महाभारत की द्रोपदी और मां सीता का प्रिय फूल द्रोपदीमाला हल्द्वानी में खिला, वन महकमे ने किया संरक्षित
धार्मिक औषधीय व सांस्कृतिक विरासत से जुड़े द्रोपदीमाला पुष्प की सुगंध से देवभूमि भी महकेगी। द्रोपदी के गजरे पर सजने वाला ये पुष्प मां सीता काे भी बेहद प्रिय था।
असम व अरुणाचल है राज्य पुष्प
द्रोपदीमाला नामक यह फूल असम व अरुणाचल प्रदेश का राज्य पुष्प है। मेडिकल गुणों की वजह से इसकी खासी डिमांड है। आंध्र प्रदेश में इसकी तस्करी भी होती है। फॉरेस्ट के मुताबिक महाभारत की अहम पात्र द्रोपदी माला के तौर पर इन फूलों को इस्तेमाल करती थीं। जिस वजह से इसे द्रोपदी माला कहा जाता है। वनवास के दौरान सीता मां से भी इसके जुड़ाव का वर्णन है। यहीं वजह है कि महाराष्ट्र में इसे सीतावेणी नाम से पुकारा जाता है।
वन विभाग दुर्लभ वनस्पतियों को सहेज रहा
वन विभाग दुर्लभ व औषधीय वनस्पतियों को सहेजने के साथ उन प्रजातियों पर भी काम कर रहा है। जिनका धार्मिक महत्व है। इस कड़ी में द्रोपदीमाला पुष्प को वन अनुसंधान केंद्र द्वारा ज्योलीकोट व एफटीआइ की नर्सरी में प्रयोग के तौर पिछले साल नवंबर में लगाया।
इसका दायरा बढ़ाया जाएगा
वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि तय समय पर यानी मई में यह खिल चुका है। प्रयास रहेगा कि इसका दायरा बढ़ाए जाए। धार्मिक महत्व का प्रचार भी किया जाएगा। क्योंकि उससे लोगों में संरक्षण को लेकर जागरूकता और बढ़ती है। वन अनुसंधान केंद्र के मुताबिक अस्थमा, किडनी स्टोन, गठिया रोड व घाव भरने में द्रोपदीमाला को दवा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। पंश्चिम बंगाल व आसाम में इसे कुप्पु फूल के नाम से जाना जाता है।
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बांज व अन्य पेड़ों से जुड़ाव
वन अनुसंधान केंद्र के मुताबिक द्रोपदीमाला आर्किड प्रजाति का हिस्सा है। आर्किड जमीन व पेड़ दोनों पर होता है। आमतौर पर १५०० मीटर ऊंचाई पर मिलने वाला द्रोपदीमाला बांज व अन्य पेड़ों पर नजर आा है। धार्मिक व औषधीय महत्व से अंजान होने पर लोग संरक्षण के प्रति जुड़ाव नहीं रख पाते। चारे के चक्कर में नुकसान पहुंचा देते हैं। उत्तराखंड में यह नैनीताल व गौरीगंगा इलाके में देखा जाता है। इसका अंग्रेजी नाम फॉक्सटेल है।- एक्ट्रेस नीना गुप्ता ने पीएम के लोकल को सपोर्ट किया, मुक्तेश्वर की महिला से बुनवाए स्वैटर
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