बैजनाथ झील में दीपावली पर बोटिंग की सौगात, पर्यटक और स्थानीय लोग उठाएंगे लुत्फ
बैजनाथ कृत्रिम झील में अब लोग नैनीताल की तरह बोटिंग का आनंद ले पाएंगे। स्थानीय लोगों के साथ-साथ यहां आने वाले पर्यटकों को गुरुवार से बोटिंग का लाभ मिलेगा। दीपावली पर्व पर क्षेत्र के लोगों को सौगात मिल गई है। फिलहाल दो बोट यहां पहुंच गईं हैं।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Thu, 04 Nov 2021 11:50 AM (IST)
बागेश्वर, जागरण संवाददाता : बैजनाथ कृत्रिम झील में अब लोग नैनीताल की तरह बोटिंग का आनंद ले पाएंगे। स्थानीय लोगों के साथ-साथ यहां आने वाले पर्यटकों को गुरुवार से बोटिंग का लाभ मिलेगा। दीपावली पर्व पर क्षेत्र के लोगों को सौगात मिल गई है। फिलहाल दो बोट यहां पहुंच गईं हैं। आने वाले दिनों में इसकी संख्या बढ़ेगी।
इस बीच बंगाली पर्यटक यहां पहुंच रहे हैं। सिंचाई विभाग ने बैजनाथ में कृत्रिम झील बनवाई। बनने के कई साल बाद इसका सुंदरीकरण किया गया। साथ ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनाने के लिए इसे और बेहतर किया गया। अब पर्यटकों के साथ ही गुरुवार से स्थानीय लोग भी बोटिंग का आनंद लेंगे। विधायक चंदन राम दास ने कहा कि बैजनाथ झील गरुड़ में वॉटर स्पोर्ट्स का शुभारंभ कर दिया गया है। बोटिंग, जोरविंग बॉल और ओपन थिएयटर का भी पर्यटक लुत्फ उठा सकेंगे। गरुड़ क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ा मिलेगा। स्वरोजगार स्थापित करने के लिए युवाओं को मदद मिलेगी।
बागेश्वर के जिलाधिकारी विनीत कुमार ने बताया कि बैजनाथ झील में पर्यटकों को शीघ्र ही जलक्रीड़ा की सुविधा मिल गई है। पैडल बोट, जोरविंग बाल समेत अन्य सुविधाओं भी हैं। पहाड़ पर पर्यटन रोजगार व राजस्व का प्रमुख स्रोत है। अब लोग पहाड़ व बर्फ देखने के अलावा विविधता चाहते हैं। इसको देखते हुए प्रशासन पर्यटकों के लिए पर्यटन के अन्य आयामों को विकसित किया गया है।
स्वदेश दर्शन योजना का लाभ
जिले में स्थित बैजनाथ गोमती नदी के किनारे एक छोटा सा नगर है। यह अपने प्राचीन मंदिरों के लिए विख्यात है। जिन्हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने उत्तराखंड में राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों के रुप में मान्यता प्राप्त है। बैजनाथ उन चार स्थानों में से एक है, जिन्हें भारत सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के तहत शिव हेरिटेज सर्किट से जोड़ा जाना है। प्राचीनकाल में कार्तिकेयपुर के नाम से जाना जाता था और तब यह कत्यूरी राजवंश के शासकों की राजधानी थी। कत्यूरी राजा तब गढ़वाल, कुमाऊं तथा डोटी क्षेत्रों तक राज करते थे।
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