ब्लू व्हेल के बाद अब पब्जी गेम बना बच्चों के लिए जानलेवा, एडिक्ट हो रहे हैं बच्चे
बच्चों में बढ़ती गेम की लत अब जानलेवा बन गई है। मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल बच्चों को मानसिक रूप से बीमार बना रहा है। दिनभर गेम व मोबाइल पर लगे रहने के कारण वे चिड़चिड़े हो रहे हैं।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Thu, 07 Mar 2019 12:10 PM (IST)
हल्द्वानी, शोभित पाठक : बच्चों में बढ़ती गेम की लत अब जानलेवा बन गई है। मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल बच्चों को मानसिक रूप से बीमार बना रहा है। दिनभर गेम व मोबाइल पर लगे रहने के कारण वे चिड़चिड़े हो रहे हैं। ब्लू व्हेल गेम के बाद अब पब्जी गेम खेलने को लेकर रुड़की के एक छात्र ने आत्महत्या कर ली। गेम के एडिक्शन से पैदा हो रहा यह अवसाद तमाम बच्चों को जकड़ रहा है। डॉ. सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय के मानसिक रोग विभाग में गेम एडिक्शन के पिछले एक सप्ताह में 15 मामले सामने आए हैं।
क्या है पब्जी गेम
पब्जी का पूरा नाम प्लेयर अनौन्स बेटल ग्राउंड्स गेम है। पैराशूट के जरिये 100 प्लेयर्स को एक आईलैंड पर उतारा जाता है। जहां प्लेयर्स को बंदूकें ढ़ूंढकर दुश्मनों को मारना होता है। आखिर में जो बचता है वो विनर होता है। 4 लोग इस गेम को ग्रुप बनाकर खेल सकते हैं।बुरी तरह एडिक्ट हो रहे है युवा और बच्चे
युवा और बच्चे इस गेम को खेलने के इतने आदी होते जा रहे हैं कि दिन-रात वे फोन के साथ ही चिपके रहते है। गेम के टास्क को पूरा करने के लिए न तो वह खाने की परवाह करते हैं और न नींद की।
पब्जी का पूरा नाम प्लेयर अनौन्स बेटल ग्राउंड्स गेम है। पैराशूट के जरिये 100 प्लेयर्स को एक आईलैंड पर उतारा जाता है। जहां प्लेयर्स को बंदूकें ढ़ूंढकर दुश्मनों को मारना होता है। आखिर में जो बचता है वो विनर होता है। 4 लोग इस गेम को ग्रुप बनाकर खेल सकते हैं।बुरी तरह एडिक्ट हो रहे है युवा और बच्चे
युवा और बच्चे इस गेम को खेलने के इतने आदी होते जा रहे हैं कि दिन-रात वे फोन के साथ ही चिपके रहते है। गेम के टास्क को पूरा करने के लिए न तो वह खाने की परवाह करते हैं और न नींद की।
पब्जी गेम का आकर्षण
इस गेम में कई तरह के हाईटेक फीचर हैं। जिसमें अट्रैक्टिव ग्राफिक्स के साथ-साथ मोशन सेंसङ्क्षरग टेक्नोलॉजी और पावरफुल साउंड का इस्तेमाल किया गया है। जो बच्चों को जल्दी अट्रैक्ट कर रहा है।केस-1
मामला रामनगर का है। पढ़ाई के दौरान मोबाइल पर वीडियो गेम खेलने से पिता के मना करने पर 14 साल का बच्चा नही मना तो बच्चे के पिता ने गुस्से में आकर फोन तोड़ दिया। नया फोन न देने पर बच्चे ने जहर खा लिया।
इस गेम में कई तरह के हाईटेक फीचर हैं। जिसमें अट्रैक्टिव ग्राफिक्स के साथ-साथ मोशन सेंसङ्क्षरग टेक्नोलॉजी और पावरफुल साउंड का इस्तेमाल किया गया है। जो बच्चों को जल्दी अट्रैक्ट कर रहा है।केस-1
मामला रामनगर का है। पढ़ाई के दौरान मोबाइल पर वीडियो गेम खेलने से पिता के मना करने पर 14 साल का बच्चा नही मना तो बच्चे के पिता ने गुस्से में आकर फोन तोड़ दिया। नया फोन न देने पर बच्चे ने जहर खा लिया।
केस-2
चकलुवा के एक माता-पिता का कहना है कि उनका बच्चा 10 साल का है। जब भी उसे मौका मिलता है, वह तुरंत मोबाइल पर गेम खेलने लग जाता है। मना करने पर वह घर में तोडफ़ोड़ करने लगता है।केस-3
बिठौरिया के एक अभिभावक अपने 13 साल के बच्चे को लेकर बहुत चिंतित हैं। उनका कहना है कि बच्चे में मोबाइल गेम के प्रति ऐसी दीवानगी है कि वह फोन को छोड़ता ही नही है। फोन लेने पर लड़ता है और आक्रामक होता है। गेम पहुंचा रहे सेहत को नुकसान घंटों एक ही पोजिशन में बिना मूवमेंट के बैठने व टकटकी लगाकर स्क्रीन को देखने से बच्चों में आंखों की कमजोरी, अपच की समस्या, अनिद्रा की दिक्कत, मानसिक तनाव के साथ ङ्क्षहसक स्वभाव तेजी से बढ़ रहा है।ऐसे हैं लक्षण
बच्चों को टाइम दें
उनकी गतिविधियों पर नजर रखें
आउटडोर खेल के लिए पे्ररित करें
बच्चों के मोबाइल पर नजर रखें
मोबाइल निर्धारित समय के लिए दें
डांसिंग, म्यूजिक, पेंटिंग, किसी एक के प्रति उनमें पैदा करें जिज्ञासा मनोविकार का शिकार हो रहे बच्चे
डॉ. युवराज पंत मनोवैज्ञानिक, एसटीएच ने बताया कि बच्चों में बढ़ती मोबाइल गेम ही आदत से उनमें कई तरह के मनोविकार आ रहे हैं। पैरेंट्स के ध्यान न देने से स्थिति बिगड़ रही है। जिन बच्चों के माता-पिता दोनो जॉब करते है और बच्चे का साथी मोबाइल होता है, उन्हें अधिक दिक्कत आ रही है। पैरेंट्स को चाहिए कि वह अपने बच्चों को मोबाइल न देकर आउटडोर गेम के प्रति उनका रुझान बढ़ाएं और बच्चे को पूरा समय दें।यह भी पढ़ें : अल्मोड़ा, नैनीताल, रामनगर के लिए हेली सेवा जून से, जानिए और भी बहुत कुछ खास यह भी पढ़ें : पंतनगर एयरपोर्ट से चंडीगढ़, कानपुर, लखनऊ सहित कई बड़े शहरों के लिए हवाई सेवा जल्द
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।चकलुवा के एक माता-पिता का कहना है कि उनका बच्चा 10 साल का है। जब भी उसे मौका मिलता है, वह तुरंत मोबाइल पर गेम खेलने लग जाता है। मना करने पर वह घर में तोडफ़ोड़ करने लगता है।केस-3
बिठौरिया के एक अभिभावक अपने 13 साल के बच्चे को लेकर बहुत चिंतित हैं। उनका कहना है कि बच्चे में मोबाइल गेम के प्रति ऐसी दीवानगी है कि वह फोन को छोड़ता ही नही है। फोन लेने पर लड़ता है और आक्रामक होता है। गेम पहुंचा रहे सेहत को नुकसान घंटों एक ही पोजिशन में बिना मूवमेंट के बैठने व टकटकी लगाकर स्क्रीन को देखने से बच्चों में आंखों की कमजोरी, अपच की समस्या, अनिद्रा की दिक्कत, मानसिक तनाव के साथ ङ्क्षहसक स्वभाव तेजी से बढ़ रहा है।ऐसे हैं लक्षण
- बहुत गुस्सा करना
- चिड़चिड़ा रहना
- मूड का तुरंत बदलना
- कमरे में अकेले रहना
- खाना छोड़ देना
- देर रात तक जागना
- गुमसुम रहना
- बहुत जिद करना
- हिंसक हो जाना
- पढ़ाई से जी चुरान
बच्चों को टाइम दें
उनकी गतिविधियों पर नजर रखें
आउटडोर खेल के लिए पे्ररित करें
बच्चों के मोबाइल पर नजर रखें
मोबाइल निर्धारित समय के लिए दें
डांसिंग, म्यूजिक, पेंटिंग, किसी एक के प्रति उनमें पैदा करें जिज्ञासा मनोविकार का शिकार हो रहे बच्चे
डॉ. युवराज पंत मनोवैज्ञानिक, एसटीएच ने बताया कि बच्चों में बढ़ती मोबाइल गेम ही आदत से उनमें कई तरह के मनोविकार आ रहे हैं। पैरेंट्स के ध्यान न देने से स्थिति बिगड़ रही है। जिन बच्चों के माता-पिता दोनो जॉब करते है और बच्चे का साथी मोबाइल होता है, उन्हें अधिक दिक्कत आ रही है। पैरेंट्स को चाहिए कि वह अपने बच्चों को मोबाइल न देकर आउटडोर गेम के प्रति उनका रुझान बढ़ाएं और बच्चे को पूरा समय दें।यह भी पढ़ें : अल्मोड़ा, नैनीताल, रामनगर के लिए हेली सेवा जून से, जानिए और भी बहुत कुछ खास यह भी पढ़ें : पंतनगर एयरपोर्ट से चंडीगढ़, कानपुर, लखनऊ सहित कई बड़े शहरों के लिए हवाई सेवा जल्द