Haldwani Violence: अब्दुल मलिक ने हाई कोर्ट को किया था गुमराह, मलिक के बगीचे से नहीं नाता; अधिकारियों को जलाने की थी साजिश
Haldwani Violence बनभूलपुरा हिंसा का मास्टरमाइंड अब्दुल मलिक बहुत ही शातिर इंसान है। जिस संपत्ति को मलिक का बगीचा के नाम से प्रचारित किया गया वास्तविकता में अब्दुल मलिक का उससे कुछ लेना-देना है ही नहीं। वह जमीन 1980 के दशक में अशरफ खां के पुत्र नबी रजा के कब्जे में हुआ करती थी। इस बगीचे को हथियाने का असल खेल वर्ष 2006 में शुरू हुआ।
आशुतोष सिंह, हल्द्वानी। बनभूलपुरा हिंसा का मास्टरमाइंड अब्दुल मलिक बहुत ही शातिर इंसान है। उसने न सिर्फ सरकारी भूमि पर स्थापित बगीचे पर कब्जा करने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों को गुमराह किया, बल्कि उच्च न्यायालय की आंखों में भी धूल झोंकने की कोशिश की।
नगर निगम की रिपोर्ट के मुताबिक, नबी रजा वर्ष 1988 में स्वर्ग सिधार चुके हैं, उनके नाम से वर्ष 2006 में बगीचे को फ्री होल्ड कराने की कोशिश उसने कई बार की। हर बार निगम और जिला प्रशासन की टीम ने उसकी चालबाजी को पकड़ा। यह और बात है कि राजनीतिक दबाव में उसके खिलाफ कार्रवाई का साहस कोई भी नहीं जुटा पाया।
अब्दुल मलिक का मलिक का बगीचा से कोई नाता नहीं
जिस संपत्ति को मलिक का बगीचा के नाम से प्रचारित किया गया, वास्तविकता में अब्दुल मलिक का उससे कुछ लेना-देना है ही नहीं। वह जमीन 1980 के दशक में अशरफ खां के पुत्र नबी रजा के कब्जे में हुआ करती थी। इस बगीचे को हथियाने का असल खेल वर्ष 2006 में शुरू हुआ। 8 जून 2006 को नबी रजा के नाम से इस भूमि को फ्रीहोल्ड कराने के लिए जिलाधिकारी के पास एक आवेदन किया गया।नबी रजा के नाम से हुआ था आवेदन
डीएम ने इस आवेदन को नगर पालिका प्रशासन के पास अग्रसारित किया। वर्ष 2007 में नगर पालिका प्रशासन ने आवेदन को संदिग्ध बताते हुए एडीएम को रिपोर्ट दी कि जिस नबी रजा के नाम से आवेदन किया गया है, उनकी मृत्यु तो 1988 में ही हो गई है। एडीएम ने तत्कालीन जिलाधिकारी को प्रकरण से अवगत कराया, लेकिन अब्दुल मलिक का रसूख ऐसा था कि मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
सरकारी जमीन के सौदागरों का हौसला वहीं से बढ़ना शुरू हुआ और उन्होंने 1988 में स्वर्ग सिधार चुके नबी रजा के नाम से बगीचे को फ्री होल्ड कराने के लिए वर्ष 2007 में हाई कोर्ट में आवेदन दाखिल कर दिया। उस समय हाई कोर्ट ने जिला प्रशासन को मामले का त्वरित निस्तारण करने का आदेश दिया, लेकिन राजनीतिक दबाव में जिला प्रशासन ने मामले को लटकाए रखा। इस घटनाक्रम के 13 वर्ष बाद अब्दुल मलिक ने इस बगीचे की भूमि को फ्री होल्ड कराने के लिए नगर आयुक्त को एक आवेदन पत्र सौंपा, जिस पर कोई भी निर्णय नहीं हो सका।
हस्ताक्षर करके जमीन में किया फर्जीवाड़ा
चौंकाने वाली बात यह है कि वर्ष 2006 और वर्ष 2007 में जिला प्रशासन एवं हाई कोर्ट को सौंपे गए आवेदन में नबी रजा के नाम से जो हस्ताक्षर अंकित थे, वही हस्ताक्षर 14 दिसंबर 2020 को उसी भूमि को फ्रीहोल्ड कराने के लिए दिए गए अब्दुल मलिक के आवेदन में भी अंकित थे। ऐसे में प्रशासन काफी हद तक इस बात को लेकर आश्वस्त है कि 1988 में स्वर्ग सिधार चुके नबी रजा के नाम से फर्जी आवेदन अब्दुल मलिक ही कर रहा था। इस बात की पुष्टि के लिए प्रशासन ने हैंडराइटिंग एक्सपर्ट को दोनों आवेदनों की प्रति अग्रसारित की है। यदि दोनों हस्ताक्षर में समानता पाई गई तो मलिक की मुश्किलें बढ़नी तय हैं।
3 फरवरी को जब नगर निगम की टीम मलिक के बगीचे के नाम से चर्चित सरकारी भूमि को खाली कराने पहुंची तो अब्दुल मलिक की पत्नी साफिया वर्ष 2007 का हाई कोर्ट का वह आदेश लेकर टीम के सामने उपस्थित हो गईं, जिसमें जिला प्रशासन को मामले को तत्काल निस्तारित करने के निर्देश दिए गए थे।
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