भारत के गांवों में दर्ज नेपालियों के नाम परिवार रजिस्टर से हटाने की मांग nainital news
भारतीय गांवों के परिवार रजिस्टर में नाम दर्ज कराने वाले नेपाली नागरिकों के नाम हटाए जाने की मांग को लेकर मजिरकांडा के ग्रामीण लामबंद हो गए हैं।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Sat, 09 Nov 2019 07:22 PM (IST)
पिथौरागढ़, जेएनएन : भारतीय गांवों के परिवार रजिस्टर में नाम दर्ज कराने वाले नेपाली नागरिकों के नाम हटाए जाने की मांग को लेकर मजिरकांडा के ग्रामीण लामबंद हो गए हैं। डीएम से मिलने मुख्यालय पहुंचे ग्रामीणों ने नेपालियों के नाम सूची से नहीं हटाए जाने पर उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है।
जिला मुख्यालय पहुंचे ग्रामीणों ने जिलाधिकारी डॉ. विजय जोगदंडे के सामने मामला रखते हुए कहा कि भारत-नेपाल सीमा पर स्थित भारतीय गांव मजिरकांडा में रहने वाले कई नेपाली परिवारों ने ग्रामसभा के परिवार रजिस्टर में अपने नाम जुड़वा लिए हैं। ये परिवार अब पंचायत चुनावों के परिणाम प्रभावित करने की स्थिति में आ गए हैं। ग्रामीणों ने कहा कि इन परिवारों के पास नेपाल की नागरिकता भी है। इस लिहाज से ये दोहरी नागरिकता का लाभ ले रहे हैं। हाल ही में संपन्न हुए ग्राम पंचायत के चुनावों में इन परिवारों ने मतदान भी किया। ग्रामीणों ने कहा कि नेपाली परिवारों के चलते उनके हकों पर कुठाराघात हो रहा है। भविष्य में यह समस्या गंभीर हो सकती है। ग्रामीणों ने जिलाधिकारी से मांग की कि नेपाली परिवारों के नाम गांव के परिवार रजिस्टर से हटाए जाए। जिलाधिकारी से मिलने वालों में राजेंद्र प्रसाद भट्ट, विजय भट्ट, नवीन चंद्र भट्ट, राजेश्वरी भट्ट, सुरेश चंद्र भट्ट, राजेश्वरी भट्ट, चेतराज भट्ट, अमित पंगरिया, जगदीश जोशी, जगदीश भट्ट, उमेद सिंह, भगवान सिंह सहित तमाम ग्रामीण शामिल थे। जिलाधिकारी ने मामले में कार्रवाई का आश्वासन दिया। वहीं ग्रामीणों ने कहा कि प्रशासन इस मामले में जल्द पहल नहीं करता है तो ग्रामीणों को मजबूरन आंदोलन करना पड़ेेगा।
नेपाल के गांवों में भी भारतीयों को भूमि का हक
भारत के सीमांत जिले पिथौरागढ़ की व्यास घाटी के गांवों के ग्रामीणों की भूमि आज भी नेपाल में है। सीमा से लगे नेपाल के इन गांवों के भूमिधर भारतीयों को भू उपयोग के लिए लाल पट्टा मिला हुआ है। ग्रामीणों का आज भी नेपाल के गांवों में आना-जाना है, हालांकि अधिकांश लाल पट्टाधारकों ने नेपाल की अपनी जमीन बेच दी हैं। जबकि कुछ अभी भी बंटाई पर जमीन देकर खेती करा रहे हैं। भारतीय क्षेत्र में कालापानी तक भी सारी भूमि गुंजी के गुंज्याल और गब्र्यांग के गब्र्याल परिवारों के ही नाम दर्ज है।
नेपाल के राजा ने दी थी भूमि
भारत नेपाल के बीच काली नदी सीमा रेखा है। काली नदी के एक तरफ भारत के व्यास घाटी के गांव बूंदी, गब्र्यांग, गुंजी, नाबी, नपलचू, रोंगकोंग, कुटी, कालापानी हैं। दूसरी तरफ नेपाल के टिंकर, छांगरु गांव हैं। भारत के व्यास घाटी के गांवों के ग्रामीणों की काली नदी पार नेपाल के डिलिगड़, रायसुंग, छपटा, कव्वां, छोटी अप्पी में भी भूमि है। राजशाही के दौर में ही नेपाल के राजा द्वारा यह भूमि गर्ब्याल एवं गुंज्याल परिवारों को दे दी गई थी। गुंजी सहित व्यास घाटी के ग्रामीण पूर्व में माइग्रेशन के दौरान नेपाल के इन गांवों में निवास करते थे। वर्तमान में कुछ ही परिवार अब वहां जाते हैं। व्यास घाटी निवासी मंगल सिंह, गजेंद्र सिंह, राम सिंह, पान सिंह, भूपाल सिंह आदि का कहना है कि अब अधिकांश ने जमीन वहीं बेच दी है। जिन परिवारों की भूमि वहां है वे बंटाई पर जौ, मक्का, राजमा, आलू आदि की खेती कर भी रहे हैं। कहते हैं कि नेपाल में कुछ दल विशेष के लोग ही कालापानी सीमा को विवादित करने का प्रयास करते हैं। जबकि हमारे परिवारों के बीच यहां और वहां आपसी भाईचारे के संबंध आज भी कायम हैं।
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