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यहां पर सच्चे मन से शिव का किया गया अभिषेक नहीं जाता कभी खाली

हरिद्वार के दक्षनगरी कनखल के हरिहर आश्रम में श्री महामृत्युंजय महादेव मंदिर है। महाशिवरात्रि श्रावण मास में यहां भगवान शंकर के महामृत्युंजय स्वरुप की विशेष पूजा होती है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Mon, 29 Jul 2019 08:25 PM (IST)
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यहां पर सच्चे मन से शिव का किया गया अभिषेक नहीं जाता कभी खाली
हरिद्वार, जेएनएन। श्री महामृत्युंजय महादेव मंदिर दक्षनगरी कनखल के हरिहर आश्रम में है। महाशिवरात्रि, श्रावण मास में यहां भगवान शंकर के महामृत्युंजय स्वरुप की विशेष पूजा होती है। आश्रम प्रांगण में ही पारे का शिवलिंग भी है। यहीं पर रूद्राक्ष के वृक्ष के नीचे द्वादश ज्योर्तिलिंग के दर्शन भी होते हैं।

इतिहास

मंदिर का निर्माण राजा बीका सिंह राव के प्रपौत्र जयपुर नरेश गंगा राव सिंह ने 1886 में कराया था। 198 वर्ष पूर्व यहां सिर्फ एक संत की कुटिया थी। जैसे-जैसे मंदिर के प्रति लोगों की आस्था बढ़ती गई, वैसे ही मंदिर का भव्य निर्माण हुआ। यहीं 1886 में ही पारे का शिवलिंग भी स्थापित किया गया।

कैसे पहुंचे

कनखल के हरिहर आश्रम स्थित श्री महामृत्युंजय महादेव मंदिर की हरिद्वार रेलवे और बस स्टेशन से दूरी तकरीबन छह किमी है। देश के विभिन्न हिस्सों से हरिद्वार के लिए सीधी बस व रेल सेवा है। नजदीक का हवाई अड्डा जौलीग्रांट 38 किमी की दूरी पर स्थित है। बस व रेलवे स्टेशन से रिक्शा, आटो, टेंपो और टैक्सी के जरिए यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।

विष्णु प्रसाद जोशी (व्यवस्थापक, श्री महामृत्युंजय महादेव मंदिर) का कहना है कि मंदिर में समय-समय पर शिव पुराण कथा का आयोजन किया जाता है। हर वर्ष महाशिवरात्रि पर पारे से बने शिवलिंग की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। यहां सारा काम आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज के दिशा-निर्देशन में संचालित होता है। यह बहुत ही सिद्ध स्थान है और यहां पर सच्चे मन से शिव का किया गया अभिषेक कभी खाली नहीं जाता। यहां पर होने वाले धार्मिक आयोजनों में भाग लेने देश-विदेश के प्रमुख लोगों के साथ-साथ बड़ी संख्या में स्थानीय भी शामिल होते हैं। मंदिर की बड़ी मान्यता है।

आशीष भट्ट (मुख्य पुजारी, श्री महामृत्युंजय महादेव मंदिर) का कहना है कि भगवान महामृत्युंजय का स्वरुप अत्यंत सरल व ध्यान मुद्रा में है। भगवान महामृत्युंजय अष्ठ भुजाओं वाले हैं। जिनके दो हाथों में अमृत कलश, चार हाथों में स्नान के लिए जल कलश, एक हाथ में रूद्राक्ष माला व दूसरे हाथ में ज्ञान मुद्रा है। महामृत्युंजय भगवान मात्र जलाभिषेक से ही सारी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

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