उत्तराखंड की वो पांच बड़ी आपदाएं जिनमें चली गई हजारों की जान, पिथौरागढ़ ने सहे सर्वाधिक जख्म
Bg Disasters Of Uttarakhand उत्तराखंड के पर्वतीय जिले आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील हैं। इस मानसून में भी जगह-जगह से आपदा की खबरें सामने आ रही हैं। आइए जानते हैं उत्तराखंड के पांच बड़े और भयावह हादसों के बारे में।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Tue, 26 Jul 2022 12:48 PM (IST)
हल्द्वानी, ऑनलाइन डेस्क : big disasters of uttarakhand : उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में मानसून सीजन आफत की तरह आता है। इस दौरान भूस्खलन और चट्टानों के दरकने की खबरें आती रहती हैं। उत्तराखंड के लोगों ने आपदा के इतने भयावह दंश झेले हैं जिसे यादकर आज भी सिहर जाते हैं। चलिए जानते हैं उत्तराखंड की दस बड़ी प्रकृतिक आपदाओं के बारे में।
नैनीताल भूस्खलन 1880
18 सितंबर 1880 को शनिवार को नैनीताल को प्रकृतिक आपदा (Nainital Landslide 1880) से गहरा जख्म मिला था। दो दिन से लगातार बारिश से मल्लीताल क्षेत्र में भारी भूस्खलन हुआ। इस आपदा में 151 लोग जिंदा दफन हो गए थे। जिनमें 108 भारतीय और 43 ब्रिटिश नागरिक शामिल थे। भूस्खलन का मलबा आने से फ्लैट्स मैदान का निर्माण हुआ था और नैनादेवी मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था।उत्तरकाशी का भूकंप
20 अक्टूबर 1991 को 6.8 रिक्टर स्केल का उत्तरकाशी में आया भूकंप (Uttarkashi Earthquake 1991) कई जिंदगियों को लील गया। इस भूकंप ने पूरी धरती को कंपा दिया था। एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक, उस घटना में 768 लोगों की मौत हो गई थी और हजारों घर तबाह हो गए थे। कई लोग हमेशा के लिए बेघर हो गए। उस दिन को यादकर आज भी लोग दहशत में आ जाते हैं।मालपा भूस्खलन, पिथौरागढ़
18 अगस्त 1998 में पिथौरागढ़ जिले में बड़ी तबाही मची। जिले के मालपा गांव (Malpa Landslide 1998) में चट्टान दरक गई। इस त्रासदी में 225 लोगों की मलबे में दबने से मौत हो गई। मृतकों में 55 लोग मानसरोवर यात्री थे। यह घटना और भी खतरनाक इसलिए हो गई क्योंकि मिट्टी और चट्टानों के मलबे ने शारदा नदी का जल प्रवाह रोक दिया था। जिससे कई गावों में पानी घुस गया था।1999 का चमोली भूंकप
मालपा हादसे के अगले ही साल 1999 में चमोली जिले में 6.8 रिक्टर स्केल का भयंकर भूकंप (Chamoli Earthquake 1999) आया। इस घटना में 100 लोगों की मौत हो गई। चमोली जिले से सटे रुद्रप्रयाग जिले में भी बड़े स्तर पर क्षति हुई थी। भूकंप के चलते नदी नाले का भी रुख बदल गया। कई गांवों में घुस गया। भूकंप इतना खतरनाक था कि सड़कों और इमारतों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गईं थीं।केदार आपदा 2013
2013 में आई केदारनाथ आपदा (Kedarnath Disaster 2013) को कौन भूल सकाता है। उत्तराखंड के इतिहास में इतनी भयावह घटना कभी नहीं हुई। जल प्रलय ने हजारों लोगों की जान ले ली। किसी को संभलने तक का मौका नहीं मिला। जो जहां था, वही दफन हो गया। कई महीने तक लोगों की खोज में अभियान चलाए गए। आज भी वहां दफन लोगों के नरकंकाल मिल रहे हैं।पिथौरागढ़ में इन आपदाओं से भी मिले गहरे जख्म
- पिथौरागढ़ जिले में 1977 में तवाघाट में आई आपदा में 44 लोग दफन हो गए।
- 1983 में धामीगांव में आई आपदा में 10 लोगों का मौत हो गई।
- 1996 में रैतोली, बेलकोट में 18 लोगों की मौत हो गई।
- 1998 में रांयाबजेता आपदा में में पांच लोगों की मौत।
- 2000 में हुड़की में आई आपदा में 19 लोग दफन हो गए।
- 2002 में खेत में आई आपदा में पांच लोग काल के गाल में समा गए।
- 2007 में बरम में आई आपदा में 15 लोगों की मौत
- 2009 में ला, झेकला में आई आपदा में 43 लोग की मौत
- 2013 में धारचूला/मुनस्यारी में आई आपदा में 27 लोगों की मौत
- 2016 में बस्तड़ी/कुमालगौनी में 24 लोगों की मौत।
- 2017 मदरमा में भूस्खल में तीन लोगों की मौत।
- 2019 में बंगापानी के टांगा गांव में आई आपदा में 11 लोगों की मौत।
- साल 2020 में मुनस्यारी में बादल फटने से तीन लोगों की मौत9 लोग लापता।