Move to Jagran APP

कानून के रखवाले अब तनाव की गिरफ्त में, अध्ययन में खुलासा

दूसरों को तनाव से दूर रखने वाले आज खुद तनाव की स्थिति में है। आइआटी के एक अध्ययन में यह पता चला है कि उत्तराखंड पुलिस के ज्यादातर जवान इस हालात से गुजर रहे हैं।

By raksha.panthariEdited By: Updated: Wed, 18 Oct 2017 09:10 PM (IST)
Hero Image
कानून के रखवाले अब तनाव की गिरफ्त में, अध्ययन में खुलासा

रुड़की, [रीना डंडरियाल]: अपराधियों को हथकड़ियां पहनाने वाली पुलिस खुद तनाव की गिरफ्त में आ रही है। इससे पुलिसकर्मियों का शारीरिक स्वास्थ्य भी बिगड़ रहा है। रुड़की स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) के प्रबंध अध्ययन विभाग की ओर से किए जा रहे अध्ययन में यह हकीकत सामने आई है। 

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के प्रोजेक्ट के तहत उत्तराखंड पुलिस के सहयोग से आइआइटी रुड़की के प्रबंध अध्ययन विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. आरएल धर और उनकी टीम इन दिनों प्रदेश के पुलिस कर्मियों पर शोध कर रही है। शोध में पता लगाने का प्रयास किया जा रहा है कि पुलिस की कार्यप्रणाली का उनके मानसिक स्वास्थ्य पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ रहा है। पिछले एक साल के दौरान इस प्रोजेक्ट के प्रिंसिपल इन्वेस्टीगेटर डॉ. धर और उनकी टीम ने उत्तराखंड के रुड़की, हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल, चमोली, पौड़ी, ऊधमसिंहनगर आदि शहरों में पुलिस अधिकारियों एवं कर्मचारियों का साक्षात्कार किया। अब तक करीब 150 पुलिसकर्मियों का साक्षात्कार किया जा चुका है। इनमें महिला पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। इस दौरान चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। पता चला कि अध्ययन में शामिल होने वाले अधिकतर कानून के रखवाले तनाव की चपेट में हैं। 

डॉ. धर ने बताया कि लगभग एक से सवा घंटे तक चलने वाले इस साक्षात्कार में पुलिस कर्मियों के समक्ष आने वाली परेशानियों के बारे में पूछा जाता है। अब तक जितने भी पुलिसकर्मियों से बात हुई, उनमें से अधिकांश के तनाव और डिप्रेशन की गिरफ्त में होने की बात सामने आई। इसकी वजह पुलिसकर्मी विभाग की कार्यप्रणाली को बताते हैं। इसमें काम करने के अनिश्चित घंटे, मूलभूत सुविधाओं का अभाव, पर्याप्त हथियार उपलब्ध नहीं कराया जाना, छुट्टी को लेकर असमंजस की स्थिति, कार्यक्षेत्र से बाहर ड्यूटी लगना, कम वेतनमान, खाने का कोई समय निश्चित नहीं होना, प्रमोशन के लिए लंबा इंतजार करना आदि बिंदु शामिल हैं। इस दौरान कई पुलिसकर्मियों ने राजनीतिक हस्तक्षेप को भी एक मुख्य समस्या बताया। 

डॉ. धर के अनुसार इन सभी समस्याओं के कारण पुलिस कर्मचारी तनाव और डिप्रेशन की चपेट में आ रहे हैं। वहीं, पुलिसकर्मी सिर दर्द, माइग्रेन, चिड़चिड़ापन, उत्तेजित होना, हृदय रोग, एंजाइटी, पेट संबंधी समस्याएं, मोटापा आदि बीमारियों के शिकार भी हो रहे हैं। इस प्रोजेक्ट में डॉ. धर की टीम में को-इन्वेस्टीगेटर डॉ. रजत अग्रवाल और दो स्टाफ सदस्य शामिल हैं। 

700-800 पुलिसकर्मियों पर होगा सर्वे 

डॉ. धर और उनकी टीम की ओर से दो साल के इस प्रोजेक्ट में प्रथम चरण में पुलिसकर्मियों से साक्षात्कार किया जा रहा है। जबकि, दूसरे चरण में सर्वे का काम किया जाएगा। प्रदेश में लगभग दो सौ पुलिसकर्मियों का साक्षात्कार लेने की योजना है। इसके बाद सर्वे का काम प्रारंभ किया जाएगा। यह सर्वे 700-800 पुलिसकर्मियों पर किया जाएगा। इस दौरान पुलिसकर्मियों से करीब 150 प्रश्न पूछे जाएंगे। 

यह भी पढ़ें: शहीद सैनिक-अर्द्धसैनिक बलों के आश्रितों को मिलेगी नौकरी

PICS: सेना में भर्ती होने के लिए उमड़े युवा

यह भी पढ़ें: समूह 'ग' के 2072 पदों के लिए होगी लिखित परीक्षा

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।