना में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे हैं।

By Anoop kumar singh Edited By: Nirmala Bohra Updated: Sat, 23 Nov 2024 03:52 PM (IST)
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Pollution in Ganga: राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने मामले की जांच के निर्देश दिए हैं।
अनूप कुमार सिंह, जागरण हरिद्वार। Pollution in Ganga: महत्वाकांक्षी नमामि गंगे परियोजना की शुरुआत सात जुलाई 2016 को हरिद्वार में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री उमा भारती और संतों की उपस्थिति में हुई थी।

दावा था कि हरिद्वार में नए एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट), सीवेज पंपिग स्टेशन का निर्माण व उच्चीकरण, नई सीवरेज पाइप डालकर और एसटीपी के शोधित जल को नहरों के माध्यम से सिंचाई के लिए खेतों में भेजकर गंगा को निर्मल एवं अविरल बनाया जाएगा। लेकिन, अफसोस कि परियोजना शुरू हुए आठ वर्ष बीत गए, हजारों करोड़ रुपये अकेले हरिद्वार में ही खप गए और गंगा फिर भी मैली ही है।

उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार बिना ट्रीटमेंट उसका पानी पीने योग्य ही नहीं रह गया है। परियोजना के तमाम महत्वपूर्ण कार्य लापरवाही, अनदेखी व भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों को चिह्नित कर उनके विरुद्ध कार्रवाई के लिए कार्यक्रम निदेशक एसपीएमजी (स्टेट मिशन ïफार क्लीन गंगा) को जांच रिपोर्ट भेजने के लिए निर्देशित किया है।

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गलत तथ्य प्रस्तुत कर गुमराह भी किया गया

भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए शासन-प्रशासन को गलत तथ्य प्रस्तुत कर गुमराह भी किया गया। नमामि गंगे परियोजना के तहत एक ऐसी नहर का वर्चुअली उद्घाटन तक करा दिया गया, जो बिना उपयोग के अपने पहले ही ट्रायल में फेल हो गई थी। जबकि इस पर बजट पूरा खर्च हो चुका है।

दैनिक जागरण में भ्रष्टाचार के इस मामले को प्रमुखता से उठाने के बाद हुई एक से अधिक विभागीय जांच में न सिर्फ नहर निर्माण में हुआ भ्रष्टाचार प्रमाणित हुआ, बल्कि विभागीय जांच अधिकारियों ने भ्रष्टाचार के दोषी अधिकारियों को चिह्नित कर उन पर कार्रवाई की संस्तुति भी की।

उत्तराखंड सिंचाई विभाग के तत्कालीन विभागाध्यक्ष प्रमुख अभियंता सिंचाई मुकेश मोहन ने न सिर्फ इसे स्वीकार किया था, बल्कि स्पष्ट किया था कि ‘यह सही है कि तकनीकी स्वीकृति के इतर लचर तरीके से कराए गए निर्माण के कारण बिना इस्तेमाल के ही नहर ढह गई और करोड़ों रुपये के सरकारी धन की बर्बादी हुई। साथ ही गंगा की निर्मलता को बनाए रखने का उद्देश्य भी प्रभावित हुआ। बावजूद इसके विभागीय जांच में भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, कई तो समस्त सरकारी लाभ लेते हुए सेवानिवृत्त भी हो गए।’

बड़े-बड़े जनरेटर सेट खरीदे गए

इसी तरह एसटीपी तक सीवरेज जल पहुंचाने को शहरी क्षेत्र में बने सीवरेज पंपिंग स्टेशन को निर्बाध विद्युत आपूर्ति के लिए बड़े-बड़े जनरेटर सेट खरीदे गए, जबकि तमाम पंपिंग स्टेशन पर पहले से ही जनरेटर सेट मौजूद थे। नए तो आ गए, पर पुराने जनरेटर सेट का क्या हुआ, इसका विभाग के पास कोई जवाब नहीं है।

यही नहीं, गंगा की स्वच्छता को प्रतिदिन निकलने 120 एमएलडी सीवरेज जल के सापेक्ष मौजूद एसटीपी 27 एमएलडी की एक और 18-18 की दो एसटीपी की शोधन क्षमता को नाकाफी बताते हुए नई एसटीपी के निर्माण की आवश्यकता जताई गई थी।

दावा था कि यह सब अगले 20 से 30 वर्ष को ध्यान में रखकर बनाई गई योजना के तहत किया जा रहा है। ऐसा ही दावा सीवरेज पंपिंग स्टेशन निर्माण के लिए किया गया था, लेकिन वास्तविकता के धरातल पर ऐसा कुछ नहीं है, जिसकी पुष्टि पीसीबी की रिपोर्ट करती है।

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एनएमसीजी को हरिद्वार निवासी गंगा प्रेमी रामेश्वर गौड़ की 21 अक्टूबर 2024 को भेजी गई लिखित शिकायत में आरोप है कि भ्रष्टाचार में लिप्त जिम्मेदार अधिकारियों ने काम के साथ-साथ योजना निर्माण में भी घपला किया था, जिसके कारण नमामि गंगे परियोजना के तहत होने वाले कार्य अपने उद्देश्य को पूर्ण किए बिना शुरुआती वर्षों में ही धराशायी हो गए।

केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की ओर से एनएमसीजी के निदेशक तकनीकी डा. प्रवीण कुमार ने 18 नवंबर 2024 को भेजे अपने पत्र में कार्यक्रम निदेशक एसपीएमजी से इन्हीं मामलों की जांच कर जांच रिपोर्ट भेजने और कार्यवाही करने के संबंध में निर्देशित किया है।

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