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नैनीताल हाई कोर्ट ने की थी कुलपति प्रो एनएस भंडारी की नियुक्ति निरस्त, सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा है फैसला

Almora University VC Prof NS Bhandari resigned हाई कोर्ट ने दस नवंबर 2021 को पारित आदेश में अल्मोड़ा विवि के कुलपति प्रो भंडारी की नियुक्ति के विरुद्ध दायर याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने इस नियुक्ति को यूजीसी की नियमावली के विरुद्ध पाते हुए निरस्त कर दिया था।

By kishore joshiEdited By: Skand ShuklaUpdated: Sun, 06 Nov 2022 09:07 AM (IST)
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अल्मोड़ा विवि के कुलपति प्रो एनएस भंडारी के इस्तीफे पर सवाल, बौद्धिक तबके से लेकर सरकार में भी हलचल
किशोर जोशी, नैनीताल : Almora University VC Prof NS Bhandari resigned : अल्मोड़ा विवि के पहले कुलपति प्रो एनएस भंडारी के इस्तीफे की बुद्धिजीवी तबके में बड़ी चर्चा है। इस्तीफे की वजह कोई निजी बता रहा है तो कोई अल्मोड़ा विवि के अल्मोड़ा परिसर के प्राध्यापकों व छात्रों की आंतरिक सियासत का नतीजा। प्रो भंडारी की इस्तीफे की सत्ताधारी दल के साथ ही सरकार में भी हलचल है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने से पहले उनके इस कदम से हर कोई हैरत में है।

नैनीताल हाई कोर्ट ने कुलपति प्रो भंडारी की नियुक्ति को नियम विरुद्ध करार देते हुए निरस्त कर दिया था जबकि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। साथ ही सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया है। जो कभी भी आ सकता है। फैसला आने से पहले कुलपति ने इस्तीफा दे दिया।

हाई कोर्ट ने दस नवंबर 2021 को पारित आदेश में अल्मोड़ा विवि के कुलपति प्रो भंडारी की नियुक्ति के विरुद्ध दायर याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने इस नियुक्ति को यूजीसी की नियमावली के विरुद्ध पाते हुए निरस्त कर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि कुलपति ने यूजीसी की नियमावली के अनुसार दस साल को प्रोफेसरशिप नहीं की है। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खंडपीठ में देहरादून निवासी राज्य आंदोलनकारी रवींद्र जुगरान की जनहित याचिका पर अहम आदेश पारित किया।

याचिका में यह लगाया था आरोप

राज्य आंदोलनकारी जुगरान ने याचिका दायर कर कहा था कि कुलपति प्रो भंडारी की नियुक्ति यूजीसी के नियमावली को दरकिनार कर की गई है। यूजीसी की नियमावली के अनुसार वीसी नियुक्त होने के लिए दस साल की प्रोफेसरशिप होनी आवश्यक है जबकि प्रो भंडारी ने करीब आठ साल की प्रोफेसरशिप की है। बाद में प्रोफेसर भंडारी उत्तराखंड लोक सेवा आयोग के सदस्य नियुक्त हो गए थे । उस दौरान की सेवा को प्रोफेसरशिप में नहीं जोड़ा जा सकता, लिहाजा उनकी नियुक्ति अवैध है और उनको पद से हटाया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमआर शाह व न्यायमूर्ति एमएक सुदरेश की खंडपीठ ने मामले में सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा। तीन नवंबर को कोर्ट में इस मामले में सुनवाई हुई थी। इसी बीच कुलपति प्रो भंडारी ने इस्तीफा दे दिया। इधर कुलपति की ओर से छात्रसंघ चुनाव को लेकर दबाव में इस्तीफा देना किसी के गले नहीं उतर रहा है।

कुमाऊं विवि के दो कुलपति दे चुके हैं इस्तीफा

राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति का विवाद नया नहीं है। कुमाऊं विवि के कुलपति रहे प्रो राकेश भटनागर तथा प्रो डीके नौडियाल को भी कार्यकाल पूरा किए बिना इस्तीफा देना पड़ा था। अल्मोड़ा विवि के कुलपति के इस्तीफे की एक वजह प्राध्यापकों व छात्र गुटों के बीच की सियासत को भी माना जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवक तथा महाराष्ट्र के राज्यपाल व पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के करीबी प्रो भंडारी के इस्तीफे की हलचल सरकार तक में बताई जा रही है।

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