महत्वाकांक्षाओं ने कई बार सिर उठाया पर धैर्य ने बंशीधर भगत का साथ नहीं छोड़ा nainital news
रीयल लाइफ में राजनीति के बूते भाजपा से रिश्ते के बूते और अनुशासन के बूते पहचान बनाने वाले बंशीधर भगत रील लाइफ में भी राजा हैं।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Sat, 18 Jan 2020 01:05 PM (IST)
हल्द्वानी, आशुतोष सिंह : बात शुरू करने से पहले त्रेतायुग के रघुवंशी राजा दशरथ के चरित्र को याद कर लेते हैं। रघुकुल अपनी रीति व नीति के लिए हजारों बरस बाद भी याद किया जाता है तो दशरथ अपनी वचनबद्धता और प्रजा के प्रति निष्ठा के लिए। निष्ठा से धैर्य मजबूत होता है, धैर्य से आत्मविश्वास बढ़ता है और आत्मविश्वास ही कामयाबी की कुंजी है। कूटनीति या फिर राजनीति राजकाज का युगों-युगों से हिस्सा रही है, लेकिन इस हिस्से में खुद को फिट करने के बावजूद धैर्य न खोने वालों की संख्या गिनती में है। आज के 'दशरथ' (40 सालों से हल्द्वानी की ऊंचापुल की रामलीला के पात्र बंशीधर भगत) में भी त्रेतायुग का यह चरित्र दिखाई पड़ता है और उसी चरित्र ने आज इस 'दशरथ' को 'सिंहासन' सौंपा है। 'सिंहासन' भाजपा प्रदेश संगठन के मुखिया का है। अनुभव का लंबा अध्याय है और संगठन के प्रति वचनबद्धता भी। इसलिए भावी चुनौतियों पर कुहासा नहीं, उम्मीद दिखाई पड़ती है।
1975 से शुरू हुई राजनीतिक सफर की शुरुआत रीयल लाइफ में राजनीति के बूते, भाजपा से रिश्ते के बूते और अनुशासन के बूते पहचान बनाने वाले बंशीधर भगत रील लाइफ में भी 'राजा' हैं। एक ऐसे कुल के राजा, जो मर्यादा पर चलकर, सत्ता के शीर्ष पर बैठकर अपनी वचनबद्धता व दायित्व के प्रति हमेशा मजबूती से डटे रहे। राजनीति के सफर की शुरुआत 1975 से होती है जब बंशीधर की हथेली ने जनसंघ का दामन थामा था और प्रेरणा के केंद्र थे अटल बिहारी वाजपेयी। यह निष्ठा थी, त्याग था और समर्पण था जिसने बंशीधर को एक के बाद एक नए दायित्व सौंपे।
महत्वाकांक्षाओं ने सिर उठाया, धैर्य ने साथ नहीं छोड़ा कहते हैं सियासत में लंबी पारी खेलने वाले की महत्वाकांक्षाएं धैर्य व निष्ठा को चरम से नेपथ्य की ओर धकेलती हैं तो कूटनीति उसी तेजी से अपना अधिकार जमाने लगती है। भगत के सियासी चरित्र व अब तक के राजनीतिक सफर के लिहाज से ऐसा इसलिए नहीं कह सकते, क्योंकि जब भी उनकी महत्वाकांक्षाओं ने सिर उठाया, धैर्य ने उनका साथ तब भी नहीं छोड़ा। अनुशासन साथ में रहा और हताशा, अधैर्य को हावी होने देने के बजाय रामलीला के इस दशरथ ने हंसते हुए सिर्फ एक सूत्रवाक्य (समय बलवान है) को आत्मसात किया। भाजपा ने भगत को उत्तराखंड का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कोई चमत्कार नहीं किया, बल्कि उनके उसी समर्पण और सांगठनिक ढांचे में उनकी पकड़ को आधार बनाया है।
वेट एंड वॉच की नीति पर किए काम 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद की दौड़ में भगत भी थे,।मगर भाजपा हाईकमान को तब सरकार से ज्यादा संगठन की फिक्र थी, इसीलिए भगत को भीतरखाने वेट एंड वॉच वाली स्थिति में रखा गया। बहुमत से सरकार बनने के बावजूद उन्हें कैबिनेट तक में जगह नहीं मिली। यह सिर्फ इम्तहान था। बंशीधर के धैर्य का इम्तहान। ऐसी परीक्षा में बहुत से नेता अपना धैर्य खो देते हैं, मगर ऊंचापुल के 'दशरथ' में सिंहासन नहीं मिलने की कसक तक नहीं दिखी। सफर उसी शिद्दत से चलता रहा, जिस तरह शुरू हुआ था। आज फिर हाईकमान का फैसला सबके सामने है। एक ऐसी शख्सियत को भाजपा की कमान मिली है, जिसने जमीन से जुड़कर सत्ता के हर अध्याय में पात्र की भूमिका निभाई और महत्वाकांक्षाओं को खुद पर, खुद के सियासी कौशल पर कभी हावी नहीं होने दिया।
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