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Rishikesh: यमकेश्वर बुकंडी में समय पर उपचार न मिलने से हुई युवक की मौत, भूस्खलन के चलते सभी मोटर मार्ग है बंद

यमकेश्वर बुकंडी निवासी 37 वर्षीय युवक की समय पर उपचार न मिलने के कारण मृत्यु हो गई। यमकेश्वर के बुकंडी गांव निवासी 37 वर्षीय शांति प्रसाद गैरोला की अचानक ज्यादा तबियत बिगड़ गई।गांव को जोड़ने वाला मोटर मार्ग अवरुद्ध होने से उसे पैदल ही चारपाई पर गांव के युवाओं और नेपाली मूल के मजदूरों ने त्याड़ो तक पहुंचाया लेकिन देर हो जाने के कारण रास्ते में ही दम तोड़ दिया।

By Jagran NewsEdited By: riya.pandeyUpdated: Mon, 11 Sep 2023 01:06 PM (IST)
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यमकेश्वर बुकंडी में भूस्खलन से मार्ग बंद होने पर समय से उपचार न मिलने से हुई युवक की मौत
जागरण संवाददाता, ऋषिकेश। यमकेश्वर बुकंडी निवासी 37 वर्षीय युवक की समय पर उपचार न मिलने के कारण मृत्यु हो गई। यमकेश्वर के बुकंडी गांव निवासी 37 वर्षीय शांति प्रसाद गैरोला की अचानक ज्यादा तबियत बिगड़ गई।

गांव को जोड़ने वाला मोटर मार्ग अवरुद्ध होने के कारण उसे पैदल ही चारपाई पर गांव के युवाओं और नेपाली मूल के मजदूरों ने त्याड़ो तक पहुंचाया। वहां से वाहन से अस्पताल ले जाने की व्यवस्था की गई। लेकिन तब तक बहुत देर हों गई और आधे रास्ते दिउली से आगे जाते ही युवक ने वाहन ही दम तोड़ दिया।

मरीज को समय पर नहीं पहुंचाया जा सका अस्पताल

जानकारी के अनुसार, नौगांव बुकंडी मोटर मार्ग तिमली अकरा के पास चिपली पैरी के निकट भूस्खलन होने के कारण बाधित हो गया है। जिस कारण यातायात पूरी तरह से बंद हो गया और मरीज को समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका।

भूस्खलन से रास्ता है बंद

मृतक शांति प्रसाद गैरोला का भाई विनोद गैरोला ने बताया कि भाई की तबियत खराब हो रखी थी, पेट में समस्या थी, जिसका इलाज चल रहा था। वह दवाई लेकर घर आया था, दोबारा चेकअप करवाने जाना था लेकिन सड़क नहीं होने के कारण ले जा नहीं पाए। कौड़िया विंध्यवासिनी ताल मार्ग में नदी होने के कारण रास्ता बंद है और नौगांव बुकंडी मार्ग बारिश के चलते भूस्खलन होने से तरह बाधित हो रखा है।

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चारपाई पर लिटाकर पैदल ले जाया गया त्याड़ो

उन्होंने बताया की कल सुबह पेट में अचानक तबियत ज्यादा बिगड़ने लगी तो स्थानीय निवासी सुनील बडोला और सूरज बड़थवाल और सड़क पर काम कर रहे नेपाली मूल के व्यक्तियों ने उन्हें चारपाई पर लिटाकर पैदल ही त्याड़ो तक लेकर आये। उन्होंने कहा कि अगर सड़क खुली होती या विंध्यवासिनी ताल रोड का स्थायी समाधान होता तो आज हमें अपने भाई को नहीं खोना पड़ता।

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