Move to Jagran APP

इंटरनेशनल माउंटेन डे के पोस्टर पर उत्तराखंड का छलिया नृत्य, अमित साह ने क्लिक की फोटो

अगले महीने 11 दिसंबर को होने वाले इंटरनेशनल माउंटेन डे के पोस्टर पर उत्तराखंड के छलिया नृत्य को जगह मिली है। छलिया नृत्य को शौर्य व पराक्रम का प्रतीक माना गया है।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Mon, 18 Nov 2019 12:43 PM (IST)
Hero Image
इंटरनेशनल माउंटेन डे के पोस्टर पर उत्तराखंड का छलिया नृत्य, अमित साह ने क्लिक की फोटो
हल्द्वानी, गणेश पांडे : अगले महीने 11 दिसंबर को होने वाले इंटरनेशनल माउंटेन डे के पोस्टर पर उत्तराखंड के छलिया नृत्य को जगह मिली है। छलिया नृत्य को शौर्य व पराक्रम का प्रतीक माना गया है। पोस्टर इंग्लिश, चायनीज, फ्रेंच समेत विश्व की छह भाषाओं में जारी हुआ है। हाथों में तलवार-ढाल लिए महिला छलिया कलाकारों की फोटो को नैनीताल निवासी अमित साह ने क्लिक किया है।

इसलिए मनाया जाता है इंटरनेशल माउंटेन डे

पहाड़ों के सतत विकास को प्रोत्साहित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा की खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने 2003 में इंटरनेशनल माउंटेन डे की शुरुआत की। तब से 11 दिसंबर को हर साल यह दिवस मनाया जाता है। पर्वत दिवस मनाने का उद्देश्य पर्वतीय क्षेत्र के सतत विकास के महत्व पर प्रकाश डालना व अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पर्वतीय क्षेत्र के प्रति दायित्वों के लिए जागरूक करना है।

अमित साह ने बागेश्‍वर में क्लिक की फोटो

इस बार की थीम 'माउंटेन मैटर ऑफ यूथ' है। युवा कल का भविष्य हैं, इसलिए पहाड़ एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण व जलवायु परिवर्तन जैसे खतरों से बचने के उद्देश्य से युवाओं को जागरूक करने के लिए यह थीम दी गई है। नैनीताल निवासी अमित साह ने बताया कि महिला छलियारों की तस्वीर को उन्होंने बागेश्वर के लीती में 2017 में हुए पर्वत दिवस पर खींचा था। उन्होंने बताया कि छलिया नृत्य शौर्य, पराक्रम के साथ हिमालय के समान अदम्य साहस का प्रतीक है।

चिनार संस्था तीन साल से मना रही पर्वत डे

पर्वतीय क्षेत्रों के सामाजिक व आर्थिक विकास के लिए कार्यरत सामाजिक संस्था चिनार पिछले तीन वर्षों से बागेश्वर के लीती में पर्वत दिवस मना रही है। संस्था के चेयरमैन प्रदीप मेहता ने बताया कि पहाड़ व यहां के बाशिंदों की तरह विश्व समुदाय का ध्यान आकर्षित करना जरूरी है।

ये है छलिया नृत्य

छलिया नृत्य उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल में प्रचलित लोकनृत्य है। यह एक तलवार नृत्य है, जो मुख्य रूप से शादी-बरातों में या दूसरे शुभ अवसरों पर किया जाता है। इस दौरान छलिया का रूप धरने वाले कलाकार बेहद रंग बिरंगे परिधान पहनते हैं, जाे उनका ड्रेस कोर्ड होता है। छलिया नृत्य की शुरुआत खस राजाओं के समय की मानी जाती है। चंद राजाओं के आगमन के बाद यह नृत्य क्षत्रियों की पहचान बन गया।

आंकड़ों में पर्वत

27 फीसद पहाड़ पृथ्वी को करते हैं कवर

1.1 अरब लोग पहाड़ों में करते हैं निवास

53 फीसद आबादी दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रों में करती है निवास

50 प्रतिशत से अधिक आबादी पहाड़ के पानी पर है निर्भर

06 महत्वपूर्ण फसलें पहाड़ों में होती हैं उत्पादित

(नोट : आंकड़े एफएओ के पोस्टर से लिए गए हैं)

यह भी पढ़ें : पर्यटकों के नाइट स्‍टे के लिए खुला जिम कॉर्बेट पार्क, न्‍यू ईयर तक ब‍ुकिंग फुल

यह भी पढ़ें : धार्मिक व औषधीय गुणों से भरपूर मानी जानी वाली तुलसी देश में सबसे ज्यादा उत्तराखंड में संरक्षित

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।