Uttrakhand : शहरी क्षेत्रों में दाखिल खारिज के मामले में सरकार का बढ़ा असमंजस
निकायों को दाखिल खारिज का अधिकार देने के मामले में राज्य सरकार का असमंजस बरकरार है। इस आदेश संशोधन के लिए हाई कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की जाए अथवा सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की जाए इसेे लेकर सरकार के अधिवक्ता विधिक परीक्षण में जुटे हैं।
By Prashant MishraEdited By: Updated: Sat, 28 Aug 2021 05:59 PM (IST)
किशोर जोशी, नैनीताल : लैंड रेवन्यू अधिनियम के तहत जो कार्य राजस्व विभाग करता है, नगर निकाय की सीमा में दाखिल खारिज म्यूनिसिपल एक्ट के तहत किए जाएंगे। हाई कोर्ट के एक मामले में पारित इस आदेश के बाद राज्य के निकाय क्षेत्रों खासकर नगर निगम क्षेत्र में राजस्व अफसरों ने दाखिल खारिज करने से हाथ खींच लिए हैं। अब निकायों को दाखिल खारिज का अधिकार देने के मामले में राज्य सरकार का असमंजस बरकरार है। इस आदेश संशोधन के लिए हाई कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की जाए अथवा सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की जाए, इसेे लेकर सरकार के अधिवक्ता विधिक परीक्षण में जुटे हैं।
पिछले साल 16 दिसंबर में हाई कोर्ट ने एक मामले में अहम आदेश पारित किया था। हाई कोर्ट ने एक अन्य जनहित याचिका में देहरादून में अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए तो अधिकारियों ने अतिक्रमण चिन्हित किए। इस प्रक्रिया में याचिकाकर्ता का अतिक्रमण भी कार्रवाई की जद में आ गया। याचिकाकर्ता ने एसडीएम कोर्ट में प्रार्थना पत्र दाखिल कर भूमि से संबंधित फील्ड बुक में डिमार्केशन की अपील की तो एसडीएम ने अर्जी खारिज कर दी। एसडीएम के आदेश के खिलाफ डीएम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई और उसे भी खारिज कर दिया गया। जिसके बाद याचिकाकर्ता संजय गुप्ता हाई कोर्ट पहुंच गए। हाई कोर्ट ने इस मामले में अहम आदेश पारित कर महल की परिभाषा की विस्तृत व्याख्या की।
संविधान के अनुच्छेद 243 क्यू में नगर पंचायत, नगरपालिका, नगर निगम बनाने की प्रक्रिया तय की गई है जबकि 1901 के लैंड रेवेन्यू एक्ट के अनुसार राजस्व अफसर ग्रामीण इलाकों के लिए हैं, तो ऐेसे में शहरी क्षेत्रों में एलआर अधिनियम का प्रभाव कम हो जाएगा। इस मामले में मुख्य स्थाई अधिवक्ता सीएस रावत कहते हैं कि मामले का विधिक रूप से परीक्षण कराया जा रहा है, हाई कोर्ट में रिव्यू डाली जाए या सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी इस पर जल्द निर्णय लिया जाएगा।
अदालत ने यह की थी महल की व्याख्या
हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की एकलपीठ की ओर से पारित आदेश के अनुसार भू राजस्व अधिनियम 1901 की धारा (4) में महल की भूमि को परिभाषित किया गया है। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की डिक्शनरी का उल्लेख करते हुए समझाया है कि महल को एक स्थान, एक घर या अपार्टमेंट या एक संपत्ति या एक भूमि के रूप में परिभाषित किया गया है। लेकिन इसका उपयोग भूमि के एक क्षेत्र के राजस्व सृजन के मकसद के लिए किया जाता है। संविधान के अनुच्छेद-243 क्यू के तहत विचार, जो विशेष रूप से केवल के म्यूनिसिपिल कॉपोरेशन एक्ट-1975 से शासित होगा, न कि भू राजस्व अधिनियम द्वारा। चूंकि याचिकाकर्ता की जमीन का क्षेत्र नगर निगम के अंतर्गत आता है और भू राजस्व अधिनियम की धारा-28 में तय प्रक्रिया इसमें लागू नहीं होगी। कोर्ट ने मेरिट के आधार पर याचिका खारिज कर दी थी, साथ ही कहा था कि इसका अर्थ यह नहीं है कि याचिकाकर्ता के लिए कानूनी उपाय अपनाने के दरवाजे बंद किए जा रहे हैं।
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