कहीं खामियां न तोड़ दें, गंगा की निर्मलता का सपना, पढ़िए पूरी खबर
गंगा में गिर रहे नालों और सीवरेज जल को गंगा में जाने से रोकने को 171 करोड़ की बनाई गई योजना में खामियां ही खामियां हैं।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 21 Jun 2019 02:09 PM (IST)
हरिद्वार, जेएनएन। गंगा को प्रदूषणमुक्त करने को महत्वाकांक्षी नमामि गंगे परियोजना के तहत धर्मनगरी हरिद्वार में चल रहे काम की योजनागत कमियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गंगा को निर्मल करने के सपने को पूरा होने में रोड़ा न अटका दें। खासकर गंगा में गिर रहे नालों और सीवरेज जल को गंगा में जाने से रोकने को 171 करोड़ की बनाई गई योजना में खामियां ही खामियां हैं। इसे लेकर व्यवस्था से जुड़ी विभिन्न सरकारी संस्थाओं के प्रक्रियागत आंकड़ों का अंतर इन्हें उजागर कर रहा है। शहरी क्षेत्र में रोजाना के स्तर पर उत्सर्जित होने वाले सीवरेज जल की मात्रा को लेकर विरोधाभास है, तो क्षेत्र की जनसंख्या, जिस पर योजना आधारित है पर भी एक राय नहीं है। इसी तरह गंगा में शहर के 22 नालों से रोजाना उत्सर्जित हो रहे 40.49 एमएलडी गंदे पानी की मात्रा और उसके प्रवाह पर भी असमंजस बरकरार है। शहरी क्षेत्र से सटे पांच बड़े कस्बों (सेटेलाइट टाउन) की तीन लाख 28 हजार की जनसंख्या, नालों, ड्रेनेज और सीवरेज जल की मात्रा पर भी समानता नहीं है, इन्हें योजना में सीधे तौर पर शामिल तक नहीं किया गया है।
कार्यदायी संस्था निर्माण एवं अनुरक्षण इकाई गंगा पेयजल निगम के आंकड़े और नगर निगम व जलसंस्थान के आंकड़ों का ये अंतर बताता है कि योजना पर न तो पूरी गंभीरता से काम किया और न ही भविष्य की चुनौतियों को ध्यान में रख इसे तैयार किया गया। इन्हीं वजह से निर्माण एवं अनुरक्षण इकाई गंगा पेयजल निगम के तत्कालीन महाप्रबंधक ने नवंबर-2017 को परियोजना प्रबंधक (अधिशासी अभियंता) को पत्र भेज आपसी समन्वय से आंकड़ों के अंतर को दुरूस्त करने के बाद ही योजना के निर्माण की प्रगति सुनिश्चित करने के आदेश दिए थे पर, इसकी अनदेखी कर योजना पर काम शुरू कर दिया गया। साफ है कि पतित पावनी गंगा को प्रदूषणमुक्त करने की केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजना के क्रियान्वयन को बनाई गई अपनी ही योजना के नतीजों पर कार्यदायी संस्था निर्माण एवं अनुरक्षण इकाई गंगा पेयजल निगम को भरोसा नहीं।
योजना के तहत जगजीतपुर में पहले की 27 व 18 एमएलडी एसटीपी के साथ ही 68 एमएलडी क्षमता का नया सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाया गया है। सराय में पहले के 18 एमएलडी एसटीपी के साथ 14 एमएलडी का नया एसटीपी बनाया गया, यह अपने अंतिम चरण में है। इस हिसाब से इन सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की कुल क्षमता 145 एमएलडी होगी, जबकि प्रक्रियागत आंकड़ों के अनुसार फिलवक्त पांच बड़े सेटेलाइट टाउन को छोड़कर शहरी क्षेत्र से 160.49 एमएलडी सीवरेज, ड्रेनेज और नालों का पानी रोजाना उत्सर्जित हो रहा है। यह स्थिति सामान्य दिनों की है।
हरिद्वार में हर दूसरे महीने कोई-न-कोई बड़ा स्नान पर्व होता है और उसमें लाखों की संख्या में तीर्थयात्री जुटते हैं। वर्ष 2021 में कुंभ होना है। छह महीने तक देश-विदेश के 15 से 20 करोड़ तीर्थयात्री इस दौरान यहां निवास करेंगे। ऐसे समय में इसकी मात्रा में और इजाफा होना अवश्यंभावी है। फिर पांच बड़े सेटेलाइट टाउन को इसमें जोड़ दिया जाए तो यह और भी ज्यादा हो जाएगा। जाहिर है कि सरकारी दावे के अनुसार 2019 के अंत तक नई एसटीपी के पुरानी एसटीपी के साथ (कुल क्षमता 145 एमएलडी) के एक साथ काम करने पर भी उत्सर्जित होने वाले गंदे पानी की 160.49 एमएलडी से अधिक की कुल मात्रा को पूरी तरह शोधित नहीं किया जा सकेगा। यानी तब भी तकरीबन 45 से 50 एमएलडी प्रदूषित जल रोजाना गंगा में गिराना सरकारी मजबूरी होगा। ऐसे में गंगा के प्रदूषण मुक्ति का दावा पर सवाल उठना लाजिमी है।
कार्यदायी संस्था निर्माण एवं अनुरक्षण इकाई गंगा महाप्रबंधक जलसंस्थान के हवाले से सीवरेज, ड्रेनेज के उत्सर्जित होने से जल की कुल मात्रा 97 से 100 एमएलडी बताकर सवाल से बचने की कोशिश जरूर करती है पर, उसका यह गणित 22 नालों से रोजाना उत्सर्जित होने वाले 40.49 एमएलडी जल और पांच बड़े सेटेलाइट टाउन, जिनकी जनसंख्या नगर निगम के हिसाब से 3 लाख 28 हजार है, को लेकर गड़बड़ा जाता है।
लिहाजा, जिन लक्ष्यों की पूर्ति को धर्मनगरी हरिद्वार में नमामि गंगे परियोजना के तहत सैकड़ों करोड़ की योजना में वे पूरे भी होंगे या नहीं, इस पर अभी से प्रश्नचिह्न लग गया है, क्योंकि योजना 2028 को लक्ष्य कर बनाई गई है, जबकि अभी तक यह धरातल पर उतर नहीं सकी। सवाल उठ रहे हैं कि क्या इतनी बड़ी सरकारी कवायद महज आठ सालों के लिए की जा रही है, गंगा इससे साफ होगी भी या नहीं या फिर इसका हश्र भी गंगा की सफाई-प्रदूषण मुक्ति को बने गंगा एक्शन प्लान व अन्य पिछली योजनाओं की ही तरह का होगा। फिलहाल इसका जवाब किसी के पास नहीं है, न तो सरकार और न ही कार्यदायी संस्था के पास।
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