आसमान में आकर्षण का केंद्र बनेगा धूमकेतु, गुजरेगा धरती के करीब से
ग्रहों-नक्षत्रों की तरह धूमकेतुओं की भी अपनी दुनिया है। हमारे सौरमंडल के अंतिम पंक्ति में रहने वाले धूमकेतु कभी-कभार भूले-भटके धरती के करीब आ जाते हैं।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Tue, 11 Dec 2018 08:01 PM (IST)
रमेश चंद्रा, नैनीताल : ग्रहों-नक्षत्रों की तरह धूमकेतुओं की भी अपनी दुनिया है। हमारे सौरमंडल के अंतिम पंक्ति में रहने वाले धूमकेतु कभी-कभार भूले-भटके धरती के करीब आ जाते हैं। ऐसा ही एक धूमकेतु धरती के करीब से होकर गुजरने वाला है। इसका नाम 46पी रिट्नेन है। 16 दिसंबर को यह धरती के 11.59 मिलियन किमी. की दूरी से होकर सूर्य की दिशा में आगे बढ़ जाएगा।
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे के अनुसार रिट्नेन 12 दिसंबर से कोरी आंखों से दिखाई देने लगेगा, तब इसकी चमक 9.62 मैग्नीट्यूड के लगभग होगी। जैसे-जैसे यह सूर्य के निकट पहुंचेगा, सूर्य के प्रकाश में इसकी चमक बढऩे लगेगी। इससे इसकी चमकदार पूंछ भी नजर आने लगेगी। यह धूमकेतु साढ़े चार साल में सूर्य की परिक्रमा पूरी कर लेता है। इसे पूर्व दिशा में क्षितिज के करीब देखा जा सकता है। रात आठ बजे यूरेनस ग्रह व ओरायन नक्षत्र के बीच त्रिकोणीय स्थिति बनाते हुए रिट्नेन सप्तऋषि तारामंडल के समीप नजर आएगा, तब दूरबीन की मदद से इसे स्पष्टï देखा जा सकेगा। इसकी गति करीब साढ़े चार किमी प्रति सेकंड है। धरती से आगे निकलने के बाद यह सूर्य के करीब पहुंचेगा और सूर्य की परिक्रमा पूरी कर अपने पथ पर आगे बढ़ जाएगा।
काफी मात्रा में बर्फ समेटे होते हैं धूमकेतु
धूमकेतुओं में काफी मात्रा में बर्फ होती है। जब यह सूर्य के निकट पहुंचते हैं तो सूर्य की रोशनी में लाखों किमी लंबी चमकती इनकी पूंछ नजर आने लगती है। इसलिए इन्हें पुच्छल तारा भी कहा जाता है। धूमकेतुओं में बर्फ की मात्रा अधिक होने के कारण यह भी माना जाता है कि धरती पर जल पहुंचाने में इन्हीं की भूमिका रही होगी। वैज्ञानिकों का मानना है कि धूमकेतु सौरमंडल की उत्पत्ति में प्रकाश डालने में सहायक हो सकते हैं। जिस कारण वैज्ञानिक इनका रहस्य जानने के लिए निरंतर अध्ययन में जुटे हुए हैं।
शुक्रवार को होगी आसमानी आतिशबाजी
धूमकेतु रिट्नेन के धरती के करीब पहुंचने से दो दिन पहले एक और खगोलीय घटना होने जा रही है। यह आसमानी आतिशबाजी यानी उल्कावृष्टिï होगी। इसका नाम जमीनीड् मेटियोर शॉवर है। यह उल्कावृष्टिï 14 दिसंबर की रात को चरम पर रहने वाली है, जिसमें एक घंटे में 50 से 100 उल्कापात प्रति घंटा देखे जा सकते हैं।
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