नशे के आदती बच्चों का इलाज कराने के दौरान छोड़ना होगा मोह, वरना फिर आ सकते हैं गिरफ्त में
नशा करने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। युवा सबसे ज्यादा इसकी चपेट में आए हैं। इसे देखते हुए नशा मुक्ति केंद्र भी खोले गए हैं जो नशा छुड़ाने में मददगार साबित होते हैं।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Thu, 19 Dec 2019 11:06 AM (IST)
हल्द्वानी, जेएनएन : नशा करने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। युवा सबसे ज्यादा इसकी चपेट में आए हैं। इसे देखते हुए नशा मुक्ति केंद्र भी खोले गए हैं, जो नशा छुड़ाने में काफी हद तक मददगार साबित होते हैं, मगर मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि इससे इतर नशे की मानसिकता में बदलाव करना भी बेहद जरूरी होता है। इसके लिए वक्त चाहिए होता है। खुद के साथ परिजन भी सहयोग करें तो नशा छुड़ाना बेहद आसान हो जाता है। सरकारी स्तर पर भले ही ठोस प्रयास न हुए हों, लेकिन निजी स्तर पर चार-चार नशा मुक्ति केंद्र हल्द्वानी में संचालित हैं। इनमें प्रतिवर्ष चार हजार लोग काउंसलिंग व उपचार के लिए पहुंचते हैं। इसमें सबसे अधिक संख्या स्मैक का नशा करने वालों की है।
डॉक्टर व परिवार के साथ जरूरी मरीज की सहजता मनोवैज्ञानिक डॉ. युवराज पंत कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति को नशा छुड़ाना है तो उसके साथ डॉक्टर व परिजनों का सहज व्यवहार जरूरी है। इन तीनों का संबंध मरीज को नशे की लत से बाहर निकाल सकता है।
दोबारा नशा करने पर कराएं इलाज इलाज व काउंसलिंग के बाद कई बार मरीज फिर से नशा करने लगता है तो कोई दिक्कत नहीं है। ऐसे में फिर से इलाज कराया जाए। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि यह भी इलाज का ही पार्ट है। व्यक्ति की इच्छाशक्ति जितनी मजबूत होगी, इलाज उतनी जल्दी और आसान हो जाता है। जिला वेलनेस क्लीनिक की मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता डॉ. मेघना परमार कहती हैं, अगर मरीज को जबरदस्ती लाया जाता है तो उसका नशा छुड़ाना कठिन हो जाता है।
नशा मुक्ति केंद्र बन रहा वरदान नशे की गिरफ्त में आए ऊधमसिंह नगर के नौजवानों के लिए नशा मुक्ति केंद्र वरदान साबित हो रहा है। पूरे जिले में मात्र रुद्रपुर जिला अस्पताल में ही ओपियॉड सब्सिट्यूशन थेरेपी (ओएसटी) सेंटर है। दो प्राइवेट नशा मुक्ति केंद्र भी हैं। जिला अस्पताल की बात करें तो यहां नशे की गिरफ्त में आए 407 लोगों का रजिस्ट्रेशन है। इनमें से 100 से अधिक लोग रोजाना जिला अस्पताल के ओएसटी सेंटर पहुंच रहे हैं। पीएमएस डॉ. टीडी रखोलिया ने बताया कि नशा करने वाले पहली बार ओएसटी सेंटर आते हैं तो उनका रजिस्ट्रेशन किया जाता है। इसके बाद काउंसङ्क्षलग करते हैं। काउंसलर की सलाह के बाद सेंटर में नशे के हिसाब से पीडि़तों को दवा की डोज दी जाती है। यहां उपचार कराकर कई लोग नशे से मुक्ति पा चुके हैं।
उपचार के लिए हल्द्वानी-देहरादून के चक्कर काटने की मजबूरी सीमांत जिले पिथौरागढ़ में नशेडिय़ों की बड़ी संख्या के बावजूद नशा उन्मूलन केंद्र नहीं है। सरकार की ओर से इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई है। नगर के लुंठयुड़ा वार्ड में एक दशक पूर्व नशा उन्मूलन केंद्र खोला गया था। कुछ लोगों का उपचार भी हुआ, मगर केंद्र सरकार से बजट न मिलने पर मजबूरी में इसे बंद करना पड़ा। अब नशे की गिरफ्त में आए लोगों को उपचार के लिए हल्द्वानी, बरेली जैसे शहरों का रुख करना पड़ता है। चार माह पूर्व रात में आई नशा उन्मूलन केंद्र की टीम दो नशेडिय़ों को घरवालों की सहमति से बाजार से ही उठा ले गई थी। इसे अपहरण समझा जाने लगा। इससे पुलिस प्रशासन तक में हड़कंप मच गया था। बाद में पता चला कि परिवारों वालों ने ही केंद्र के कर्मचारियों को अपने बच्चों को नशा उन्मूलन केंद्र तक पहुंचाने के लिए बुलाया था।
इलाज के बीच मोह छोडऩा होगा अल्मोड़ा में नशे की गिरफ्त में आ रहे युवाओं के लिए छह सितंबर को हवालबाग में नशा मुक्ति केंद्र खोला गया। अब तक स्मैक, शराब या चरस से जीवन बर्बाद कर रहे सौ से ज्यादा युवाओं को यहां लाया जा चुका है। इनमें तीन को हाल ही में छुट्टी दे दी गई। दो का इलाज अभी चल रहा है। बेटों को नशे से छुटकारा दिलाने के लिए अभिभावक केंद्र लाते तो हैं, मगर बेटे को घर से दूर न रख पाना उनकी बड़ी कमजोरी बन जाती है। इस कारण इलाज पूरा होने से पहले ही वह बच्चों की पढ़ाई नुकसान होने का हवाला देकर घर ले आते हैं। ऐसे में बच्चों के दोबारा बिगडऩे का जोखिम रहता है। इस कारण नशे से मुक्ति दिलाने के लिए परिजनों को भी मोह छोडऩा होगा।
कक्षा में नशे से मुक्ति का पढ़ाया जाता पाठ देवभूमि नशा मुक्ति एवं पुनर्वास केंद्र चम्पावत में भर्ती मरीजों के जीवन में सुधार लाने के लिए कई गतिविधियां चल रही हैं। स्मैक के लती युवा कम से कम एक साल तक और चरस के छह माह तक केंद्र में रखे जाते हैं। केंद्र में सात सेशन हर रोज चलते हैं। इनमें जस्ट फॉर टुडे, आज के दिन, मूड मेकिंग, योगाभ्यास, खेलकूद और डांस कक्षाएं शामिल हैं। 40 से 50 मिनट तक चलने वाली इन कक्षाओं में सभी लोगों के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के अनुभव साझा किए जाते हैं। काउंसलर हर रोज उनके मनोभावों का आकलन भी करते हैं। संचालक दीपक चंद्र जोशी ने बताया कि नशे करने के शुरुआती कुछ माह के भर्ती मरीजों की अपेक्षा आदी हो चुके मरीजों का इलाज मुश्किल होता है। इन लोगों के अंदर नशे के खिलाफ ऐसी घृणा भरने का प्रयास किया जाता है, ताकि वह कभी नशा करने के बारे में सोच भी न सकें।
पूरी कमाई बेटे के नशा छुड़ाने में लगाई बागेश्वर में नशा युवाओं के रग में दौडऩे लगा है। बच्चों की इस लत को छुड़ाने में माता-पिता का धन बर्बाद हो रहा है। नशे के आदी एक युवक के पिता ने बताया कि उन्होंने अपनी पूरी कमाई बेटे पर खर्च कर दी। अब वह फिर से नशा कर रहा है। नशे से दूर रखने के लिए उसकी शादी भी की। लेकिन वह नहीं माना। बताया कि उनके पड़ोसी का बेटा चरस का आदी हो गया। अब वह मानसिक बीमार है। उसे पुलिस की मदद से कई बार इलाज भी मुहैया कराया गया, लेकिन वह ठीक नहीं हो सका। शहर के एक बड़े घराने का बेटा गत दिनों देहरादून में मारा गया। वह ड्रग्स का आदी था।
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