Move to Jagran APP

मुसीबतों को हरा सुशील ने बनाई अलग पहचान, परांठे बेच तय किया रेस्टोरेंट तक का सफर; दूसरों को भी दिया रोजगार

हरिद्वार की सुशीला कुमारी मुसीबत में घिरे परिवार का न केवल आर्थिक संबल बनी बल्कि कड़ी मेहनत के बूते मुसीबतों से पार भी पा लिया। यही वजह है ऋषिकुल कॉलेज की कैंटीन में परांठे बेचकर परिवार की आर्थिकी संभालने वाली सुशीला आज दूसरों को भी रोजगार दे रही हैं।

By Edited By: Updated: Tue, 20 Oct 2020 10:18 PM (IST)
Hero Image
मुसीबतों को हरा सुशील ने बनाई अलग पहचान। जागऱण
हरिद्वार, जेएनएन। स्त्री एक ऐसी शक्ति, जो किसी भी परिस्थितियों और चुनौतियों से पार पाने की हिम्मत और विश्वास रखती है। हरिद्वार की सुशीला कुमारी ऐसी ही मिसाल हैं, जो मुसीबत में घिरे परिवार का न केवल आर्थिक संबल बनी, बल्कि कड़ी मेहनत के बूते मुसीबतों से पार पा लिया। यही वजह है कि ऋषिकुल कॉलेज की कैंटीन में परांठे बेचकर परिवार की आर्थिकी संभालने वाली सुशीला आज 'अन्नपूर्णा रसोई' रेस्टोरेंट की मालकिन हैं। रेस्टोरेंट के जरिये सुशीला 10 व्यक्तियों को रोजगार देकर उनके परिवार की आर्थिकी का भी जरिया बनी हैं। बुरे वक्त को याद कर सुशीला कुमारी की आंखें नम हो जाती हैं। 

आर्यनगर निवासी सुशीला कुमारी बताती हैं कि स्पेयर पा‌र्ट्स सप्लायर पति महेश कुमार को वर्ष 2002-03 में कारोबार में घाटा हो गया। इसके बाद उनका परिवार सड़क पर आ गया। यहां तक कि उनके पास सिर छुपाने के लिए छत तक नहीं थी, लेकिन मुश्किल वक्त में सुशीला ने धैर्य नहीं खोया। ऋषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज की कैंटीन में उन्होंने परांठा बेचना शुरू कर दिया। यहां उन्हें रहने को जगह भी मिली, लेकिन इस काम से इतने ही पैसे मिलते थे, जिससे परिवार के लिए दो जून की रोटी का इंतजाम हो जाता था। जैसे-तैसे पैसे जोड़कर सुशीला ने रानीपुर मोड़ के पास एक शॉपिंग कॉम्पलेक्स में किराये की जगह ली। 

वो जगह इतनी थी, जहां बामुश्किल खाना बनाया जा सकता था। वहीं, से वो खाना बनाकर उसकी पैकिंग कर ग्राहकों को मुहैया कराती रही। वर्ष 2010 के कुंभ में भोजनालय चला तो आर्थिक मजबूती आई। हिम्मत कर उन्होंने कॉम्पलेक्स में ही किराये पर एक छोटी सी जगह ली, जहां अन्नपूर्णा रसोई नाम से रेस्टारेंट शुरू किया। इसके बाद जी तोड़ मेहनत और लजीज स्वाद दोनों ने कमाल किया और रेस्टोरेंट से ग्राहक जुड़ते चले गए। आज वह इस रेस्टोरेंट के जरिये 10 व्यक्तियों को रोजगार दे रही हैं। आज उनके पास हरिद्वार में अपना मकान भी है। सुशीला कहती हैं, नकारात्मक सोच हमें हार की ओर ले जाती है, प्रयासों की कमी से ही सफलता हमसे दूर चली जाती है। 

यह भी पढ़ें: संघर्ष से तपकर चमक बिखेरने को तैयार 19 साल की भागीरथी, ये अंतरराष्ट्रीय एथलीट दिखा रहे राह

सफलता कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया है, जो आजीवन निरंतर चलती रहती है और सफलता का कारवां सकारात्मक सोच से आगे बढ़ता रहता है। बेटी को बनाया इंजीनियर सुशीला ने मुश्किल वक्त में भी अपनी इकलौती बेटी की परवरिश में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। शहर के नामी पब्लिक स्कूल में बेटी को पढ़ाने के साथ ही बीटेक भी कराया। आज उनकी बेटी इलेक्ट्रिक इंजीनियर है।

यह भी पढ़ें: हौसलों ने भरी उड़ान तो छोटा पड़ गया आसमान, उत्‍तराखंड की सविता कंसवाल ने विपरीत परिस्थितियों से लड़कर बनाया रास्ता

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।