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कैलास मानसरोवर यात्रा का 76 किमी पैदल सफर पांच घंटे में होगा तय, अभी लगते हैं छह दिन

सीमा सड़क संगठन ने चीन सीमा तक सड़क निर्माण का कार्य पूरा कर लिया है। इससे बॉर्डर तक आवाजाही आसान होगी। कैलास मानसरोवर यात्रा भी सुगम हो जाएगी।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Sun, 19 Apr 2020 09:04 AM (IST)
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कैलास मानसरोवर यात्रा का 76 किमी पैदल सफर पांच घंटे में होगा तय, अभी लगते हैं छह दिन
पिथौरागढ़, जेएनएन : उत्‍तराखंड के रास्‍ते होने वाली विश्‍व प्रसिद्ध कैलास मानसरोवर यात्रा सुगम होने जा रही है। 76 किमी की पैदल यात्रा जो पहले छह दिन में पूरी होती थी, वाहन के जरिये इसे अब चार से पांच घंटे में पूरा किया जा सकेगा। पिथौरागढ़ और धारचूला हाेते हुए चीन सीमा से लगे लिपूलेख तक वाहन पहुंच सकेंगे। आधार शिविर धारचूला से चीन सीमा तक पहुंचने में पांच घंटे के आसपास समय लगेगा। सड़क बनने से भारत-तिब्‍बत सीमा पर तैनात आईटीबीपी और भारत-नेपाल सीमा पर मुस्‍तैद एसएसबी को भी सुविधा होगी। भारत चीन व्यापार को भी गति मिलेगी। अभी तक व्यापारियों को नजंग से आगे सामान घोड़े व खच्चरों से ले जाना पड़ता था।

साल 2006 में शुरू हुआ था सड़क का काम

व्यास घाटी के गर्बाधार से लिपूलेख तक 76 किमी सड़क निर्माण का कार्य वर्ष 2006 में सीमा सड़क संगठन ने शुरू किया। गर्बाधार से आगे दुर्गम पहाडि़यों में काम करना बेहद चुनौतीपूर्ण था। तीन किमी सड़क बनने में कई वर्ष लग गए। जिसे देखते हुए बीआरओ ने सड़क निर्माण का कार्य उच्च हिमालय से प्रारंभ किया। हेलीकॉप्टर से मशीनें उच्च हिमालय में पहुंचा कर सड़क का निर्माण शुरू किया। यानी बीच का कुछ हिस्‍सा छोड़कर आगे काम शुरू किया गया। छियालेख से लेकर भारत के अंतिम पड़ाव नावीढांग तक सड़क निर्माण का काम दो वर्ष पूर्व पूरा कर लिया गया था। अब बीच में शेष बचे स्‍थान को भी सड़क से जोड़ दिया गया है।

निजी कंपनी को सौंपना पड़ा था काम

गर्बाधार से नजंग व मालपा होते हुए बूंदी तक करीब ढाई किमी सड़क निर्माण जटिल पहाड़ी की वजह से चुनौती बना रहा। बीआरओ ने निजी कंपनी को काम सौंपा। दो वर्ष पहले नजंग के आसपास मार्ग बनने के बाद भारी भूस्खलन से मार्ग ध्वस्त हो गया। जिसकी वजह से दो वर्ष पूर्व विश्‍व प्रसिद्ध कैलास मानसरोवर यात्रा पिथौरागढ़ से गुंजी तक हेलीकाप्टरों से संचालित की गई। 2019 में नजंग तक सड़क बनने के बाद कैलास मानसरोवर यात्रा धारचूला से नजंग तक वाहन से हुई । जिसके चलते करीब 28 किमी सड़क बनने से दो यात्री पड़ाव कम हो गए।

व्‍यास घांटी के सात गांव सड़क से जुड़े

बूंदी तक सड़क पहुंचने से व्यास घाटी के सात गांव बूंदी, गर्ब्‍यांग, गुंजी, रोंककोंग, नाबी, नपलच्यू और कुटी के ग्रामीणों में खुशी व्याप्त है। इन गांवों के ग्रामीण ग्रीष्म कालीन माइग्रेशन की तैयारी कर रहे हैं। लॉकडाउन समाप्त होने की प्रतीक्षा है। इन गांवों के ग्रामीण शीतकाल शुरू होने से पहले निचले इलाकों में लौट आते हैं और ग्रीष्‍मकाल में गांव आ जाते हैं। भारी बर्फबारी से अक्‍टूबर से मार्च तक यहां के गांव बर्फ से ढके रहते हैं। बूंदी से धारचूला पहुंचे नाबी गांव के मदन नबियाल ने बताया कि बूंदी के पास एक पुल बन रहा है। अभी मोटर साइकिल से आगे की यात्रा कर सकते हैं। ग्राम प्रधान नाबी सनम नबियाल ने व्यास घाटी के सभी ग्रामीणों को सड़क बनने पर बधाई दी है।

आइटीबीपी व एसएसबी की मुश्किल होगी आसान

सड़क बनने से आइटीबीपी व एसएसबी को सबसे अधिक सुविधा मिलेगी। यह सड़क कालापानी तक नेपाल सीमा से लगी है। एसएसबी के जवान अब सीमा पर वाहन से गश्त लगा सकेंगे। वहीं, दोनों बलों की अग्रिम चौकियों तक रसद सामग्री पहुंचाना आसान होगा। जिससे लागत और श्रम दोनों कम होगा।

ऊं पर्वत व आदि कैलास के दर्शन करना सरल

व्यास घाटी में चीन सीमा तक सड़क बनने से अब ऊं पर्वत और आदि कैलास पहुंचना सरल होगा। दिल्ली से अब ऊं पर्वत पहुंचने में मात्र दो दिन का समय लगेगा। दिल्ली से पिथौरागढ़ तक सफर 18 घंटे का है । पिथौरागढ़ से धारचूला साढ़े तीन घंटे और धारचूला से ऊं पर्वत तक लगभग पांच घंटे तक का सफर रहेगा।

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