अधिवक्ता सुशील रघुवंशी हत्याकांड: नैनीताल HC ने प्रमुख सचिव न्याय को दी चेतावनी, सर्विस रिकॉर्ड में दर्ज करने का निर्देश
अधिवक्ता सुशील रघुवंशी हत्याकांड नैनीताल हाईकोर्ट ने कोटद्वार के अधिवक्ता सुशील रघुवंशी की हत्या के मामले में निचली अदालत से बरी हत्यारोपियों के विरुद्ध अपील नहीं करने पर प्रमुख सचिव न्याय पर तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने उन्हें चेतावनी देते हुए उनके सर्विस रिकॉर्ड में यह दर्ज करने का निर्देश देते हुए सुनवाई 18 अक्टूबर को नियत कर दी।
By kishore joshiEdited By: riya.pandeyUpdated: Tue, 17 Oct 2023 01:29 PM (IST)
जागरण संवाददाता, नैनीताल। अधिवक्ता सुशील रघुवंशी हत्याकांड: हाईकोर्ट ने कोटद्वार के अधिवक्ता सुशील रघुवंशी की हत्या के मामले में निचली अदालत से बरी हत्यारोपियों के विरुद्ध अपील नहीं करने पर प्रमुख सचिव न्याय पर तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने उन्हें चेतावनी देते हुए उनके सर्विस रिकॉर्ड में यह दर्ज करने का निर्देश देते हुए सुनवाई 18 अक्टूबर को नियत कर दी।
कोटद्वार के एडीजे कोर्ट में दोषमुक्त हो गए आरोपित
दरअसल सितंबर 2017 में कोटद्वार के अधिवक्ता सुशील रघुवंशी की उस वक्त हमलावरों ने हत्या कर दी थी, जब वह अदालत को जा रहे थे। हत्या का आरोप विनोद लाला व अन्य पर लगा था। इसी साल मार्च में कोटद्वार के एडीजे कोर्ट से अभी सात आरोपित दोषमुक्त हो गए। इस सनसनीखेज हत्याकांड के आरोपित बरी हो गए तो सरकार की ओर से हाईकोर्ट में अपील दाखिल नहीं की गई तो मृतक की पत्नी रेखा रघुवंशी ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की।
हम प्रमुख सचिव के रुख से असहमत हैं - हाईकोर्ट
वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने मामले में सुनवाई करते हुए प्रमुख सचिव से इसका कारण पूछा तो बताया गया कि जिला शासकीय अधिवक्ता की ओर से राय नहीं की गई। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि प्रमुख सचिव के पद पर तैनात न्यायिक अधिकारी के लिए यह अशोभनीय है। हम प्रमुख सचिव (कानून) द्वारा अपनाए गए रुख से असहमत हैं।विभिन्न स्तरों पर की जाती है जांच
कोर्ट के अनुसार, सरकारी कार्यालयों में, विशेषकर सचिवालय में, विचाराधीन कागज की विभिन्न स्तरों पर जांच की जाती है। प्रत्येक अधिकारी कार्यालय नोट पर हस्तलिखित टिप्पणी देता है और उनकी टिप्पणी उनके विचार प्रक्रिया को दर्शाती हैं। ये नोट्स उन इनपुट्स का अंदाजा देते हैं जिनके आधार पर निर्णय लिए जाते हैं। हालांकि, विभिन्न स्तरों पर अधिकारी किसी दिए गए विषय पर भिन्न-भिन्न विचार व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन अंतिम निर्णय विभाग के सचिव या प्रमुख सचिव लेते हैं।
तय प्रक्रिया का नहीं किया गया पालन- हाईकोर्ट
इस मामले में दुर्भाग्य से तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। इससे संकेत मिलता है कि या तो प्रमुख सचिव (कानून) स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं या फिर वह निर्णय लेने की जिम्मेदारी से बचते हैं। कोर्ट ने प्रमुख सचिव (कानून) को भविष्य में सावधान रहने की चेतावनी दी है। साथ ही कहा किइस आदेश की एक प्रति प्रमुख सचिव को सूचित करते हुए उनके सेवा रिकॉर्ड में रखी जाए। अपील पर अगली सुनवाई को 18 दिसंबर की तिथि नियत की है।
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