भीमताल: आस्था और एडवेंचर का अद्भुत संगम है कर्कोटक ट्रैक, चुनौतियों से भरा है मंदिर तक पहुंचने का तीन किमी तक का यह सफर
भीमताल झील की उत्तर दिशा की पहाड़ी में स्थित कर्कोटक नाग देवता का मंदिर स्थानीय निवासियों की आस्था का केंद्र है। मंदिर तक जाने वाला तीन किलोमीटर का कठिन पहाड़ी ट्रैक आस्था और एडवेंचर का अद्भुत संगम है। इस चुनौतीपूर्ण ट्रैक को पार करने के बाद जब कोई मंदिर पहुंचता है। मंदिर से भीमताल और नौकुचियाताल झील का मनोरम दृश्य देखते ही थकान एक पल में ही मिट जाती है।
By vinod kumarEdited By: riya.pandeyUpdated: Sun, 22 Oct 2023 11:58 AM (IST)
निर्मल नेगी, भीमताल। भीमताल झील की उत्तर दिशा की पहाड़ी में स्थित कर्कोटक नाग देवता का मंदिर स्थानीय निवासियों की आस्था का केंद्र है। मंदिर तक जाने वाला तीन किलोमीटर का कठिन पहाड़ी ट्रैक आस्था और एडवेंचर का अद्भुत संगम है। इस चुनौतीपूर्ण ट्रैक को पार करने के बाद जब कोई मंदिर पहुंचता है। मंदिर से भीमताल और नौकुचियाताल झील का मनोरम दृश्य देखते ही उसकी सारी थकान एक पल में ही मिट जाती है।
नारद मुनि ने ऋषि को सर्प योनि में जाने का दिया था श्राप
पौराणिक कथाओं में कर्कोटक मंदिर, केंचुली देवी मंदिर व नल दमयंती ताल के अंतर्संबंधों को जोड़ा गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार पृथ्वी लोक में घूमते हुए नारद मुनि एक ऋषि के आश्रम में पहुंचे। नींद की अवस्था में ऋषि उनकी आवाज नहीं सुन सके। क्रोध में आकर नारद जी ने उन्हें सर्प योनि में जाने का श्राप दे दिया।
अपनी गलती मानकर ऋषि ने नारद जी से क्षमा याचना की तो नारद जी ने कहा कि कलांतर में कोई मनुष्य जब उन्हें अपनी गोद में उठाएगा तो उन्हें इस श्राप से मुक्ति मिल जाएगी। इसी के बाद ही नाग रूपी उन ऋषि ने जिस स्थान में निवास किया उसे ही कर्कोटक नाम से जाना जाता है।
यह है मान्यता
मान्यता है कि सर्प रूप में ऋषि कर्कोटक चोटी से भूमिगत होकर जिस स्थान पर निकलते थे, वहीं पर केंचुली (सांप की त्वचा) देवी का मंदिर स्थित है। जिन्हें नागराज कर्कोटक की माता माना गया है। समकाल में ही अपने भाई पुष्कर से जुएं में राजपाट हारकर राजा नल भी अपनी पत्नी दमयंती के साथ वनवास में वहां रह रहे थे। एक बार वन में विचरण करते हुए उन्हें कुछ करुण स्वर सुनाई दिए।
निकट जाने पर उन्होंने देखा कि आग के बीच में फंसा एक नाग सहायता के लिए पुकार रहा है। राजा नल को अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था। इसलिए उन्होंने अग्नि के बीच जाकर उस नाग को गोद में उठाकर अग्नि से बाहर निकाला। गोद में लेते ही ऋषि श्राप मुक्त हो गए।
प्रत्येक वर्ष होता है ऋषि पंचमी मेले का आयोजन
इस स्थान पर प्रत्येक वर्ष ऋषि पंचमी को मेले का आयोजन होता है। स्थानीय लोगों के अनुसार यहां नाग देवता के दर्शन अक्सर होते रहते है। पर्यटन विभाग द्वारा कर्कोटक को एक टूरिस्ट स्थल बनाने हेतु भी प्रयास किए जा रहे हैं।
सेवानिवृत अध्यापक एमसी पंत के अनुसार, नाग देवता मंदिर कर्कोटक और केंचुली देवी मंदिर का महात्म्य अद्भुत है। केंचुली देवी मंदिर में स्नान करने से चर्म रोगों का भी निदान होता है।समाजसेवी गोविंद सिंह नेगी के अनुसार, पौराणिक महत्व और सुंदर प्राकृतिक दृश्यों वाले कर्कोटक नाग देवता मंदिर को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए इसे भीमताल से रोपवे द्वारा जोड़ा जाना चाहिए।
कर्कोटक नाग देवता मंदिर अध्यक्ष नितेश बिष्ट के मुताबिक, संपूर्ण भीमताल को अपने आशीर्वाद रूपी छाया प्रदान करने वाले कर्कोटक नागदेवता के मंदिर व ट्रेकिंग रूट में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं।यह भी पढ़ें - दून में रामलीला कला समिति की आयोजित रामलीला में दशरथ मरण का मंचन, शोक में डूबी अयोध्या नगरी; आंसू नहीं रोक सके दर्शक
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