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दुष्कर्म मामले में सजायाफ्ता आशाराम बापू को हाईकोर्ट ने दिया बड़ा झटका

हाईकोर्ट की एकलपीठ ने ऋषिकेश मुनि की रेती ब्रह्मपुरी निरगढ़ में वन भूमि पर कब्जे को अतिक्रमण मानते हुए हटाने तथा वन विभाग को कब्जे में लेने के आदेश पारित किए हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 21 Dec 2018 06:16 PM (IST)
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दुष्कर्म मामले में सजायाफ्ता आशाराम बापू को हाईकोर्ट ने दिया बड़ा झटका
नैनीताल, जेएनएन। दुष्कर्म मामले में सजायाफ्ता आशाराम को नैनीताल हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने ऋषिकेश के मुनि की रेती में वन भूमि पर किए गए कब्जे केा अवैध करार देते हुए हटाने के आदेश पारित किए हैं। कोर्ट ने इस मामले में स्टे खारिज कर दिया है। इधर एकलपीठ के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अपील पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। साथ ही अगली सुनवाई सात जनवरी नियत कर दी।
दरअसल अपर मुख्य वन संरक्षक व नोडल अधिकारी राजेंद्र कुमार ने 23 फरवरी 2013 को डीएफओ नरेंद्र नगर को शासकीय पत्र भेजा। जिसमें स्टीफन डंगी व तृप्ति डंगी रेन फॉरेस्ट हाउस नीरगढ़ टिहरी गढ़वाल के शिकायती पत्र का उल्लेख किया गया था। पत्र में शिकायत की गई थी कि आशाराम आश्रम के कर्मचारियों द्वारा अनाधिकृत रूप से उनकी भूमि पर लीज संख्या-59 के मध्य नाले पर दीवार बनाने का उल्लेख था। पत्र में कहा था कि यह लीज स्वामी लक्ष्मणदास के नाम दी गई थी, जिसका नवीनीकरण नहीं हुआ तो लीज कालातीत हो गई। नियमानुसार वन विभाग को इस भूमि पर कब्जा लेना चाहिए। इसके बाद नौ सितंबर 2013 को तत्कालीन डीएफओ डॉ विनय कुमार भार्गव ने आसाराम आश्रम हरिपुर कलां रायवाला, तहसील ऋषिकेश के संचालक अशोक कुमार गर्ग को लीज संख्या-59 केा खाली कराने के लिए अंतिम नोटिस जारी किया। नोटिस में यह भी कहा गया था कि ब्रह्मïपुरी गांव नीरगढ़ चार को नोटिस के सात माह भी खाली नहीं किया गया है। वन भूमि का लीज क्षेत्र लीज रेंट वर्ष 2000 तक ही जमा किया गया है। वन विभाग के नोटिस को आसाराम आश्रम की ओर से याचिका दायर कर चुनौती दी गई तो एकलपीठ ने कार्रवाई स्टे कर दी।
इधर शिकायतकर्ता स्टीफन की ओर से आसाराम आश्रम की याचिका पर पक्षकार बनाने के लिए हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की। कोर्ट ने उसे पक्षकार बनाते हुए शपथ पत्र पेश करने को कहा। शपथ पत्र के साथ स्टीफन द्वारा 20 साल तक दी गई 1950 की वास्तविक लीज भी पेश की। अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने कोर्ट को बताया कि लीज की मियाद 1970 में खत्म हो गई थी, जिसे रिन्यू नहीं कराया गया। न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान माना कि आश्रम द्वारा वन विभाग की अनुमति के बिना गैर वन गतिविधियां संचालित कर रहा है। एकलपीठ ने वन विभाग के वन भूमि खाली करने के आदेश को प्रभावी बनाते हुए स्थगनादेश संबंधी आदेश निरस्त कर दिया। एकलपीठ के इस आदेश के खिलाफ आश्रम की ओर से विशेष अपील दायर की गई है। जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने राहत देने से इनकार करते हुए अगली सुनवाई सात जनवरी नियत की है।
 

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