राज्य ही नहीं देश की सबसे सुंदर तितली है काॅमन पिकाॅक, ऐसे हुआ था चयन
उत्तराखंड में तितलियों का खूबसूरत संसार है। उन्हीं में एक है कॉमन पीकॉक। जिसे उत्तराखंड में पांचवें प्रतीक का दर्जा मिला हुआ है। देखने में इस तितली के पंखों पर माेर पंखों जैसे चित्र बनें हुए हैं। जो इसकी खूगसूरती में चार-चांद लगाते हैं।
उत्तराखंड में पाई जाने वाले तितली काॅमन पिकाॅक को शासन द्वारा सात नवंबर 2016 को देहरादून में वाइल्ड लाइफ एडवाइजरी की बैठक के बाद राज्य के पांचवें प्रतीक के रूप में राज्य तितली का दर्ज प्राप्त हुआ है। 1996 में इसन भारत वर्ष की सबसे सुंदर तितली के रूप में लिम्का बुक में पना रिकाॅर्ड कराया।
1996 से पूर्व 1957 में बटर फ्लाई पर लिखी पुस्तक बटर फ्लाई आफ इंडियन रीजन के लेखक एमए विंटर विल्थ ने शिमला में भारत वर्ष में पाई जाने वाली 40 सुंदर तितलियों पर सुंदरता को लेकर मतदान कराया था तब काॅमन पिकाॅक 48 अंक लेकर प्रथम स्थान पर रही थी। इसी कार्यक्रम में केसरी हिंद को 35, बैडेड पिकाॅक को 23.5 और आरेंज ओक लीफ को 18 अंक प्राप्त हुए थे।
जब 24 पीढ़ी में स्वत: ही पैदा हो गई काॅमन पीकाॅक
भीमताल में बटर फ्लाई शोध संस्थान के निदेशक पीटर स्मैटाचैक बताते हैं कि काॅमन पीकाॅक पहले पपिलिया पालिक्टर के नाम से जानी जाती थी। पपिलिया बिआनौर के नाम से यह चीन, जापान, कोरिया पूर्वी रूस में पाई जाती थी। 21वीं शताब्दी के प्रारंभ में चीन ने अपने बटर फ्लाई फर्म में पिपलिया बिआनौर का व्यवसायिक उत्पादन बाहरी देशों के बटर फ्लाई हाउस के लिये करना प्रारंभ किया। तो चीन में 23वीं पीढ़ी तक पिपलिया बिआनौर को पाला पर 24 वीं पीढ़ी में प्यूपा से पिपलिया पालिक्टर पैदा हो गया। जिससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि दोंनों ही तितलियां एक ही हैं। आईसीजेडएन (इंटरनेशनल कमिशन फार जूलौजिकल नामन क्लेचर) के नियमानुसार सबसे प्राचीन नाम से ही इसका नाम कपिलिया बिआनौर रखा गया।
तिमूर वृक्ष की घटती संख्या से चिंतित हैं कीट पतंग विशेषज्ञ
काॅमन पिकाॅक के विशेष भोज्य पदार्थ हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले तिमूर के पेड़ की घटती संख्या ने विशेषज्ञों को चिंता में डाल दिया है। काॅमन पिकाॅक का अस्तित्व तिमूर के पेड़ पर निर्भर है, इसका लार्वा तिमूर के पत्तों पर पलता है। कामन पीकाक जाड़ों में प्यूपा के रूप में सुप्त अवस्था में चली जाती है मार्च में प्यूपा फिर से सक्रिय हो जाता है और मार्च से अक्टूबर तक इसकी लगातार पीढियां उत्पन्न होते रहती हैं।