Chipko Andolan : पांच बिंदुओं में जानिए चिपको आंदोलन की पांच अहम बातें
Chipko Andolan / Chipko Movement चमोली जिले के रैणी गांव में गौरा देवी के नेतृत्व में 27 महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर कटाई विरोध किया था। इसके बावजूद सरकार और ठेकेदार फैसले में अड़े रहे मगर अंत में इस आंदोलन के सामने हार माननी पड़ी।
नैनीताल, जागरण संवाददाता : पर्यावरण बचाने के लिए हुए चिपको आंदोलन की आज 49वीं वर्षगांठ है। 26 मार्च 1974 को उत्तराखंड के चमोली जिले के रैणी गांव में ढाई हजार पेड़ों की नीलामी हुई। ठेकेदार ने मजदूरों को जब उन्हें काटने के लिए भेजा तो महिलाएं पेड़ों से चिपक गईं। उन्होंने कहा कि वृक्षों को काटने से पहले उन्हें काट काटा जाए। इस आंदोलन की गूंज भारत समेत दुनियाभर में सुनाई दी। चलिए चानते हैं इस आंदोलन से जुड़ी दस अहम बातें।
- 27 महिलाएं चिपक गईं पेड़ों से
जंगलों को बचाने के लिए आंदोलन बीते कई सालों से चल रहा था। लेकिन 26 मार्च 1974 को जब रैणी गांव में पेड़ों को काटने के लिए ठेकेदार ने मजदूरों को गांव में भेता तो उस समय ग्रामीण सड़क में निकली अपनी भूमि का मुआवजा लेने चमोली गए थे। ऐसे में गौरा देवी के नेतृत्व में 27 महिलाएं मजदूरों के पेड़ों तक पहुंचने से पहले पहुंच गईं। पेड़ों से लिपटकर महिलाओं ने कहा इन्हें काटने से पहले हमे काटना पड़ेगा। जिसके बाद मजदूरों को वापस हो जाना पड़ा।
- देश भर में फैल गया आंदोलन
चमोली जिले से शुरू हुआ चिपको आंदोलन धीरे-धीरे पूरे उत्तराखंड में फैल गया। पहाड़ पर लोग पेड़ों को बचाने के लिए पेड़ों से लिपट गए थे। इस आंदोलन में महिलाओं ने भागीदारी अधिक थी। आंदोलन का नेतृत्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा, गौरा देवी और चंडीप्रसाद भट्ट किया था।
- 15 साल तक लगा पेड़ों के कटान पर प्रतिबंध
चिपको आंदोलन ने देश में पर्यावरण संरक्षण को बड़ा मुद्दा बना दिया। बाद में यही आंदोलन हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, बिहार, तक फैला और सफल भी रहा। इस आंदोलन को बड़ी सफलता तब मिली जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हिमालय के वनों में पेड़ों की कटाई पर 15 वर्षों तक प्रतिबंध लगा दिया था।
- चिपको वुमन गौरा देवी
चिपको वुमन गौरा देवी का जन्म सन 1925 में गांव लाता में हुआ था। जिनका विवाह मात्र 12 साल की उम्र में रैंणी के मेहरबान सिंह से हो गया था। महज 22 साल की उम्र में पति के निधन के बाद ढाई साल का बेटे चन्द्रा और सास ससुर कीजम्मेदारी गौरा पर आ गई थी। सास-ससुर की मौत के बाद भी गौरा ने खुद को कमजोर नहीं होने दिया। वह अपने गाँव के महिला मंगल दल की अध्यक्ष भी बनीं।
- सुरदलाल बहुगुणा को अमेरिका ने किया सम्मानित
आंदोलन का नेतृत्व करने वाले सुंदरलाल बहुगुणा चिपको आंदोलन के बाद दुनिया भर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हुए। आंदोलन के बाद उन्हें अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर संस्था ने 1980 में सम्मानित किया। इसके अलावा भी पर्यावरण रक्षा के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया।
View attached media content - Fire Service Uttarakhand Police (@UttarakhandFireService) 26 Mar 2022
View attached media content - Madan Kaushik (@madankaushikbjp) 26 Mar 2022
View attached media content - Dayanand Kamble (@dayakam) 26 Mar 2022
View attached media content - Arvind Pandey (@TheArvindPandey) 26 Mar 2021