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नैनीताल के अलावा भी हैं यहां झीलें, आइए और इस नैसर्गिक सौंदर्य का लुत्‍फ उठाइए

नैनीताल और भीमताल के अलावा जो झीले हैं वे अधिक प्रचारित-प्रसारित न होने के कारण वहां पहुंचने वाले पर्यटकों की तादात काफी सीमित होती है।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Sun, 16 Dec 2018 08:43 PM (IST)
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नैनीताल के अलावा भी हैं यहां झीलें, आइए और इस नैसर्गिक सौंदर्य का लुत्‍फ उठाइए
हल्‍द्वानी, जेएनएन : नैनीताल जिला अपने नैसर्गिक सौंदर्य और झीलों के कारण देश-दुनिया में प्रसिद्ध है। यहां घूमने के लिए हर वर्ष पर्यटक बड़ी तादात में पहुंचते हैं। हालांकि नैनीताल और भीमताल के अलावा जो झीले हैं वे अधिक प्रचारित-प्रसारित न होने के कारण वहां पहुंचने वाले पर्यटकों की तादात काफी सीमित होती है। तो आइए आपको को कुछ ऐसी झीलों के बारे में बताते हैं जो अपनी खूबसूरती से आपको मुग्‍ध कर लेंगी।

कमल ताल

नौकुचियाताल नौ कोने वाली झील के किनारे में स्थित कमल ताल नाम के अनुरूप ही अपने वहां खिलने वाले कमल के नाम से प्रसिद्ध है। गर्मियों में पूरी झील कमल से भरी रहती है जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। नौकुचियाताल को सनद सरोवर के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि ब्रह्मा जी के सनक, सनातन, सनंदन, सनत कुमार चार पुत्रों ने यहां तपस्या की थी और प्रभु का ध्यान लगाया था। वहीं दूसरी धार्मिक मान्यता के अनुसार स्कंद पुराण में कमल ताल और नौकुचियाताल का उल्लेख मिलता है। नौ कोने में नौ ऋषि के द्वारा तपस्या करने का उल्लेख है तो वहीं मान्यता है कि इस झील के नौ कोनों को कोई भी एक साथ नहीं देख सकता है कमल ताल के बारे में मान्यता है कि इसका जल हरिद्वार में हर की पैड़ी के समान है इसके जल में स्नान करके लोग अपने कर्मों का प्रायश्चित करते हैं। जिन लोंगों पर गौ हत्या का पाप लगा होता है वह भी यहां स्नान करके गौ हत्या के पाप से मुक्त होने की मान्यता है। कमल ताल के किनारे छोटा सा मंदिर है जिसमें शादी, यज्ञोपवीत संस्कार आदि सभी धार्मिक आयोजन करने के लिये लोग दूर दूर से आते हैं। कमल ताल का पानी आस पास के क्षेत्रों में सिंचाई के लिये भी प्रयोग होता है।

पन्ना ताल (गरुड़ ताल)

सातताल की सात झीलों में से एक झील पन्ना झील अपने चारों ओर की प्राकृतिक सुंदरता के लिये प्रसिद्ध है। इस झील का पानी का रंग बदलते रहता है। जहां अन्य झीलों के पानी का रंग अधिकांश समय हरा रहता है तो वहीं पन्ना झील के पानी का रंग गहरे नीले रंग के होने के कारण पर्यटक दूर से इसकी ओर आकर्षित होते हैं। इस झील का रखरखाव सातताल मिशन के जिम्मे है। झील के चारों ओर सभी प्रकार के निर्माण पर रोक होने के कारण झील की खूबसूरती देखते ही बनती है। इस झील के चारों ओर अन्य नल दमयंती, पूर्णाताल, सीतताल, रामताल, लक्ष्मण ताल, और सूखाताल छ झील होने के बावजूद यहां शांति के कारण पर्यटक रुकना ज्यादा पसंद करते हैं।  द्वापर युग की कथा के मुताबिक राजा नल और उनकी पत्नि दमयंती सातताल क्षेत्र में कई समय तक प्रवास किया था और उन्होंने अपना महल भी यहां मनाया था। इसी क्षेत्र में वनखंडी महाराज का मंदिर भी ऊंचाई में चोटी में है। मान्यता है कि यहां पूजा अर्चना करके लोंगों को साक्षात लाभ मिलता है। वन खंडी महाराज के दर्शन से मात्र सभी दुखदर्द दूर होने की भी मान्यता है। इस झील की गहराई बहुत अधिक है इसलिये झील में किसी प्रकार की जल क्रीड़ा पर पूर्ण प्रतिबंध है। रखरखाव करने वाली संस्था ने स्थान-स्थान पर कूड़ा निस्तारण के लिये बोर्ड आदि लगाये हुए हैं।

हरीशताल

विकासखंड ओखलकांडा की ग्राम सभा हरीशताल का नाम इसी झील के कारण पड़ा है। पूर्व में जहां हरीशताल पहुंचने के लिये 12 किमी का पैदल सफर तय करना पड़ता था वहीं अब ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से हैड़ाखान से 12 किमी तक वैकल्पिक मार्ग बनाकर यह दूरी शून्य कर दी है पर बरसात में यहां पहुंचने के लिये 12 किमी का सफर आज भी तय करना पड़ता है। प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर यह झील लोंगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। यहां पहुंचने के बाद 12 किमी की थकान इसको देखने के बाद महसूस तक नहीं होती है। ग्राम प्रधान के डी रूबाली बताते हैं कि गांव पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जा सकता है पर मोटर मार्ग के अभाव में लोगों का आगमन कम होता है। गांव के बीचों बीच बनी हरीशताल झील की महत्ता का पता इसी बात से चल सकता है कि झील के कारण पूरा क्षेत्र सब्जी उत्पादन के साथ साथ लगभग सभी फसल उगाने में सक्षम है। झील के आस पास देशी और विदेशी पक्षी को देखा जा सकता है अधिकांश बर्ड वाचर यहां पहुंचते हैं और यहां के दृश्य और पक्षियों को अपने कैमरे में कैद करते हैं।

लोहाखाम ताल झील

विकासखंड ओखलकांडा की लोहाखाम ताल ट्रैकिंग करने वालों की खासी पसंद है हरीशताल से और आगे आधा किमी की दूरी पर स्थित लोहाखाम ताल एकांत और अपने धार्मिक महत्व के कारण पूरे विकास खंड में जाना जाता है। इस झील के ऊपर चोटी में लोहाखाम देवता का मंदिर है। स्थानीय निवासियों के मुताबिक क्षेत्र में जब भी कोई पुजारी किसी मंदिर से जुड़ता है तो यहां झील में अवश्य स्नान करता है। वहीं विकासखंड की कौंता पटरानी, ककोड़, हरीशताल, ल्वारडोबा, गौनियारो डालकन्या, अघौड़ा, कुण्डल , सुवाकोट, पोखरी, अमजड़ वन पोखरा, भद्रकोट, झडग़ांव, मल्ला, झडग़ांव तल्ला, साल गांवों के ग्रामीण यहां धार्मिक अनुष्ठान आदि संपन्न करते हैं। इसको प्रशासन की अनदेखी ही कही जा सकती है कि वर्ष 2004 में आपदा में इस झील की निकासी क्षतिग्रस्त हो गई थी और तब से इसका जलस्तर 6 मीटर कम हो गया है। स्थानीय जानकारों के मुताबिक झील की गहराई लगभग 25 मीटर है।

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