चुनावी इतिहास में अल्मोड़ा संसदीय सीट पर अजय टम्टा की सबसे बड़ी जीत, जानिए
पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की मौत के बाद आई लहर के 35 साल बाद मोदी लहर में भाजपा प्रत्याशी अजय टम्टा रिकार्ड मतों के अंतर से जीतने में सफल रहे।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 24 May 2019 12:19 PM (IST)
चंद्रशेखर द्विवेदी, बागेश्वर : 17वीं लोकसभा चुनाव में अल्मोड़ा संसदीय सीट ने रिकार्ड भी दर्ज करा लिया है। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की मौत के बाद आई लहर के 35 साल बाद मोदी लहर में भाजपा प्रत्याशी अजय टम्टा रिकार्ड मतों के अंतर से जीतने में सफल रहे। जबकि इंदिरा लहर में हरदा रिकार्ड मतों के अंतर से जीते थे। एक अपवाद को छोड़ दें तो अल्मोड़ा संसदीय सीट पर हमेशा से ही भाजपा व कांग्रेस के बीच ही सीधी टक्कर रही है। जब भी लोकसभा चुनाव होते है तो यहां का मतदाता देश के मूड के हिसाब से ही वोट देता है। चाहे वह कैसा ही प्रत्याशी हो।
17वीं लोकसभा के चुनाव का जब आगाज हुआ तो देश में दोबारा से मोदी लहर ही थी। अल्मोड़ा संसदीय सीट पर उन्होंने पुराने चेहरे केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा को अपना प्रत्याशी घोषित किया। भाजपा ने जब पुराना चेहरा उठाया तो कांग्रेस ने भी उसी अंदाज में राज्य सभा सदस्य प्रदीप टम्टा को टिकट दे दिया। दो चिर परिचित प्रतिद्वंदी थे। दोनों प्रत्याशी पहले सोमेश्वर विधानसभा फिर दो बार 2009 व 2014 के लोकसभा चुनावों में आमने-सामने रह चुके थे। पुराने चेहरे होने के कारण अल्मोड़ा संसदीय सीट के मतदाताओं में चुनाव के प्रति ज्यादा रुझान नही दिखाई दिया। मतदान भी आचार संहिता लगने के 15 दिनों के अंदर ही हो गया। ऐसे में दोनों को ज्यादा प्रचार करने का मौका तक नहीं मिला। दुर्गम परिस्थितियां होने के कारण इन प्रत्याशियों का प्रचार शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित रहा गया। देश में बालाकोट हमले के बाद मोदी की लहर थी। अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र सैन्य बाहुल्य है। ऐसे में इसका फायदा सीधे अजय टम्टा को मिला। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भी मोदी लहर थी। तब भी यहां लगभग 53 फीसदी लोगों ने मतदान किया। इस बार भी इतना ही मतदान हुआ। मोदी लहर का सीधा फायदा अजय टम्टा को मिला। भाजपा प्रत्याशी अजय टम्टा दो लाख से अधिक मतों के अंतर से जीतने में सफल हुए।
इससे पहले 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी हरीश रावत एक लाख 40 हजार से अधिक मतों के अंतर से जीतने में सफल रहे। इस समय देश में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौत के बाद पूरे देश में उनकी लहर थी। उन्होंने तब भाजपा के दिग्गज मुरली मनोहर जोशी को हराया था। जोशी को केवल 44674 मत मिले। यह चुनाव भाजपा प्रत्याशी के लिए अल्मोड़ा संसदीय सीट से आखिरी चुनाव भी साबित हुआ। इसके बाद मुरली मनोहर जोशी ने कभी भी अल्मोड़ा संसदीय सीट से चुनाव नही लड़ा।
मोदी की लहर और लग गई नैया पार
जिला पंचायत सदस्य से अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत करने वाले अजय टम्टा एक बार सितारा बनकर उभरे हैं। संघ से नजदीकी रखने वाले टम्टा ने जहां काफी कम समय में अपना राजनीतिक कद बढ़ा लिया। वहीं उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार भी उन्हें केंद्र की राजनीति में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल सकती है। अजय टम्टा ने अपनी इंटर तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद अल्मोड़ा के तिखून क्षेत्र से जिला पंचायत के सदस्य के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की। जिपं चुनाव जीतने के बाद उन्हें जिला पंचायत का उपाध्यक्ष बनाया गया। वर्ष 1996 के आसपास जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट खाली होने पर उन्हें जिपं अध्यक्ष बनाया गया। वर्ष 2002 में उन्होंने भाजपा से सोमेश्वर सीट से टिकट मांगा, लेकिन टिकट नहीं मिला और उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा। इस चुनाव में टम्टा को हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने उन पर दांव खेला और वह सोमेश्वर सीट से विजयी घोषित किए गए। 2007 में उन्होंने फिर सोमेश्वर सीट से फिर विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की और इस बार वह प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने। टम्टा ने वर्ष 2012 में भी विधानसभा का चुनाव लड़ा और फिर जीत दर्ज की। 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा ने अल्मोड़ा लोकसभा सीट पर उन्हें दावेदार बनाया और उन्होंने रिकार्ड मतों से जीत दर्ज की। जिसके बाद उत्तराखंड के पांच सांसदों में से उन्हें केंद्र सरकार में केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री का ओहदा भी दिया गया। सत्रहवें लोकसभा चुनावों में भी अजय टम्टा ने एक बार फिर रिकार्ड मतों से जीत हासिल की है।
केंद्र की नीतियां और सर्जिकल स्ट्राइक का मुद्दा रहा प्रभावी
अल्मोड़ा लोकसभा सीट से विजयी उम्मीदवार अजय टम्टा को दूसरी बार मोदी लहर का जबर्दस्त लाभ मिला। उन्होंने कम मतदान होने के बाद भी रिकार्ड मतों से विजय प्राप्त की है। दरअसल इस बार के चुनावों में भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मुद्दों को लेकर मैदान में उतरी थी। जिसका उसे पूरा पूरा फायदा मिला। यह भी पढ़ें : हरदा ने कहा, हार स्वीकारता हूं पर हारा क्यूं, यह जानना जरूरी, संगठन के लोगों को सोचना होगायह भी पढ़ें : जनता की कसौटी पर उतर नहीं पाए पूर्व सीएम खंडूरी के पुत्र मनीष, शिष्य ने मारी बाजीलोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप
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