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हिमालय में फ्लाईकैचर की नई प्रजाति की खोज, जानिए इसके बारे में

हिमालय क्षेत्र में सायोरनिस फ्लाईकैचर की एक नई प्रजाति और एक उपजाति की खोज करने में सफलता पाकर इतिहास रचा है।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Thu, 23 May 2019 09:25 PM (IST)
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हिमालय में फ्लाईकैचर की नई प्रजाति की खोज, जानिए इसके बारे में
हरिद्वार, जेएनएन। भारतीय हिमालय क्षेत्र में सायोरनिस फ्लाईकैचर की कई प्रजातियां प्रजनन करती हैं। जैसे ब्यू थ्रोटेड, पेल ब्लू, पेल चिन, लार्ज ब्लू फ्लाइकैचर आदि। यह सभी प्रजातियां दिखने में लगभग समान होती हैं, लेकिन इनके डिस्ट्रीब्यूशन रेंज के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की पक्षी संवाद और विविधता के मुख्य अन्वेषक प्रो. दिनेश भट्ट की शोध टीम ने वन्य जीव संस्थान देहरादून, शिकागो विश्वविद्यालय, स्वीडन विश्वविद्यालय और उत्तराखंड वन विभाग के पक्षी वैज्ञानिकों के सहयोग से सायोरनिस फ्लाईकैचर समूह की हिमालय क्षेत्र में एक नई प्रजाति और एक उपजाति की खोज करने में सफलता पाकर इतिहास रचा है। 

शोधार्थी छात्र आशुतोष सिंह ने कहा कि जब इन सभी फ्लाईकैचर में मोरफोलॉजिकल यानी रूप रंग में समानता है तो क्या इनके गीत संगीत की संरचना और डीएनए में भी समानता है या नहीं। वैज्ञानिक अवधारणा हाईपोथिसिस है कि एक समान दिखने वाले पक्षी एक ही जीनस प्रजाति के होने चाहिए। 

इस शोध में इस अवधारणा का टेस्ट किया गया। शोध टीम ने हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तर पूर्वी हिमालय क्षेत्र जैसे अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम आदि हिमालयी क्षेत्र में फ्लाईकैचर्स के गीतों की रेकार्डिंग और जैविक नमूना एकत्रित किया। पक्षी प्रजातियों और लैन्डस्कैप की फोटोग्राफी की गयी। 

गीतों के सैंपल का विश्लेषण साफ्टवेयर द्वारा की गयी। हर सैंपल के स्पेक्टोग्राम तैयार किए गए। अवधारणा के अनुसार दो विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में पाये जाने वाली समान प्रजाति के सांग संरचना और डायलेक्ट यानी क्षेत्रीय वाणी में अंतर आना चाहिए। आश्चर्य हुआ कि दो हजार किलो मीटर दूर उत्तर पश्चिम और पूर्वोत्तर हिमालय में रहने वाली सायोरनिस फ्लाईकैचर के गीतों की संरचना और लयवद्धता में विशेष अंतर नहीं था। वैज्ञानिक एकमत है कि अंतिम ग्लेशियेसन काल के बाद पश्चिम हिमालय में पूर्वी हिमालय से ही पक्षी प्रजातियां पहुंची है। तय हुआ कि बायोलॉजिकल सैंपल का विश्लेषण किया जाए। इसका विश्लेषण वन्य जीवन संस्थान देहरादून की फोरेंसिक लैब में किया गया। डीएनए संरचना के आधार पर प्रजातियों का टाइम केलिब्रेटेड फाइलोजेनेटिक ट्री बनाया गया। इससे पता चला कि फ्लाईकैचर की ष्रुविकोलाइडिस और डाईलिनसहेनिनस प्रजातियां 2.28 मिलियन वर्ष पूर्व अलग हो चुकी थी। वैसे भी डाईलिनस और हेनिनस प्रजातियां दशिण पूर्व एशिया के कुछ भू भागों में मिलती है जो आपस में प्रजनन नहीं करती। 

गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की जैव विविधता लैब में यह पहली बार पता लगाया गया कि भारतीय हिमालय में यह प्रजाति नई है। अध्ययन के दौरान यह प्रथम बार जानकारी आई कि फ्लाईकैचर सायरोनिस रुविकोलाईडिस की उपजाति हिमालय में प्रजनन करती है।

पक्षी वैज्ञानिक और विवि के कुलसचिव प्रोफेसर दिनेश भट्ट की प्रयोगशाला का यह शोध कार्य विट्रेन से विली ब्लैकवेंल द्वारा प्रकाशित आइबिस नामक विश्व प्रसिद्ध शोध पत्रिका में प्रकाशन के लिए स्वीकृत हुआ है। इस महत्वपूर्ण खोज पर कुलपति प्रो. विनोद कुमार, संकायाध्यक्ष प्रो. आरडी दुबे, परीक्षा नियंत्रक प्रो एमआर वर्मा, उप परीक्षा नियंत्रक प्रो पीसी जोशी, आइक्यूएसी के डायरेक्टर प्रो श्रवण कुमार आदि ने खुशी जताई। कहा ऐसे प्रकाशनों से विश्वविद्यालय की छवि अंतरराष्ट्रीय फलक पर निखरती है। 

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