धुएं व शोर से बचने को घर से उत्तराखंड की वादियों में मना रहे दिवाली
अब महानगरों में दीपावली काफी परेशान करने लगी है। इसलिए लोग अब उत्तराखंड की वादियों का रुख कर रहे हैं शांत व सुकून के साथ त्योहार को मनाने के लिए।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 07 Nov 2018 08:10 PM (IST)
नैनीताल (जेएनएन) : अब तक हम दीपावली का त्योहार अपने घर को सजाकर, अपने करीबियों के संग मनाने की परंपरा रही है। पर अब महानगरों में दीपावली काफी परेशान करने लगी है, आतिशबाजी के बाद उठने वाला धुंआ कई दिनों तक लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। इसलिए लोग अब उत्तराखंड की वादियों का रुख कर रहे हैं शांत व सुकून के साथ त्योहार को मनाने के लिए। इस समय कौसानी पर्यटकों से गुलजार हो गया है। यहां अब तक देश-विदेश से 25 हजार से अधिक पर्यटक आ चुके हैं। अधिकतर होटल पैक चल रहे हैं। दीपावली पर्व के बाद ही यहां से सैलानी लौटेंगे। उन्हें कुमाऊंनी व्यंजन परोसे जा रहे हैं। गुनगुनी धूप और सुबह हिमालय की लंबी श्रृंखला का दीदार पर्यटकों को यहां से स्वर्ग जैसा अहसास करा रहा है। कुमाऊं विकास मंडल निगम, लोक निर्माण विभाग का राज्य अतिथि गृह और जिला पंचायत का डाक बंगला समेत अधिकतर होटल पैक हैं। पर्यटकों को कुमाऊंनी व्यंजन भट की चुरकानी, मडुवे की रोटी, गडेरी की सब्जी, चटनी व नीबू आदि परोसा जा रहा है।
धुआं व शोर मानव के लिए खतरनाक : पर्यावरण वैज्ञानिकों तथा चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है यदि मानवीय गलतियों से पर्यावरण इसी तरह तेजी से प्रदूषित होता चला जाएगा तो इसका खामियाजा किसी ने किसी रूप में सभी को भुगतना पड़ेगा। इसी के दृष्टिगत उच्चतम न्यायालय ने भी दीपावली के दौरान रात को सिर्फ 8 से 10 बजे तक आतिशबाजी करने के आदेश पूर्व में ही दिए जा चुके हैं। पर्यावरण वैज्ञानिकों का कहना है कि दीपावली पर्व पर होने वाली आतिशबाजी के दौरान निकलने वाली हानिकारक गैसों से पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ता है। ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते दबाव से वायु मंडलीय ओजोन परत को भी नुकसान पहुंच रहा है। अधिक मात्रा में आतिशबाजी से वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड व कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों की मात्रा तेजी से बढ़ जाती है, जो मानव व पशु स्वास्थ्य, पर्यावरण तथा वनस्पतियों आदि के लिए बहुत हानिकारक होती है।
गैसों के उत्सर्जन से होने वाली हानियां
- गैसों से औसत तापमान में तेजी से वृद्धि
- मौसम चक्र में बदलाव से सूखे का खतरा- दुर्लभ जड़ी-बूटियों व औषधीय वनस्पतियों पर दुष्प्रभाव
- हानिकारक गैसों से ओजोन परत को नुकसान-वातावरण में धुंध फैलने से सांस लेने में दिक्कत
आतिशबाजी के धुंए से बुजुर्गों को अस्थमा की शिकायत बढ़ जाती है। साथ ही तेज पटाखों की आवाज से बच्चों के कान के परदे फटने का भी खतरा रहता है। वहीं चिकित्सालयों में भर्ती मरीजों पर भी किसी न किसी प्रकार आतिशबाजी का असर ड़ता है। ध्वनि प्रदूषण के और भी कई खतरे हैं। दहशत के मारे वन्य जीव भी घबराने लग जाते हैं और कई हिंसक बन जाते हैं। नन्हें-नन्हें बच्चों को आतिशबाजी के शोर से दूर रखना ही श्रेयस्कर है। आतिशबाजी के संबंध में उच्चतम न्यायालय का आदेश स्वागतयोग्य कदम है। -डॉ. जेसी दुर्गापाल, पूर्व स्वास्थ्य निदेशक, कुमाऊं मंडलबम पटाखों से आतिशबाजी के दौरान निकलने वाला बारुद, धुंआ व कार्बन के कण लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर डालते हैं। इससे एलर्जी की समस्या उत्पन्न हो जाती है। साथ ही अस्थमा का खतरा भी रहता है। बम पटाखों की धमाकों की आवाज से कानों की श्रवण क्षमता पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। वायु मंडल में गैसों की मात्रा बढ़ जाती है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। -डॉ. सुब्रत शर्मा, पर्यावरण विज्ञानी
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