जैविक और परंपरागत खेती को दे रहे हैं बढ़ावा, बैलों से ही कर रहे 30 बीघा खेत की जुताई
आज के इस आधुनिक दौर में कई किसान ये सीख दे रहे हैं कि जीरो खर्च पर भी खेतों में बंपर उत्पादन किया जा सकता है। इन्हीं में से एक हैं बहादराबाद ब्लॉक क्षेत्र स्थित मीरपुर मुआवजरपुर के किसान तेलूराम सैनी।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Tue, 03 Nov 2020 07:38 PM (IST)
हरिद्वार, बसंत कुमार। आज के इस आधुनिक दौर में कई किसान ये सीख दे रहे हैं कि जीरो खर्च पर भी खेतों में बंपर उत्पादन किया जा सकता है। इन्हीं में से एक हैं बहादराबाद ब्लॉक क्षेत्र स्थित मीरपुर मुआवजरपुर के किसान तेलूराम सैनी। तेलूराम पिछले तीन साल से कड़ी मेहनत कर बैलों से ही खेतों की जुताई कर रहे हैं। साथ ही जैविक और परंपरागत खेती को भी बढ़ावा दे रहे हैं। इससे वह हर साल ट्रैक्टर से किराए पर जुताई न कराकर बीस से 25 हजार रुपए बचा रहे हैं। वहीं, उनके इस कदम के लिए मुख्य कृषि अधिकारी डॉ. विकेश कुमार ने भी उनकी तारीफ की है।
तेलूराम कभी खेतों की जुताई या किसी भी काम में ट्रैक्टर का प्रयोग नहीं करते हैं। वे साल 2018 से अपने बैलों से ही एक नहीं, बल्कि पूरे 30 बीघा जमीन की जुताई कर सभी फसलों का बंपर उत्पादन कर रहे हैं। पशु आधारित खेती कर तेलूराम जैविक खेती को भी बढ़ावा दे रहे हैं। तेलूराम सैनी अपने खेतों में गन्ने से लेकर सब्जी, गेहूं आदि सभी फसलों का उत्पादन करते हैं और बिना कोई खर्च किए समय पर खेतों की जुताई भी कर लेते हैं।
आपको बता दें कि किराए पर ट्रैक्टर से जुताई करने में एक बार में तीन सौ रुपये प्रति बीघा खर्च आता है। ऐसे में अगर तीस बीघा खेतों की जुताई ट्रैक्ट से की जाए तो खर्चा बहुत ज्यादा आएगा, लेकिन तेलूराम इन दोनों से दूर हैं और वह दो बैलों से जुताई करते हैं। उनके पास दो गाय समेत चार गोवंश भी हैं, जिनके गोबर को खेतों में डालकर जमीन की उर्वरा शक्ति को भी बनाए रखे हुए हैं। इससे वह रसायन खादों का प्रयोग भी बेहद ही कम करते हैं। इतना ही नहीं तेलूराम गोबर गैस से शून्य खर्च पर रसोई में भोजन आदि का लाभ भी ले रहे हैं। वहीं, गोवंश का पालन होने से उनका संवर्धन और संरक्षण भी हो रहा है।
अक्षय ऊर्जा विभाग से मिली प्रेरणाअक्षय ऊर्जा विभाग की ओर से उन्हें राज्य सहायता पर बैलों से खेती करने के लिए कामधेनु ट्रैक्टर योजना (बैलों का ट्रैक्टर) से कृषि यंत्र उपलब्ध कराए गए थे, जिनमें जुताई के लिए हेरो और ट्रीलर देने के साथ ही गेहूं बोने की मशीन और पाटा आदि सामान उपलब्ध कराया गया था। यह सब जुताई यंत्र बैलों से ही संचालित होते हैं, तभी से उन्होंने यह संकल्प लिया था, जिससे आज वह तीन साल पूरा कर चुके हैं।
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