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दुष्कर्म मामले में सजायाफ्ता आशाराम बापू को हाईकोर्ट से फिर बड़ा झटका

हाई कोर्ट ने ऋषिकेश मुनि की रेती ब्रह्मपुरी निरगढ़ में वन भूमि पर कब्जे को अतिक्रमण मानते हटाने तथा वन विभाग को जमीन कब्जे में लेने के आदेश पारित किए हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 20 Feb 2019 07:49 PM (IST)
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दुष्कर्म मामले में सजायाफ्ता आशाराम बापू को हाईकोर्ट से फिर बड़ा झटका
नैनीताल, जेएनएन। दुष्कर्म मामले में सजायाफ्ता आशाराम को हाई कोर्ट से फिर बड़ा झटका लगा है। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने आशाराम के मुनि की रेती ऋषिकेश ब्रह्मïपुरी नीरगढ़ के आश्रम को वन भूमि पर अतिक्रमण माना है। साथ ही वन विभाग को जमीन कब्जे में लेने के एकलपीठ के आदेश को सही ठहराते हुए आश्रम की विशेष अपील खारिज कर दी है।
23 फरवरी 2013 को रेन फॉरेस्ट हाउस कॉलोनी ऋषिकेश निवासी स्टीफन व तृप्ति ने कब्जे को लेकर शिकायती पत्र लिखा था। इस पत्र को आधार बनाते हुए अपर मुख्य वन संरक्षक राजेंद्र कुमार ने डीएफओ नरेंद्र नगर को कार्रवाई के निर्देश दिए थे। पत्र में कहा गया था कि आशाराम के आश्रम के कर्मचारियों ने अतिक्रमण कर नाले में दीवार बना दी है। वहीं जिस भूमि पर कब्जा किया गया था, वह लक्ष्मणदास के नाम थी, जिसकी लीज 1970 में कालातीत हो गई थी, मगर आशाराम के कर्मचारियों ने अतिक्रमण कर डाला। नौ सितंबर 2013 को वन विभाग की ओर से आशाराम के आश्रम प्रबंधन को वन भूमि खाली करने को नोटिस दिया गया तो 17 सितंबर 2013 को हाई कोर्ट ने वन विभाग के नोटिस के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी। इसके बाद वन विभाग ने हाई कोर्ट में प्रार्थना पत्र दाखिल कर पक्षकार बनाने की प्रार्थना की। वन विभाग की ओर से अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने कोर्ट को बताया कि कब्जे की भूमि की लीज 1970 में खत्म हो चुकी है। कानूनी रूप से लीज ट्रांसफर नहीं हो सकती।
एकलपीठ ने मामले को सुनने के बाद स्टे आदेश निरस्त कर दिया। मगर आशाराम आश्रम के प्रबंधक अशोक कुमार गर्ग ने एकलपीठ के इस आदेश को विशेष अपील दायर कर कोर्ट में चुनौती दे दी। इस पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की खंडपीठ ने आश्रम प्रबंधन की विशेष अपील खारिज कर दी और वन विभाग को भूमि पर कब्जा लेने का आदेश दे दिया है।

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