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दहेज मांगा तो बारात लौटाई, फिर असिस्टेंट प्रोफेसर की परीक्षा में टॉप कर गई एल्‍बा

हल्‍द्वानी निवासी एल्‍बा का विवाह तय हो रहा था तो ससुराल पक्ष ने दहेज की मांग रख दी। जिसके एल्बा ने शादी से ही इन्कार कर दिया और तैयारी कर असिस्टेंट प्रोफेसर की परीक्षा टॉप की।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 08 Mar 2019 08:15 PM (IST)
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दहेज मांगा तो बारात लौटाई, फिर असिस्टेंट प्रोफेसर की परीक्षा में टॉप कर गई एल्‍बा
हल्द्वानी, सतेंद्र डंडरियाल : हौसला मजबूत हो तो मुश्किलें आसान हो जाती है। कुछ ऐसा ही जज्बा नजर आता है हल्द्वानी तल्ली बमौरी निवासी एल्बा मंड्रेले में। जीवन संघर्ष से जूझते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। 2017 में जब विवाह तय हुआ तो ससुराल पक्ष ने दहेज की मांग रख दी। एल्बा ने यहां समझौता नहीं किया और शादी से ही इन्कार कर दिया। इसके बाद उन्होंने वह कर दिखाया, जिससे उन पर सिर्फ परिवार ही नहीं बल्कि शहर के लोग भी नाज करते हैं।

दहेज मांगने पर विवाह का प्रस्ताव ठुकराने वाली एल्बा ने उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की वर्ष 2019 की असिस्टेंट प्रोफसर की परीक्षा में प्रदेश में टॉप किया है। वह अभी पं. बद्री दत्त पांडे राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय बागेश्वर में तैनात हैं। बताती हैं कि जिंदगी में कभी हार नहीं माननी चाहिए। कभी-कभी हार ऐसा रास्ता दिखा देती है जो हमें जीत की तरफ ले जाता है। दस साल तक एल्बा ने सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं में नौकरी के साथ ही अपनी पढ़ाई जारी रखी। एल्बा अपने वेतन का आधे से ज्यादा हिस्सा जरूरतमंद बच्चों की शिक्षा के लिए खर्च करती हैं। वह बताती हैं कि उनकी माता ही जीवन में उनकी प्रेरणा हैं।

भाई की पढ़ाई के लिए बहन ने खुद नहीं की शादी

हल्द्वानी : अपने लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन दूसरों का जीवन संवारने के लिए समर्पण करने वाले लोग कम ही होते हैं। खासतौर पर उस माहौल में जब जीवन के मूल्य बदलने लगे। डॉ. ऊषा डोगरा उन शख्सियतों में हैं, जिन्होंने संघर्ष और अपनी प्रतिभा के बल पर न सिर्फ ऊंचा मुकाम हासिल किया, बल्कि सफलता पाने के बाद भी अपने जीवन मूल्यों को नहीं बदला। उन्होंने भाई की पढ़ाई और परिवार की जिम्मेदारी उठाने के लिए खुद विवाह भी नहीं किया।

मूल रूप से रानीखेत डोगरा एस्टेट निवासी डॉ. ऊषा डोगरा वर्तमान में राजकीय महाविद्यालय भतरौजखान अल्मोड़ा में कार्यरत हैं। उनका हल्द्वानी की भट्ट कॉलोनी में अपना आवास है। पिता के निधन के बाद डॉ. ऊषा ने परिवार की जिम्मेदारी संभाली। पहाड़ की बेटी का कॅरियर 1984 में पहाड़ से ही शुरू हुआ। बागेश्वर महाविद्यालय में लंबी सेवा के बाद उन्हें हल्द्वानी एमबीपीजी कॉलेज भेजा गया। इसके बाद उन्होंने महिला कॉलेज में भी सेवाएं दीं। डॉ. ऊषा ने परिवार में अपनी माता की देखभाल और इकलौते भाई का कॅरियर बनाने के लिए स्वयं विवाह नहीं किया। अपनी नौकरी के साथ-साथ छोटे भाई को एमबीए कराया, जो आज एक मल्टी नेशनल कंपनी में कार्यरत है। ऊषा बताती है कि शिक्षा ही वह माध्यम है जिसने उन्हें हौसला दिया।

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