वनों की मनमाफिक परिभाषा से घिरी प्रदेश सरकार, हाईकोर्ट की रोक के बाद केन्द्र ने जारी की एडवाइजरी
उत्तराखंड में वनों की परिभाषा बदलने के सरकार के बिना स्क्रूटनी के जारी आदेश के मामले को आधार बनाते हुए केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एडवाइजरी जारी की है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 11 Dec 2019 09:12 AM (IST)
नैनीताल, किशोर जोशी : उत्तराखंड में वनों की परिभाषा बदलने के सरकार के बिना स्क्रूटनी के जारी आदेश के मामले को आधार बनाते हुए केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एडवाइजरी जारी की है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन द्वारा तय वनों की परिभाषा का भी हवाला दिया है। जिसमें कहा गया है कि आधा हेक्टेयर क्षेत्रफल में अगर दस फीसद से अधिक पेड़ों का घनत्व है तो उसे वन माना जाएगा। इन्हीं आधार पर हाईकोर्ट ने वनों की परिभाषा बदलने के राज्य सरकार के आदेश पर रोक लगाई है।
राज्य सरकार ने जारी किया था ये आदेश दरअसल 21 नवंबर को वन एवं पर्यावरण विभाग के प्रभारी सचिव की ओर से कार्यालय आदेश जारी किया गया। जिसमें वनों की परिभाषा बदल दी गई। आदेश के बिन्दु ग में कहा कि दस हेक्टेयर या उससे अधिक के सघन क्षेत्र जिनका गोलाकार घनत्व 60 फीसद से अधिक हो, को ही वन माना जाएगा। इस आदेश का पर्यावरणविदों के साथ ही वन पंचायत सरपंचों ने विरोध किया।
केन्द्रीय वन व पर्यावरण विभाग ने जारी की ये एडवाइजरी इधर, इस आदेश जारी होने के बाद पांच दिसंबर को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण विभाग के महानिदेशक की ओर से राज्यों व केंद्र शाषित प्रदेशों को एडवाइजरी जारी कर दी गई। जिसमें चेतावनी दी गई है कि राज्य सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बाइपास कर या अंतरराष्ट्रीय मापदंडों को दरकिनार कर वनों की मनमाफिक परिभाषा तय ना करें।
सुप्रीम कोर्ट की ये है गाइडलाइन सुप्रीम कोर्ट ने 1996 के पीएन गौंडावर्मन बनाम केंद्र सरकार के केस में कहा है कि कोई भी वन क्षेत्र, चाहे उसका मालिक कोई भी हो, उनको वन श्रेणी में रख जाएगा। वनों का अर्थ क्षेत्रफल या घनत्व से नहीं है। दुनिया भर में जहां भी 0.5 प्रतिशत क्षेत्र में पेड़-पौधे हैं और उनका घनत्व 10 प्रतिशत है, तो भी उनको भी वनों की श्रेणी में रखा गया है।
गैर वानिकी कार्यों के लिए केंद्र की अनुमति जरूरीपर्यावरण मामलों के जानकार अधिवक्ता राजीव बिष्टï बताते हैं कि केंद्रीय वन संरक्षण अधिनियम-1980 के सेक्शन-दो के तहत किसी भी वन क्षेत्र में गैर वानिकी गतिविधि संचालित करने के लिए केंद्र सरकार की अनुमति जरूरी है। केंद्र की एडवाइजरी के आधार पर सवाल उठाया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश व केंद्र की एडवाइजरी के बाद भी राज्य सरकार द्वारा इस आदेश को वापस क्यों नहीं लिया गया।
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