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बना लें रानीखेत घूमने का प्‍लान, यहां है एशिया का दूसरा सबसे बड़ा गोल्‍फ कोर्ट और हिमालय का खूबसूरत व्‍यू

कुमाऊं का प्रमुख हिल स्टेशन रानीखेत जिसकी शांत व हरी भरी वादियां आत्मिक शांति देती हैं। नई ताजगी भी। समुद्रतल से करीब 1880 मीटर की ऊंचाई पर बसी है पहाड़ों की रानी।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 27 Sep 2019 12:48 PM (IST)
बना लें रानीखेत घूमने का प्‍लान, यहां है एशिया का दूसरा सबसे बड़ा गोल्‍फ कोर्ट और हिमालय का खूबसूरत व्‍यू
नैनीताल, जेएनएन : कुमाऊं का प्रमुख हिल स्टेशन रानीखेत, जिसकी शांत व हरी भरी वादियां आत्मिक शांति देती हैं। नई ताजगी भी। समुद्रतल से करीब 1880 मीटर की ऊंचाई पर बसी है पहाड़ों की रानी। जिसे प्रकृति ने बड़े करीने से नैसर्गिक खूबसूरती में ढाला है। अन्य पहाड़ी टूरिस्ट स्पॉट से हटकर देवदार, बांज, बुरांश आदि के मिश्रित सघन वनों से घिरी यइ पर्यटक स्थली प्राकृतिक स्रोत व विशिष्ट जैवविविधता इसे अलग पहचान देती है। खास बात कि रानीखेत कत्यूर काल से ही अपने प्राकृतिक सौंदर्य की कहानी गढ़ता आ रहा। रानी पद्मिनी ने यहां महल बनवाया। चंदवंशीय राजाओं का आखेट स्थल व विश्राम स्थली रही तो ब्रिटिश शासकों ने अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाई। वहीं रानीखेत की चोटी चौबटिया में विश्व के विशालतम सेब बागानों की शक्ल भी दी। ऐतिहासिक, धार्मिक व सांस्कृतिक लिहाज से भी यह दर्शनीय स्थल बेहद उर्वर है। 1869 में ब्रितानी शासकों ने बला की खूबसूरत यहां की वादी में कुमाऊं सैन्य मुख्यालय बनाया।

हिमालय दर्शन के लिए आइए चौबटिया 

देववृक्ष देवदार, बहुपयोगी बाज व काफल के साथ चीड़ के जंगलात से घिरा चौबटिया वन क्षेत्र। पर्यटकों का पसंदीदा स्थल जहां से हिमालयराज की लंबी श्रृंखला के दर्शन किए जा सकते हैं। ऐसा स्थल जहां जहां जरा सी ठंड पर बर्फ गिरती है। एपल गार्डन यहां की विशेष पहचान है। एक विदेशी सैलानी ने चौबटिया से हिमालय का दीदार कर एक पंक्ति में सब कुछ बयां कर दिया कि - जिसने रानीखेत नहीं देखा उसने दुनिया नहीं देखी। रानीखेत नगर से लगभग 10 किमी दूर है यह रमणीक स्थल जहां जो कभी मुगल गार्डन जैसी गुलाब प्रतातियों के लिए विख्यात रहा। 

एशिया का दूसरा गोल्फ मैदान 

पर्यटन नगरी का खास आकर्षण है एशिया में दूसरे नंबर का विश्वप्रसिद्ध गोल्फ मैदान। जानकारों की मानें तो इसे कालिका वन क्षेत्र के पीछे होने के कारण 'उपट कालिका' भी कहते हैं। 

प्रकृति की गोद मेें भालू डैम 

कत्यूर व चंद शासनकाल तक हिमालयन काला भालू की बहुलता के कारण चौबटिया के मध्य भाग में प्राकृतिक झील को 1903 में ब्रितानी शासकों ने डैम की शक्ल दी तो भालू डैम या जलाशय कहलाया। यहां किसी दौर में प्राकृतिक तौर पर मछलियों का संसार बसता था। अंग्रेजों ने अपने मनोरंजन के लिए मत्स्य आखेट यानी फिश एंग्लिंग को बढ़ावा दिया। चौबटिया सेब बागान से तीन किमी नीचे यह जलाशय वर्तमान में गुलदार, हिरन, काकड़, जडिय़ा, घुरड़ आदि वन्य जीवों के साथ ही सूर्योदय व सूर्यास्त के वक्त मेहबान व मेजबान परिंदों से गुलजार रहता है। 

हैड़ाखान आश्रम में अध्यात्म की अनुभूति

पर्यटन नगरी रानीखेत से लगभग पांच किमी दूर है धार्मिक व आध्यात्मिक पर्यटन स्थल हैड़ाखान। यहां बाबा हैड़ाखान ने तपस्या की थी। सकारात्मक तरंगों का आभास करने के बाद ही यहां आश्रम स्थापित किया। यह स्थल देश ही नहीं बल्कि विदेशी अनुयायियों की आस्था का बड़ा केंद्र है।

प्रकृति व आस्था की देवी मां झूला देवी 

चौबटिया व रानीखेत नगर के बीचों बीच है सिद्ध पीठ मां झूला देवी का दरबार। इसकी नींव भी कत्यूर काल में ही रखी गई जब एक किसान को स्वप्न में मां ने दर्र्शन दिए। दंतकथाओं के अनुसार कत्यूर काल में शिवालिक की तलहटी (वर्तमान में रामनगर व हल्द्वानी का भूभाग) से शेर व बाघ मोहान, बेतालघाट, रीची बिल्लेख, सौनी बिनसर होते हुए चौबटिया के जंगल तक विचरण करते थे। टाइगर कॉरिडोर की पुष्टि एक दशक पूर्व वन विभाग के कैमरा ट्रैप ने भी की थी। शेर के मवेशियों को लगातार नुकसान पहुंचाने पर ग्रामीणों ने मां के बताए स्थल से मूर्ति खोज यहां झूलानुमा पालने में रखा जिसे झूलादेवी माता के स्प में माना जाता है। इसे घंटियों वाला मंदिर भी कहा जाता है। 

सुकून के लिए रानीझील बेहतर 

भालू डैम की ही तरह रानीखेत के बीचों बीच है रानीझील। यहां मछलियों की विभिन्न प्रजातियों का संसार बसता है। वहीं चार व दो सीट वाली नाव का लुत्फ सैलानी उठाते हैं। यहां झील को पार करने के लिए बैंबो ब्रिज सैलानियों को खूब लुभाता है। इसे छावनी परिषद ने साहसिक पर्यटन से भी जोड़ा है। 

निर्वाण नेचर पार्क  

मिश्रित वन व लैपर्ड कॉरिडोर के पास सीढ़ीदार पहाड़ी पर बसा है निर्वाण रेचर पार्क। यह महज पार्क नहीं बल्कि यहां एक आंगन में चार पांच क्रियाकलाप एक साथ होती हैं। यानी ओपन जिम, योगा मैदान, चिल्ड्रन पार्क व जल संस्कृति को बढ़ावा देते कत्यूरकालीन नौले आम जनमानस को स्वस्थ रहने के साथ शुद्ध पानी का महत्व समझाते नजर आते हैं। 

देवदारों की छांव में ध्यान योग मैदान 

रानीझील व स्प्रिंग फील्ड के बीचों बीच है ध्यान योग मैदान। इको पार्क से लगा यह स्थल बुजुर्ग ही नहीं बल्कि युवाओं खासतौर पर महिलाओं को खूब लुभाता है। यहां खुले आसमान के नीचे देववृक्षों की छांव में योगासन का अलग ही आनंद है। 

यहां स्वच्छ आबोहवा में कीजिए जिम 

पास ही खुले मैदान में स्थानीय युवाओं ही नहीं बल्कि पर्यटकों के लिए भी नि:शुल्क ओपन जिम आपको चुस्त दुस्स्त रखने की प्रेरणा देता है। यहां आधुनिक  मशीनों के बजाय शारीरिक क्षमता, स्टेमिना आदि को बढ़ावा देने वाले उपकरण आसानी से मिलेंगे। 

बर्ड वॉचिंग के लिए मुफीद स्थल 

साइबेरियन पक्षी हों या अपने देश के रंग बिरंगे परिंदे। इन पंछियों के अद्भुत संसार का दीदार करना है तो तुरंत चले आइए पर्यटक नगरी रानीखेत। यहां तराई का दुर्लभ तोता परिवार का 'रेड ब्रेस्टेड पैराकीटÓ हो या यलो फुटेड ग्रीन पीजन (हरियाली)। रानीखेत के घने जंगलात में सब मिलेंगे। रानी के खेतों से कुछ दूर मिनी कॉर्बेट यानी दलमोठी व कालिका रेंज के साथ ही रानीझील आदि जंगलात में स्थानीय के साथ ही 50 से ज्यादा रंग बिरंगे पंछी यहां की वादियों में चले आने का जैसे न्यौता देते हैं। यही कारण है कि बीते वर्ष आखिर यानी नवंबर में प्रदेश में पहली बार अल्मोड़ा महोत्सव के तहत बर्ड वॉचिंग के लिए रानीखेत को ही चुना गया। रानीझील, चौबटिया, मजखाली, सिलंगी व उपराड़ी की ढलान बेहद आकर्षित करते हैं। 

रानीखेत का मिनी कार्बेट है दलमोठी रेंज

रानीखेत का मिनी कार्बेट दलमोठी रेंज। नगर से करीब 12 किमी दूर। जैव विविधता से लबरेज मिश्रित वन क्षेत्र, पर्यावरणीय संतुलन कायम रखने में सहायक वन्य जीवों का बसेरा जहां सफारी की योजना प्रस्तावित है। यह स्थल पक्षी अवलोकन के लिहाज से देश दुनिया के बर्ड वॉचरों के लिए मुफीद टूरिस्ट जंगल है, जहां घुरड़, काकड़, जडिय़ा, जंगली खरगोश व मुर्गियों के झुंड ही नहीं मिलते बल्कि गुलदार व हिमालयी ब्लैक भालू के दीदार पर्यटकों के लिए खास आकर्षण हैं। ठहरने के लिए यहां वन विभाग का विश्राम गृह है।

गर्मी में शीतलता देता कालिका रेंज 

हिमालय दर्शन का बेहद महत्वपूर्ण स्थल कालिका। पर्यावरणीय लिहाज से अहम बांज, काफल आदि बहुपयोगी वृक्ष प्रजातियों का मिश्रित वन क्षेत्र। किसी दौर में बाघों की बहुलता के लिए विख्यात यह कॉरिडोर अब गुलदारों का बसेरा है। यहां स्थापित मां कालिका का मंदिर हैं, जहां कालिका साक्षात विराजमान मानी जाती हैं। सैलानियों के ठहरने के लिए वन विश्राम गृह है। 

चाइना व्यू

पर्यटन नगरी का प्रवेश द्वार है चाइना व्यू। यहां से हिमालय राज खासतौर पर चीन सीमा से लगी पर्वतमालाओं के दीदार आसानी से किए जा सकते हैं। पंचाचूली, नंदादेवी आदि हिमालय श्रंखलाएं यहां से साफ दिखती हैं। 

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