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यूरोपियन देशों में पसंद की जा रही चम्पावत की चाय, 161 हेक्टेयर में लहलहा रही खेती

चंद राजाओं की राजधानी रही चम्पावत की चाय अब यूरोपियन देशों के लोगों की पसंद बन रही है। वह यहां की जैविक चाय की चुस्की से अपने को तरोताजा महसूस करने लगे हैं। पिछले दो सालों में यहां 34300 किलो का उत्पादन हुआ।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 25 Sep 2020 10:30 AM (IST)
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चंपावत में 17 ग्राम पंचायतों के 161 हेक्टेयर में चाय की खेती लहलहाने लगी है।

चम्पावत, जेएनएन : चंद राजाओं की राजधानी रही चम्पावत की चाय अब यूरोपियन देशों के लोगों की पसंद बन रही है। वह यहां की जैविक चाय की चुस्की से अपने को तरोताजा महसूस करने लगे हैं। पिछले दो सालों में यहां 34,300 किलो का उत्पादन हुआ। 17 ग्राम पंचायतों के 161 हेक्टेयर में चाय की खेती लहलहाने लगी है। जिससे ग्रामीणों की आय बढऩे के साथ ही हर दिन चार सौ श्रमिकों को भी रोजगार मिल रहा है।

उल्लेखनीय है कि दो सौ साल पहले जब अंग्रेज चम्पावत आए थे। उस समय उन्होंने चाय की खेती शुरु करवायी। लेकिन वह सीमित स्थानों पर ही हो सकी। आजादी के बाद यह बागान भी रखरखाव के अभाव में उजड़ गए। टी बोर्ड के गठन के बाद वर्ष 1995-96 से पुन: पर्वतीय क्षेत्रों में चाय विकास योजना को लागू करने के प्रयास हुए। चम्पावत जनपद में वन पंचायत सिलंगटाक में चाय बागान की शुरुआत हुई। लेकिन वर्ष 1997 में न्यायालय के एक फैसले के बाद वन पंचायतों में इसके रोपण पर गतिरोध आ गया। 2004 में फिर चाय की खेती को बढ़ावा देने के लिए ग्राम पंचायतों में काश्तकारों की भूमि पर इसे लगाने की पहल हुई।

2007 में छीड़ापानी में नर्सरी बनाकर इसके रोपण में तेजी आ गयी। अभी तक जनपद की सिलंगटाक, छीड़ापानी, मुडिय़ानी, मौराड़ी, मझेड़ा, चौकी, च्यूरा खर्क, भगाना भंडारी, नरसिंह डांडा, कालूखाण, गोसनी, फुंगर, लमाई, चौड़ा राजपुर, खेतीगाड़, बलाई आदि ग्राम पंचायतों की 161 हेक्टेयर भूमि में चाय की पौंध लहलहाने लगी है। टी बोर्ड के स्थानीय मैनेजर डैसमेंड बताते हैं कि चाय के पौधों की नर्सरी यहां तैयार होने से करीब चार सौ परिवारों को प्रतिदिन रोजगार मिल रहा है। ग्राम पंचायतों में मनरेगा योजना के तहत भी इस खेती को प्रोत्साहित करने से अब कई काश्तकार सामने आने लगे हैं।

उन्होंने बताया कि शुरुआत में टी बोर्ड द्वारा चाय के पौंधों के रोपण के साथ ही तीन साल तक लगातार इसकी देखभाल की जा रही है और सात साल बाद भूमि स्वामी को पूरा स्वामित्व दे दिया जाता है। पिछले दो सालों में यहां 34,300 किलो की एक्सपोर्ट क्वालिटी की जैविक चाय का उत्पादन हुआ। इस वर्ष अप्रैल माह तक 5,500 किलो का उत्पादन हुआ है।

कोलकाता से विदेशों को जाती है चाय

दरअसल, चम्पावत की जैविक चाय की मार्केटिंग कोलकाता में होती है। पैरा माउंट मार्केटिंग कंपनी द्वारा इस चाय को खरीदा जाता है, जहां से इसे जर्मनी इग्लैंड सहित यूरोपियन देशों में भेजा जा रहा है। वर्तमान में चाय की बिक्री दर प्रति किलो 350 से 400 रूपए है।

वन पंचायतों में भी हो चाय की खेती

वन पंचायत सरपंचों का कहना है कि खाली पड़ी वन पंचायतों की बंजर भूमि पर चाय की खेती का रोपण होना चाहिए। ढकना, डिंगडई, चौकी, पुनेठी की वन पंचायत भूमि तो इसके लिए बेहतर कारगर है। इसका बकायदा मृदा परीक्षण भी हो चुका है। इस बारे में वनपंचायत सरपंचों की ओर से टी बोर्ड को प्रस्ताव भी भेजे गए हैं।

मुख्यालय में स्थापित है टी बोर्ड की चाय फैक्ट्री

टी बोर्ड की पहल पर जिला मुख्यालय में चाय फैक्ट्री स्थापित की गई है। कुमाऊं मंडल विकास निगम की लंबे समय से बंद पड़ी लीसा फैक्ट्री में इसे संचालित किया जा रहा है। पिछले वर्ष जून से बकायदा इसमें चाय की प्रोसेसिंग और पैकिंग होने लगी है। जिसमें उत्तरांचल टी नाम से उत्पाद बनकर तैयार हो रहा है। वर्ष 2013 से पूर्व प्रोसेसिंग और पैकिंग के लिए छीड़ापानी की निजी चाय फैक्ट्री से यह कार्य करवाया जाता था।

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