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अनाेखी हैं पहाड़ की हाउसिंग कॉलोनियां, कभी बाखली में एक साथ रहते थे दर्जनों परिवार

पहाड़ के समाज की जीवन-संस्कृति और रहन-सहन दोनों अनूठा रहा है। इसकी झलक पर्वतीय समाज की हाउसिंग काॅलोनियां कही जाने बाखली में देखी जा सकती है।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 02 Sep 2020 11:53 AM (IST)
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अनाेखी हैं पहाड़ की हाउसिंग कॉलोनियां, कभी बाखली में एक साथ रहते थे दर्जनों परिवार

नैनीताल, किशोर जोशी : पहाड़ के समाज की जीवन-संस्कृति और रहन-सहन दोनों अनूठा रहा है। यहां की लोक परंपराएं व रहन-सहन प्रकृति के करीब और सृष्टि से संतुलन बनाने वाली रही है। इसकी झलक पर्वतीय समाज की हाउसिंग काॅलोनियां कही जाने बाखली में देखी जा सकती है। दर्जनों परिवारों को एक साथ रहने के लिए पहाड़ में बनने वाले ये भवन सामूहिक रहन-सहन, एकजुटता और सहयोग की भावना को परिलक्षित करते हैं। इनकी बनावट ऐसी होती थी कि आपदा के समय में एक साथ होकर चुनौतियां का सामना कर सकें। बताया जाता है कि कत्यूर व चंद राजाओं ने भवनों के निर्माण की इस शैली को विकसित किया था। लेकिन अंधाधुंध विकास, गांवों की उपेक्षा और भौगोलिक परिस्थतियों ने बहुत कुछ बदल दिया। कंक्रीट के जंगल में तब्दील होते जा रहे पहाड़ के हरे भरे गांव पलायन की मार झेल रहे हैं। शिक्षा और रोजगार के लिए पलयन के कारण गांव के गांव खाली हो गए।

रामगढ़ में है कुमाऊं सबसे बड़ी बाखली

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की सबसे बड़ी बाखली नैनीताल जिले के रामगढ़ ब्लॉक के कुमाटी गांव में है। पारंपरिक रूप से मिट्टी और पत्थरों से बने इन घरों को दूर से देखने पर रेलगाड़ी का प्रतिबिंब बनता है। खूबसूरत खिड़की-दरवाजे और नक्काशी वाले इन मकानों को देखने से पहाड़ के समाज और सामूहिकता को समझा जा सकता है। करीब तीन सौ फीट लंबी छत वाली इस बाखली को पारंपरिक सामुदायिक घर भी कहा जाता है। यहां अब 10-12 परिवार ही रहते हैं। क्वारब से करीब 12 किमी दूर कुमाटी में अधिकांश जोशी के साथ भट्ट परिवार भी रहते हैं। इस बाखली में 25 समान घर हैं। घर के सामने घाटी का खूबसूरत दृश्य दिखाई देता है। इस बाखली में इतिहास, विरासत, संस्कृति और वास्तुकला सब एक साथ परिलक्षित होता है। कभी यहां एक साथ 125 से अधिक लोग रहते थे।

एक तर होती थी सभी अपार्टमेंट की संरचना

बाखली में बने सभी अपार्टमेंट एक समान होते थे। मतलब हर परिवार को मिलने वाला मकान की संरचना एक जैसी होती थी। निचले हिस्से मवेशियों के लिए जबकि आगे का हिस्सा चारे के भंडारण के लिए उपयोग में लाया जाता है। कुमाटी की बाखली में पूरी संरचना में तीन सौ फीट की लंबी छत है। सभी घरों को समान रूप से डिज़ाइन किया गया है। जिसमें एक परिवार के लिए रसोई और एक बेडरूम और तहखाने हैं। 'बाखली' को इस तरह से डिजाइन किया था ताकि पूरा समुदाय संकट के समय एक साथ हो सके।

डेढ़ सौ साल पुरानी है कुमाटी की बाखली

कुमाटी की बाखली शीतला - मुक्तेश्वर मार्ग पर कफुरा और पोरा गांव के पास स्थित है। लोगों का दावा है कि यह बाखली करीब डेढ़ सौ साल पुरानी है। यह मूल रूप से मिट्टी और पत्थर से बनाई गई है। उत्तराखंड में तिबारी/बाली निर्माण में अखरोट, असीन, अंगु, उत्तीस, कीमू, कुकरकाट, खरसू, गेंठी, चीड़, तुन, तिअलंज, देवदार, पन्या-पद्म, पांगर, मेलु, सांधण, सुरई, सिरस व पर्वतीय कन्नार/साल की लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है ।

दुपरा शैली हैं निर्मित

कुमाऊं में बाखली दुपरा शैली में निर्मित है। दुपरा शैली में ज्यादातर थोकदारों या गढ़पतियों के किले बनाए गए हैं। इनमें ज्यादात्तर आयताकार हुए। चीला या गेहूं की भूसी से दीवारों पर प्लास्टर, दो पटालों के जोड़ पर भी गारा डालकर तोक बिछाई जाती है। गोबर व लाल मिट्टी के फर्श की लिपाई की जाती है। इतिहासकार प्रो अजय रावत व दीपक बिष्ट बताते हैं कि कुमाऊं की भवन निर्माण शेली बेहद समृद्ध रही है। इसका श्रेय कत्यूर व चंद राजाओं को जाता है।

पत्थर, लकड़ी के साथ अभियांत्रिकी का समावेश

कुमाटी-कफुड़ा ग्राम पंचायत की प्रधान रीना आर्य, सामाजिक कार्यकर्ता प्रमोद कुमार ने बताया कि बाखली में वर्तमान में करीब 15 परिवार रहते हैं। कुमाटी की इसी बाखली में रह रहे आनंद बल्लभ जोशी के अनुसार बाखली करीब दो सौ साल पुरानी हैं । इसमें 27 घर हैं। फिलहाल इसमें दस परिवार रह रहे हैं। तोरणद्वार में पशु पक्षी, सर्प-सर्पनी, योग-योगिनि, श्रीगणेश, सिंह, फूल पत्तियों के डिजाइन होते हैं।

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