रीना डंडरियाल, रुड़की। GI Tag:
देश की विरासतों को भौगोलिक संकेतक (जीआइ टैग) प्रमाण के माध्यम से संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार करना जितना जरूरी है उतना ही आवश्यक उन उत्पादों से जुड़े शिल्पकार, कारीगर, कलाकार, किसान आदि को आर्थिक लाभ पहुंचाना और इनसे जुड़ने के लिए अधिक लोगों को प्रोत्साहित करना भी है।
लेकिन, उत्तराखंड में यह योजना फलीभूत होती नजर नहीं आ रही।
अब तक प्रदेश में जिन उत्पादों को जीआइ टैग मिला है, उनसे जुड़े लोगों के आर्थिक व सामाजिक परिवेश में कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला है। यह बात भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की के प्रबंध अध्ययन विभाग की ओर से किए गए शोध में सामने आई है।
शुरुआत में प्रदेश के जिन नौ उत्पादों को जीआइ टैग मिले, उनमें से तीन उत्पादों को छोड़ दें तो कुछ उत्पादों में उससे जुड़े लोगों की संख्या में कमी आई तो कुछ में संख्या पूर्व की भांति ही बनी हुई है। इनसे जुड़े लोगों को आर्थिक लाभ भी नहीं हुआ। वर्तमान में भारत के 547, जबकि उत्तराखंड के 26 उत्पादों को जीआइ टैग मिला हुआ है।
इन उत्पादों पर किया शोध
आइआइटी रुड़की के प्रबंध अध्ययन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रजत अग्रवाल ने बताया कि प्रथम चरण में उत्तराखंड के तेजपत्ता, बासमती चावल, ऐपण कला, मुनस्यारी का सफेद राजमा, रिंगाल क्राफ्ट, थुलमा, भोटिया दन, च्यूरा आयल व ताम्र उत्पाद को जीआइ टैग मिला था। इन्हीं पर शोध किया गया।
प्रोफेसर अग्रवाल ने बताया कि वह एक वर्ष से इन उत्पादों से जुड़े कारीगर, शिल्पकार, कलाकार, किसान आदि पर सर्वे कर रहे हैं। अब तक 200 से अधिक लोगों पर सर्वे किया गया है। इसमें पाया गया कि जब तक ब्रांडिंग के लिए विशेष अभियान नहीं चलाया जाता, तब तक जीआइ टैग का लाभ उन लोगों को नहीं मिल पाएगा, जो इससे जुड़े हुए हैं। उन्होंने बताया कि प्रदेश के जीआइ टैग मिले 17 अन्य उत्पादों पर भी शोध किया जाएगा।
ऐपण आर्ट को मिला लाभ
शोध में पाया गया कि उत्तराखंड में अब तक ऐपण आर्ट को ही जीआइ टैग का ठीक-ठाक लाभ मिला है। इसको लेकर जागरूकता बढ़ने से रोजगार भी बढ़ा है। जीआइ टैग मिलने से पहले इससे लगभग 250 लोग जुड़े थे, जबकि अब करीब 3,000 लोग जुड़ चुके हैं। रिंगाल क्राफ्ट और च्यूरा तेल को भी थोड़ा लाभ देखने को मिला है।
प्रोफेसर रजत अग्रवाल ने बताया कि च्यूरा तेल से वैल्यू एडेड उत्पाद जैसे कि साबुन, फेस क्रीम आदि बनने लगे हैं। रिंगाल क्राफ्ट में प्रोडक्ट डिजाइनिंग शुरू होने से फैंसी आइटम बन रहे हैं। दूसरी तरफ, कागजों में अल्मोड़ा जिले के ताम्र उत्पाद से पहले करीब 200 लोग जुड़े हुए थे, जबकि अब इनकी संख्या घटकर 50 रह गई है।
धारचूला एवं मुनस्यारी भोटिया दन का कारोबार 350 कारीगर कर रहे थे, यह संख्या अब भी उतनी ही है। इसी तरह, मुनस्यारी के सफेद राजमा और तेजपत्ता को भी जीआइ टैग का कोई लाभ नहीं मिला।
ऐसे मिलेगा जीआइ का लाभ
प्रोफेसर रजत अग्रवाल के अनुसार, जीआइ टैग प्राप्त उत्पादों को बाजार उपलब्ध नहीं कराया जाएगा तो वह महज शोपीस बनकर रह जाएंगे। जीआइ टैग को सफल बनाने के लिए उससे जुड़े कलाकार, शिल्पकार, कारीगर, किसान आदि के उत्थान के लिए विपणन नीति बनानी होगी। इन उत्पादों की ब्रांडिंग और सही वितरण जरूरी है।
इनके वैल्यू एडेड बनाने होंगे और पहचान के लिए सही नामकरण भी करना होगा। जो लोग जीआइ टैग मिले उत्पादों से जुड़े हैं, उनमें अधिकांश कम पढ़े-लिखे हैं। उन्हें जीआइ का उतना ज्ञान नहीं है। कई बार इसका लाभ अन्य संस्थाएं उठा लेती हैं। ऐसे में जीआइ को लेकर जागरूकता बढ़ाने के साथ नकली उत्पाद न बिके इस पर भी नजर रखनी होगी। साथ ही इससे जुड़े लोगों की मेहनत का उचित लाभ दिलाना होगा।
ऐसे करेंगे सहयोग
संस्थान के प्रबंध अध्ययन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. रजत अग्रवाल ने बताया कि उनका प्रयास है कि जीआइ टैग उत्पादों को आनलाइन एवं आफलाइन बाजार उपलब्ध करवाया जाए। उनकी सही तरह से लेबलिंग की जाए और कुछ चुनिंदा स्थान से उनकी ब्रिकी की जाए। उन्होंने कहा कि ट्राइफेड से समझौता करके इन उत्पादों को बाजार उपलब्ध करवाने का प्रयास किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि सरकार को भी जीआइ टैग उत्पादों से जुड़े लोगों को अतिरिक्त अनुदान देने व सुविधाएं उपलब्ध करवाने की व्यवस्था करनी चाहिए। क्योंकि जब लोगों को इन व्यवसायों में लाभ दिखेगा तभी वे इससे जुड़े रहेंगे। साथ ही और लोग भी इससे जुड़ पाएंगे।
एक दिन में सर्वाधिक जीआइ टैग प्राप्त कर चुका उत्तराखंड
गत वर्ष नवंबर में एक ही दिन में उत्तराखंड के 17 उत्पादों को जीआइ टैग मिला था। इससे उत्तराखंड एक दिन में सर्वाधिक जीआइ टैग प्राप्त करने वाला देश का पहला राज्य बन गया था।
इन उत्पादों में चौलाई, झंगोरा, मंडुआ, लाल चावल, अल्मोड़ा लखौरी मिर्च, बेरीनाग चाय, बुरांस शरबत, रामनगर नैनीताल लीची, रामगढ़ आडू, माल्टा, पहाड़ी तोर, काला भट्ट, बिच्छूबूटी फैबरिक, नैनीताल मोमबत्ती, कुमाऊंनी रंगवाली पिछोड़ा, चमोली रम्माण मास्क और लिखाई वुड कार्विंग शामिल हैं।
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